सुख दे स्नान

रवि अरोड़ा
नई पीढ़ी के लिये बेशक यह हैरान करने वाली बात हो मगर उत्तरी भारत के लगभग सभी तीर्थ स्थानों पर हर एक जाति के लिये ख़ास पुरोहित मौजूद होता है । आप हरिद्वार, गया, बदरीनाथ, केदार नाथ अथवा पेहवे जैसे स्थानों पर जायें और कोई धार्मिक कार्य करना चाहें तो आपको अपनी बिरादरी के पुरोहित से ही सम्पर्क करना पड़ेगा । अव्वल तो पुरोहितों के चेले ही एसे स्थानों पर मँडराते रहते हैं और आपकी बिरादरी और पैतृक स्थान के आधार पर आपको स्वयं ही बता देंगे कि आपका पुरोहित फ़लाँ है और उस पुरोहित तक आपको पहुँचा भी देंगे । चलिये हरिद्वार की एक बात बताता हूँ । मेरा एक मित्र गंगा स्नान के लिए वहाँ गया और अपनी जाति के पुरोहित के बाबत पता कर उसके पास पहुँचा । पुरोहित ने अपनी पोथी खोल कर मित्र को बता दिया कि उसका कौन कौन सा बुज़ुर्ग कब कब और क्यों हरिद्वार आया था । ज़ाहिर है कि पुराने दौर में पर्यटन के नाम पर आम भारतीय तीर्थ स्थानों पर ही जाता था और धार्मिक आस्थाओं के चलते अपनी जाति के पुरोहित के सम्पर्क में भी आ ही जाता होगा । ख़ैर मित्र के आगमन पर पुरोहित ने उसका और उसके परिवार में जुड़े नये सदस्यों के नाम भी अपने रिकार्ड में दर्ज कर लिये । चूँकि आम तौर पर अपने परिजनों की अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित करने के लिए ही अब लोग बाग़ हरिद्वार जाते हैं अतः पुरोहित ने हरिद्वार आने का कारण भी पूछा। मित्र ने बताया कि यूँ ही बस घूमने-फिरने और गंगा में डुबकी लगाने आया हूँ । इस पर पुरोहित ने अपने पोथे में आने का कारण लिखा- सुख दे स्नान । यानि ख़ुशी ख़ुशी स्नान करने आयें और कहीं कोई गमी आदि नहीं है । यह ‘ सुख दे स्नान ‘ शब्द मित्र को बहुत भाया और यह उसकी ज़बान पर एसा चढ़ा कि सब कुछ ठीक ठाक है कहने की बजाय वह अक्सर यही कहता है- सुख दे स्नान ।
इत्तेफ़ाक से कल शहर के विभिन्न इलाक़ों और बाज़ारों में जाना हुआ । हर जगह एक ख़ास बात दिखी और वह यह कि बड़े बड़े बाज़ारों में भी ‘टू लेट ‘ के बोर्ड लगे दिखे । कवि नगर, राज नगर, गांधी नगर, नवयुग मार्केट और अम्बेडकर रोड जैसे बाज़ारों में ही नहीं आरडीसी जैसे क्षेत्रों में भी थोक के भाव एसे बोर्ड दिखे जिन पर लिखा था- दुकान किराये के लिये ख़ाली है । केवल चार महीने में सब कुछ बदल गया ? नौकरी वाले सड़कों पर आ गये और व्यापारी क़र्ज़ में डूब गये । छोटी पूँजी वाला व्यापारी दुकान-गोदाम बंद करके घर बैठ गया है । जो दुकान-दफ़्तर खोल कर बैठे हैं वो भी कह रहे हैं कि इस से अच्छा तो लॉक़डाउन था, कम से कम राशन के अलावा और कोई चिंता नहीं थी । नब्बे फ़ीसदी छोटा व्यापारी एक ही बात कहता है कि दुकान खोलने में ज़्यादा नुक़सान है , बजाय बंद रखने के । जो किराया नहीं दे पा रहे वे दुकानें ख़ाली कर रहे हैं और जगह जगह टू लेट के बोर्ड नज़र आ रहे हैं । चूँकि दुकानें थोक में किराये के लिए उपलब्ध हैं इसलिए मकान मालिक दुकान की कुल चौड़ाई जितने बड़े बड़े टू लेट के बोर्ड टाँग रहे हैं ताकि जिसे दुकान नहीं चाहिये वह भी पढ़ सके ।
लॉक़डाउन के इतने बुरे परिणाम होंगे यह तो शायद किसी ने सोचा भी न होगा । राशन, दवाई और अस्पताल वालों के अलावा सब लुट गये । सरकार कह रही है कि उसने बहुत कुछ किया है । किया भी होगा और करना भी चाहिये था मगर नतीजे नज़र क्यों नहीं आ रहे ? इकोनोमी के जानकार तो कह रहे हैं कि हालात अभी और बिगड़ेंगे । बड़े बड़े उद्योगपतियों का भी यही आकलन है । ईश्वर करे कि ये सारे आकलन ग़लत साबित हों और यह गमी का माहौल जल्द ख़त्म हो । यही नहीं फिर वह समय आये जब मेरे मित्र की तरह हम सभी कह सकें- सुख दे स्नान हैं और सब ठीक है ।

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