हत्या, मंशा और विक्रम जोशी

रवि अरोड़ा
पत्रकार विक्रम जोशी की सरेआम गोली मार कर की गई हत्या अपराध की कोई साधारण घटना नहीं है । इसे शासन की मंशा से जोड़ कर देखे जाने की भी ज़रूरत है । उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार से आये दिन पत्रकारों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किये जा रहे और उन्हें गैंगस्टर एक्ट में भी निरुद्ध किया जा रहा है , उसी का परिणाम है कि पुलिस का सिपाही तक किसी पत्रकार की शिकायत को गम्भीरता से लेने को तैयार नहीं है । विक्रम जोशी के मामले में भी यही हुआ । उन्होंने स्थानीय थाना पुलिस ही नहीं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक तक से गुहार लगाई मगर पुलिस ने बदमाशों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की । इसी का नतीजा हुआ कि बेख़ौफ़ बदमाशों ने विक्रम की गोली मार कर हत्या कर दी ।
पिछले साढ़े तीन साल के अपने कार्यकाल में योगी सरकार पत्रकारिता की नई परिभाषा घड़ रही है । नए क़िस्म की यह पत्रकारिता विज्ञप्ति की दुनिया तक ही सीमित रहती है । जो पत्रकार ख़बर के पीछे की ख़बर खोजता है उसे शासन-प्रशासन के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है । बेशक घोषित तौर पर एसा नहीं हुआ होगा मगर हक़ीक़त यही है कि अपराधियों द्वारा पत्रकार को दी गई धमकियाँ भी साधारण मामलों के क्रम में ही देखी जा रही हैं जबकि कई बात तय भी हो चुका है कि पत्रकार के उत्पीड़न अथवा उसे मिली धमकी को सामान्य अपराध की श्रेणी में न रख कर उस पर गम्भीरता से तुरंत कार्रवाई होगी । इसी की रौशनी में देखें तो विक्रम जोशी की हत्या में स्थानीय चौकी इंचार्ज ही नहीं एसएसपी तक दोषी हैं और उनके ख़िलाफ़ भी सख़्त कार्रवाई होनी चाहिये । यही नहीं हत्यारों के ख़िलाफ़ भी गैंगस्टर एक्ट से हल्की कार्रवाई नही होनी चाहिये ताकि विभिन्न कारणों से पत्रकारों के प्रति खुन्नस लिये बैठे अन्य बदमाशों तक भी स्पष्ट संदेश जाये ।
विक्रम जोशी की हत्या ने अनेक अहम सवाल भी पीछे छोड़े हैं । सबसे प्रमुख सवाल तो यही है कि क्या योगी सरकार की बदमाशों के एनकाउंटर करने की नीति का कोई सकारात्मक परिणाम भी निकला है या ये केवल पुलिस को संघटित अपराधी बनाने का ही कोई षड्यंत्र है ? विकास दुबे जैसों को मारकर पुलिस ने अपना बदला तो ले लिया मगर क्या एसे क़दमों का अपराध की रोकथाम से भी कोई लेना देना है ? वर्तमान सरकार के कार्यकाल में अब तक छः हज़ार से अधिक मुठभेड़ दर्शाई गई हैं जिनके 122 बदमाश मारे गए और 2 हज़ार से अधिक घायल हुए। इन मुठभेड़ों में पुलिस के 13 जवान भी शहीद हुए मगर परिणाम क्या निकला ? आज भी अपराध के मामलों में उत्तर प्रदेश देश में अव्वल ही है । नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार देश के दस फ़ीसदी से अधिक अपराध यहीं होते हैं । विक्रम जोशी की हत्या के मूल में उनकी भांजी से छेड़छाड़ का मामला था । इस तरह के मामलों में भी प्रदेश सबसे आगे है । सालाना लगभग साठ हज़ार मामले तो स्त्रियों के प्रति अपराध के ही प्रदेश में दर्ज होते हैं । अपहरण के मामले भी यहाँ सर्वाधिक हैं । देश भर में हुए अपहरण के मामलों में 21 फ़ीसदी यूपी के हैं । अपहरण के मामलों में प्रदेश पुलिस की उदासीनता भी जग ज़ाहिर है । ग़ाज़ियाबाद के ही बिल्डर विक्रम त्यागी के अपहरण को एक महीना हो गया मगर अभी तक पुलिस उसका कोई सुराग़ ही नहीं लगा सकी ।
कई बार तो एसा लगता है कि प्रचंड बहुमत से प्रदेश की योगी सरकार अहंकार में बौरा गई है और उसे अब किसी की परवाह नहीं है । अव्वल तो विपक्ष नाम की कोई चीज़ यहाँ है नहीं और जो थोड़ी बहुत है भी उसकी भी सरकार को कोई चिंता नहीं है । अपनी पार्टी के विधायकों की शिकायतों पर भी अफ़सर कोई कार्रवाई नहीं करते । मीडिया को तो केंद्र की तरह प्रदेश सरकार ने भी भाव न देने की नीति अपनाई हुई है । इसी का परिणाम है कि अफ़सर निरंकुश हो रहे हैं और सरेआम पत्रकार की हत्या के बावजूद कहीं कोई प्रतिक्रिया दिखाई नहीं दे रही । अपनी बात दोहराने का मन है कि किसी भी अपराध को शासन की मंशा से अलग हट कर नहीं देखा जा सकता और यह मंशा कम से कम किसी पत्रकार के प्रति तो कोई संवेदना रखती नज़र नहीं आती ।

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