हिजाब के नाम पर
रवि अरोड़ा
वाकई राजनीति बहुत बुरी शय है। सीधे सादे मामले को भी इतना उलझा देती है उसका समाधान नाको चने चबाने जैसा हो जाता है। अब कर्नाटका से शुरू हुए हिजाब विवाद को ही लीजिए, मामला इतना टेड़ा हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट भी इसे नहीं सुलझा पा रहा । मामले की सुनवाई कर रहे सर्वोच्च न्यायालय के दोनो जजों की राय एक दूसरे से उलट है और अब बड़ी बेंच को इसकी सुनवाई करनी पड़ेगी। उड़पी के जिस स्थानीय भाजपा विधायक रघुपति भट ने इस गैर जरूरी मुद्दे को हवा दी, उन्हें भी शायद अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि यह मामला इतना तूफ़ान उठा देगा । राज्य में अगले साल विधान सभा चुनाव होने हैं और कांग्रेस के वहां बढ़ते कदमों को रोकने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के हाथ जैसे बैठे बिठाए यह बढ़िया मुद्दा लग गया है । कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हिजाब के पक्ष में बयान दिया तो भाजपा मामले को ले उड़ी । हालांकि विवाद से पहले भी राज्य में मुस्लिम बच्चियां कालेज में हिजाब पहन कर आती थीं और उसका कभी विरोध भी नहीं हुआ था मगर उडपी के सरकारी पीयू कॉलेज की विकास समिति के सर्वे सर्वा होने के चलते विधायक ने वहां हिजाब पर बैन लगवा दिया और फिर देखा देखी पूरे राज्य के अन्य कालेजों ने भी इसका अनुसरण किया । धुव्रीकरण के लिए कटिबद्ध राज्य सरकार ने भी हाथों हाथ बैन को हरी झंडी दे दी और बाद में राज्य हाई कोर्ट में भी जब इस पर मोहर लगा दी गई तो मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया।
उधर, ईरान में भी हिजाब के नाम पर जो बवाल हो रहा है, उसके पीछे भी राजनीति ही है। साल 1979 की इस्लामिक क्रांति से पहले ईरान में खुलापन था मगर शीत युद्ध के दिनों में यूएसएसआर से शुरू हुई कम्युनिस्ट बयार को रोकने के लिए अमेरिका ने सऊदी अरब से इस्लामिक क्रांति आसपास के तमाम मुस्लिम देशों में निर्यात करवा दी ताकि यूएसएसआर और अमेरिका के बीच किसी बड़ी ताकत की दीवार खड़ी हो सके। सदियों से खुलापन भोग रहा ईरान अब अपने पुराने दिनों की ओर लौटना चाहता है और रोचक तथ्य यह है कि इस बार वही अमेरिका उसे परदे के पीछे से सहयोग कर रहा है जो उसकी तमाम बंदिशों के लिए खुद जिम्मेदार है। ताज़ा विवाद के चलते ईरान में सौ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और इस बवाल के शांत होने के हाल फिलहाल कोई आसार भी नहीं हैं। वहां की सरकार अब खुलेआम कह रही है कि इतना बवाल किसी बड़े प्रायोजक के बिना नहीं हो सकता। ईरान और अमेरिका के बिगड़े रिश्तों के चलते उसकी बात में दम भी है।
इस्लाम में हिजाब है कि नहीं यह तो अभी तक तय नहीं हो सका मगर हिजाब में इस्लाम नहीं है यह हर कोई जानता है। फिर क्यों इसे जबरन मुद्दा बनाया जा रहा है ? सारी दुनिया कह रही है कि महिलाएं क्या पहनें अथवा क्या नहीं पहनें,यह अधिकार केवल उनका है मगर राजनीति करने वाले बाज़ ही नहीं आ रहे । कहीं जबरन हिजाब पहनाया जा रहा है और कहीं जबरदस्ती उतरवाया जा रहा है। हिज़्ब ए इख्तियारी जैसी कोई चीज ही नही। तकनीक, विज्ञान और शिक्षा के चलते पूरी दुनिया आज महिलाओं को मुख्तियारी देने की पक्षधर है मगर ये राजनीतिक अवरोधक फिर भी बाज़ नहीं आते। महिलाओं को अपने अंगूठे के नीचे रखने की कोशिश करने वाले लोग, समाज और देश भविष्य में किस नज़र से देखे जायेंगे, यह भी तो वे समझने को तैयार नहीं है।