सोशल एप्रूवल
रवि अरोड़ा
सुबह के अख़बारों की हेडलाईन थी संदेसरा बंधुओं द्वारा किया गया साढ़े चौदह हज़ार करोड़ का घोटाला । बताया गया कि यह घोटाला नीरव मोदी और विजय माल्या के घोटाले से भी बड़ा था । ख़बर पढ़ कर मुझे अपना फल वाला बहुत याद आया । उससे जब भी तरबूज़ ख़रीदो वह पहले दो तरबूज़ थपक कर देखेगा और फिर उन्हें रिजेक्ट करके तीसरा मुझे थमा देगा । मुझे अच्छी तरह मालूम है कि जो तरबूज़ उसने मुझे दिया है वह पहले कई बार उसने ही रिजेक्ट किया होगा और मेरे सामने जो तरबूज़ अभी अभी रिजेक्ट हुआ है वह यक़ीनन कल आपकी डायनिंग टेबल पर होगा । अब आप कहेंगे कि मैं शायद सनक गया हूँ और मुझे हज़ारों करोड़ के घोटाले और एक ग़रीब आदमी की मामूली सी चालाकी में कोई अंतर नज़र नहीं आता । शायद आप ठीक हों और वाक़ई मेरा दिमाग़ ख़राब हो गया है और मैं राई और पर्वत का अंतर भी नहीं समझता या फिर यह भी भी हो सकता है कि किसी हद तक मेरी बात ठीक हो और मुझे अपनी बात कहने की अनुमति देकर शायद आप ग़लती न कर रहे हों ? अब यदि आपकी इजाज़त हो तो मैं अपनी बात कहने का प्रयास करूँ ?
हमारे शास्त्र कहते हैं-यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे । मुझे लगता है कि दर्शन और भौतिक शास्त्र में ही नहीं हमारे समाज पर भी यही सिद्धांत लागू होता है । हमारा समाज अब जिस दिशा में जा रहा है वहाँ केवल और केवल सफलता के ही मायने हैं । सफलता किन तरीक़ों से प्राप्त हुई , उसकी कोई चर्चा नहीं करता । सिद्धांतों का दामन न छोड़ने के कारण मिली असफलता किसी भी सहानुभूति की हक़दार नहीं रहती । ग़रीब से अमीर तक , नीचे से ऊपर और रंक से राजा तक सब जगह एक ही दास्तान है । जो जीता वही सिकंदर की एसी स्वीकृति पूरे समाज पर तारी है कि जीत के संसाधन अपनी अहमियत ही खो चुके हैं । सामने वाले की आँखों में धूल झोंकने की कला को स्ट्रीट स्मार्टनेस कह कर चहुँओर शाबाशी ही मिल रही है । शादी-ब्याह के लिए एक ज़माने में ज्योतिषी जिन अवगुणों के चलते रिश्ता न करने की सलाह देते थे, उन्ही अवगुणों को अब ज़माने के साथ चलने की कला बता कर गुण बताने लगे हैं । कभी लड़की वाले पूछते थे कि लड़ता शराब सिगरेट तो नहीं पीता मगर अब एसे लड़के लल्लू माने जाते हैं जिसके बायो डेटा में सोशली ड्रिंकर न लिखा हो ।
अख़बारों में आए दिन ख़बरें छपती हैं कि फ़लाँ कालोनी में फ़लाँ आदमी लोगों के कमेटियों के पैसे लेकर भाग गया ।साईट पर लाइक्स के नाम पर व मोटर साइकिल टेक्सी के नाम भी लाखों लोगों को ठगा गया । एक बेईमान पकड़ा जाता है तो उसके आइडियाज की नक़ल करके दस और पैदा हो जाते हैं । जो पकड़ा जाता है उसके दिमाग़ की लोगबाग़ दाद देते हैं और जो ठगे जाते हैं उन्हें बेवक़ूफ़ क़रार दिया जाता है । आदमी के आदमी पर विश्वास की भावना की एसी बेक़द्री हुई है है जो ठगे वह क़ाबिल और जो इंसानियत के मूल स्वभाव विश्वास का दामन थामे वह मूर्ख कहलाता है । भलमनसाहत देखते ही देखते अवगुन हो गया और चालाकियाँ और चालबाज़ियाँ हरओर एप्रूव हो गईं । हर कोई अपने बच्चों को केवल और केवल यही सिखा रहा है कि पैसे कैसे कमाने हैं । संस्कार के नाम पर येन केन पराकेण सफल होने के गुण ही स्कूल, कालेज , घर और समाज में सिखाये जा रहे हैं । सफल व्यक्ति के पीछे हर कोई चल रहा है और असफल से हर कोई दूर भाग रहा है । नीरव मोदी, चौकसी, माल्या और संदेसराओं को हमने ही बकअप बकअप कह कर छोटे चोर से बड़ा चोर बना दिया। आज जो समाज के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े बड़े चोर फंनेखान बने घूम रहे हैं वे भी हमारे ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद के नारों के चलते ही ग़ुब्बारे से फूल रहे हैं । इनका ग़ुब्बारा फूटने तक वे ही हमारे माई बाप रहेंगे और क्या पता बाद में भी रहें ।
मेरा फल वाला अपने पिता को बहुत प्रिय है । उसका पिता कहता है कि मैं शाम तक उतनी दुकानदारी नहीं कर पाता जितना कि मेरा बेटा । आसपास के ठेली वाले भी मेरे फल वाले को इर्षा से देखते हैं । मुझे पूरा विश्वास है कि यदि उसे मौक़ा मिलता तो वह किसी नीरव मोदी, चौकसी, माल्या या संदेसरा से ज़्यादा नोट बनाता । यक़ीनन हम होते तो हम भी किसी से पीछे नहीं रहते । बुरा न माने तो कहूँ कि अपनी अपनी ठेलियों पर तरबूज़ जैसा कुछ लेकर बैठे हम सब भी तो छोटे मोटे नीरव मोदी , माल्या , चौकसी और संदेसरा ही तो हैं ।