आओ कुछ और बात करें

रवि अरोड़ा
पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर 19 लाख ईवीएम गुम होने की खबर छाई हुई है मगर पता नहीं क्या वजह है कि यह खबर अखबारों और न्यूज चैनल से गायब है । पहले पहल तो मुझे भी लगा कि सोशल मीडिया की तमाम अन्य खबरों की तरह यह खबर भी चंडूखाने की होगी मगर खोजबीन करने बैठा तो मामला बेहद गंभीर निकला । हैरानी की बात है कि जिस खबर से हमारी पूरी चुनावी व्यवस्था की चूलें हिल जानी चाहिए थीं और इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन से पड़े वोटों से सत्ता में आई तमाम सरकारों की वैधता पर सवाल उठ जाना चाहिए था, उस पर ठंडी खामोशी है । सत्ता पक्ष तो खैर क्या बोलेगा, विपक्ष भी मुंह में दही जमाए बैठा है । तमाम क्षेत्रीय पार्टियों में भी हताशा का यह आलम है कि कोई भी इतनी बड़ी खबर पर बयान तक नहीं दे रहा । अपनी कार्यशैली की ओर उठी इस उंगली की बाबत चुनाव आयोग तो खैर कुछ कह ही नहीं रहा । पता नहीं कैसा लोकतंत्र हम जी रहे हैं ?

कर्नाटक के कांग्रेसी विधायक और पूर्व मंत्री एचके पाटिल को एक आरटीआई के मार्फत वर्ष 2016 से 2018 के बीच 19 लाख वोटिंग मशीनों के गायब होने का पता चला । उन्होंने इस मामले को विधान सभा में उठाया और इसके बाद ही इससे संबंधित छुटपुट खबरें सामने आईं । राज्य के विधानसभा अध्यक्ष ने अब इस मामले में चुनाव आयोग को तलब करने की बात की है तो मुख्यमंत्री भी स्वीकार कर रहे हैं कि पूरा सिस्टम बिगड़ा हुआ है । बता दूं कि इसी आरटीआई से पता चला कि ईवीएम बनाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों बीईएल की नौ लाख साठ हजार और ईसीआईएल की नौ लाख तीस हजार मशीनें गुम हैं । इन कंपनियों का दावा है कि उन्होंने ये मशीनें चुनाव आयोग को सप्लाई की थीं मगर चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में ये हैं ही नहीं । ये मशीनें कहां गईं , क्या यह कोई हिसाब किताब की भूल है अथवा ये मशीनें चुनावों में गड़बड़ी करने में इस्तेमाल हुईं ? यह इतना बड़ा सवाल है कि इस पर तमाम विधानसभाएं और संसद हिल जानी चाहिए थीं मगर कमाल है कि एक पत्ता तक नहीं खड़का । हैरान करने वाली सबसे बड़ी बात है मीडिया जगत की चुप्पी । टाइम्स ऑफ इंडिया और इसी ग्रुप के हिंदी अखबार नवभारत टाइम्स के अतिरिक्त प्रिंट मीडिया से यह खबर गायब है । न्यूज चैनल्स में केवल एनडीटीवी ने इस खबर को दिखाया और बाकी सब पाकिस्तान और श्रीलंका का रोना रोते रहे । वैसे आज के माहौल में पत्रकारों से अब ज्यादा उम्मीद करें भी तो कैसे, वे बेचारे तो खुद सच्ची खबर छापने पर जेल भेजे जा रहे हैं । थाने में उन्हें नंगा किया जा रहा है । अब इस माहौल में कोई हिम्मत करे भी तो क्यों ? चहुंओर ऐसी बेशर्मी छाई है कि सवाल करने पर रामदेव जैसे लोग खुलेआम कहते हैं कि पूछ पाड़ ले । शायद यही वजह हो कि मीडिया जगत को अब जनता को यह बताने की जरूरत महसूस नहीं हो रही कि मध्य प्रदेश से भी तीन साल पहले बीस लाख ईवीएम गायब होने की खबर सामने आई थी । साल 2014 में जब मोदी सरकार बनी तब भी ऐसी छुटपुट खबरें लीक हुई थीं । मुझे नहीं मालूम कि ईवीएम से मतदान में गड़बड़ी हो सकती है अथवा नहीं मगर इतना जरूर पता है कि इस बार उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में ईवीएम में गड़बड़ी के अनेक वीडियो और खबरें सामने आईं थीं । समाजवादी पार्टी ने लगभग हर जिले में गड़बड़ी की शिकायत ट्वीट के मार्फत की थी । वैसे यह भी अजब कहानी है कि जो पार्टी सत्ता में होती है वह ईवीएम की पक्षधर हो जाती है और जो सत्ता में नहीं होते वही उसकी शिकायत करते हैं और मतदान बैलेट पेपर पर मुहर लगा कर करने की मांग करते हैं । शायद आपको भी याद हो कि हमारे मोदी जी को भी एक जमाने में ईवीएम पर विश्वास नहीं था मगर अब स्थितियां पूरी तरह उलट हैं । चलिए जाने दीजिए , हमें क्या , आइए हम तो कश्मीर फाइल्स की बात करते हैं ।

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