सिर्फ़ एनडीटीवी ही क्यों

मित्रों , हम सभी लोग गवाह हैं कि देश के अधिकांश टीवी चैनल अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर घटनाओं की मूर्खतापूर्ण कवरेज करते हैं और दिन भर बेसिर पैर के कार्यक्रमों और बहसों से मुल्क की फ़िज़ा ख़राब करते हैं । याद कीजिए मुंबई हमले में भारतीय चैनल की मिनट दर मिनट कवरेज देख कर ही आतंकी लखवी पाकिस्तान में बैठ कर आतंकियों को सैटेलाइट फ़ोन से पल पल निर्देश दे रहा था । यह बात पकड़े गए आतंकी कसाब ने ख़ुद स्वीकार की थी । पठानकोट और उरी हमले की कवरेज भी अधिकांश चैनलों ने इसी बेवक़ूफ़ी भरे अन्दाज़ में की । कुछ चैनलों ने तो सुबह शाम बिलावजह बहसें कर देश में युद्ध का सा माहौल भी बनाने की कोशिश की थी । चैनल जी , इंडिया टीवी और टाइम्ज़ नाउ इनमे सबसे आगे थे । सरकार के भोंपू बनने पर इनाम इकराम के तौर पर जी के मालिक सुभाष चंद्रा अब भाजपा की मदद से राज्य सभा में है और इंडिया टीवी के मालिक रजत शर्मा इसकी लाइन में हैं । टाइम्ज़ नाउ के फ़ायर ब्राण्ड एंकर अरनब गोस्वामी भाजपा के पैसे से ही अब अपना टीवी चैनल शुरू कर रहे हैं । एसे में सवाल उठना लाज़मी है कि वह एनडीटीवी जो सरकार की आँखो में आँखें डाल कर बात करने की हिम्मत करता है , सारी गाज सिर्फ़ उसी पर क्यों ? सांप , जादू टोना , अंधविश्वास और मूर्ख धर्मगुरुओं को महिमा मंडित करने वाले टीवी चैनलो पर भी क्यों नहीं ? कुछ ख़ास पार्टियों और उद्योग समूहों के हाथों बिक चुके चैनल इससे बरी क्यों ?

माना पठानकोट हादसे की कवरेज में एनडीटीवी अति उत्साह में मूर्खता कर गया मगर यह काम तो और चैनल भी किसी ना किसी रूप में कर रहे हैं । क्या उनको इस लिए छोड़ दिया जाए कि वह सरकार के चापलूस ही नहीं प्रवक्ता भी बने बैठे हैं ?

मुझे लगता है कि सरकार यदि सचमुच इस विषय में गम्भीर है तो उसे इल्लेक्ट्रोनिक मीडिया और चाहे तो पूरे मीडिया जगत के लिए एक आचार संहिता बनानी चाहिए और उसका कड़ाई से पालन भी सुनिश्चित करना चाहिए । अगर देश और समाज के हित को केंद्र में रख कर खुले मन और विवेकपूर्ण तरीक़े से आचार सहिंता बनाई जाए तो मीडिया जगत भी शायद आसानी से उसे स्वीकार कर लेगा । कोई ठोस बड़ा क़दम उठाने की बजाय सरकार यदि एनडीटीवी पर एक दिनी बैन जैसे पक्षपातपूर्ण क़दम उठाएगी तो ग़लत संदेश ही जाएगा और यह अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले के रूप में ही चिन्हित होगा ।

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