सॉरी पक्का तालाब

रवि अरोड़ा
कल्लू गढ़ी के जोहड़ का जिक्र किया तो अनेक मित्रों ने पूछा कि रमते राम रोड के पक्का तालाब को मैं कैसे भूल गया ? क्यों नहीं उसकी बदहाली की बात की ? समझ नहीं आ रहा कि इन मित्रों को अब कैसे समझाऊं कि आज के इस दौर में किसी समस्या को यदि और बड़ा करना हो अथवा उसका बेड़ा ही गर्क करना हो तो एक ही तरीका है कि सत्ता का ध्यान उसकी ओर आकर्षित कर दो। उसका काम तमाम अपने आप हो जायेगा । लगभग चार सौ सालों का इतिहास समेटे 16 हजार 5 सौ वर्ग मीटर के इस पक्का तालाब के साथ भी तो अब तक यही हुआ है। जब जब इसकी ओर शासन-प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया गया इसका और अधिक नाश हुआ है। नेताओं ने अपनी वाहवाही और अफसरों ने इसे खाने कमाने का जरिया बना दिया । एक बार नहीं कई बार ऐसा हुआ है। अन्य लोगों को क्या कहूं इसकी बदहाली के लिए जिम्मेदार लोगों की सूची यदि बनाऊं तो उसमें मुझे अपना नाम भी लिखना पड़ेगा ।

बात सन 2008 की है। मेघ रतन नाम की एक संस्था नगर के तालाबों की सफाई का सामाजिक कार्य कार्य करती थी। अनेक तालाबों का जीर्णोधार भी इस संस्था ने किया । इत्तेफाक से मैं इस संस्था का अध्यक्ष था । बालूपूरा के लोगों ने जब संस्था के समक्ष पक्का तालाब की बदहाली का मुद्दा उठाया तो हम लोग सक्रिय हुए और नेताओं व नगर निगम के अधिकारियों को भी मौके पर बुलाया । अनुभवी लोगों ने अधिकारियों को बताया कि इस तालाब में बरसात का पानी चार मार्गों से स्वतः आ जाता था । शहर के जल पुरुष अधिवक्ता संजय कश्यप ने पते की बात सबको बताई कि पानी अपना रास्ता नहीं भूलता बशर्ते उसका रास्ता रोका न जाए । बताया गया कि साल 2004 के सावन में तो इस तालाब में इतना पानी भर गया था कि ओवरफ्लो करने लगा मगर बाद में अतिक्रमण के द्वारा पानी के रास्ते बंद कर दिए गए और तालाब सूख गया । बस फिर क्या था । गिद्ध अफसरों के हाथ बैठे बिठाए बटेर लग गई और पक्का तालाब के नाम पर चार करोड़ 35 लाख रुपए का बजट बना डाला। होना तो यह चाहिए था कि पानी आने के रास्ते खोले जाते ताकि भूजल रीचार्ज हो सके मगर हुआ यह कि स्वयं नगर निगम ने बचा खुला जल मार्ग भी बंद कर दिया । बरसात का पानी रमते राम रोड पर भरने लगा तो सड़क ऊंची कर दी और साथ बह रहे नाले को और गहरा कर दिया । डेढ़ दशक बाद फिर कुछ अन्य पर्यावरण विदों को चूल उठी और उन्होंने इस तालाब की बदहाली का रोना रोया । नतीजा अब नगर निगम फिर से इस तालाब पर 3 करोड़ 72 लाख रुपए खर्च कर रहा है। तालाब में पानी दिखाई दे, इसके लिए चार इंच का सबमर्सिबल सुबह शाम चला कर धरती से पानी और कम किया जा रहा है। मगर हाय रे इन अधिकारियों की किस्मत! जितना पानी दिन भर में भरता है, उतना ही रात में सूख जाता है। दावा किया जा रहा है कि तालाब को पानी से भर कर इसमें नौकायन कराएंगे और इसे पिकनिक स्पॉट की तरह विकसित करेंगे । अब इस पिछड़े इलाके में कौन नौकायन को आएगा , यह कोई सर्वे नहीं हुआ । पिकनिक स्पॉट बन भी गया तो उसका बिजनेस मॉडल क्या होगा , यह कोई नही बता रहा । बस तालाब के नाम पर नोट जमीन पर बिछाए जा रहे हैं। अब आप ही बताइए, भला कोई क्यों जनहित के मुद्दे उठाए और किसके लिए उठाए ? कुछ नेताओं की झूठी शान के लिए या लहरें गिनने के अभ्यस्त अफसरों और ठेकेदारों के लिए ?

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