सदका टुई दा
रवि अरोड़ा
कोई शैतान बच्चा ख़ूब पिटने के बाद भी हँसता रहे तो बुज़ुर्ग पंजाबी अक्सर एक मुहावरा कहते हैं- दो पईय्यां, किद्दर गइयाँ, सदक़ा टुई दा । यानि दो लात लगीं मगर कोई असर नहीं हुआ , वारी जाऊँ पिछवाड़े पर । टुई शब्द के लिए मुआफ़ी चाहता हूँ मगर क्या करूँ लात लगने का ज़िक्र हो तो पिछवाड़े की बात करनी ही पड़ती है और पंजाबी में इसके लिए बस यही एक शब्द है और मेरी दिक्कत यह है कि अपनी बात कहने के लिए मुझे अक्सर पंजाबी भाषा की शरण में जाना ही पड़ता है । ख़ैर बात हो रही थी दो लात लगने की और लात लगने के ताज़ा उदाहरण के रूप में केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का विरोध करने वालों की वहाँ सरेआम पिटाई और उनके घरों पर हो रहे हमले के रूप में नज़र आ रहा है ।
वैसे मुद्दा कितना भी सही क्यों न हो मगर क़ानून अपने हाथ में लेने की इजाज़त तो नहीं दी जा सकती और उसका समर्थन भी नहीं करना चाहिए , यही कारण है कि केरल में दक्षिणपंथियों के घरों पर हो रहे हमलों का मैं पक्षधर नहीं हूँ मगर क्या करूँ इन हमलों के शिकारों के प्रति मन में हमदर्दी भी तो नहीं उमढ रही । अब आप ही सोचिये । सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद दस से पचास वर्ष तक महिलाओं को अयप्पा मंदिर में प्रवेश न करने देना और यदि चोरी-छिपे दो महिलायें मंदिर में प्रवेश कर जायें तो मंदिर को घंटों शुद्ध करना किस तरह से मुआफ़ी के लायक़ है । यह स्थिति तो तब है जब प्रदेश सरकार भी न्यायालय के आदेश का अनुपालन कराना चाहती है मगर पोंगापंथी हैं कि बाज़ ही नहीं आ रहे और शहर बंद , आगज़नी , बसों और सार्वजनिक सम्पत्ति में तोड़फोड़ पर उतारू हैं । डेढ़ हज़ार लोगों की गिरफ़्तारी से भी दंगाई रुक नहीं रहे और पूरे केरल को अशांत बनाये हुए हैं । अब एसे में ख़ुद जनता ने इन पोंगापंथियों से निपटने की ठानी है तो यह स्वाभाविक ही लगता है ।
हालाँकि यह कहीं साबित नहीं हो रहा कि सबरी ( पर्वत ) माला मंदिर में शुरू से ही रजस्वला महिलाओं के प्रवेश की मनाही थी । सच्चाई यह है कि अयप्पा भगवान का यह मंदिर उस दौर में शैव और वैश्य के आपसी झगड़े समाप्त करने के लिए ही आठ सौ साल पहले राजा राजसेखरी ने मध्यमार्ग के रूप बनवाया था । मान्यता है कि अयप्पा विष्णु के मोहनी रूप और शिव की संतान हैं । हरि यानि विष्णु और हर यानि शिव का पुत्र होने के कारण ही उन्हें हरिहर पुत्र कहा जाता है । कैसी विडम्बना है कि झगड़ा समाप्त करने के लिए बनवाये गए इस मंदिर के कारण ही अब झगड़े हो रहे हैं । जानकार बताते हैं कि 1950 से पहले सभी उम्र की महिलायें अयप्पा मंदिर जाती थीं मगर बाद में आग लगने की एक घटना के बाद रजस्वला उम्र की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक लगा दी गई । हालत देखिये कि कुछ महिलायें ही महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का विरोध कर रही हैं । सर्वोच्च न्यायालय में भी एक महिला जज ने दिए गए फ़ैसले का विरोध किया था । अख़बार बताते हैं कि सिने तारिका जयमाला ने वर्ष 2006 में मंदिर में ज़बरन प्रवेश किया था । वही जयमाला अब कर्नाटका सरकार में मंत्री हैं । विचारणीय है कि अपने मंदिर में एक महिला के प्रवेश से अयप्पा भगवान नाराज़ होते तो जयमाला इतने ऊँचे पद तक कैसे पहुँच गईं ? मगर हाय री जहालत , ढोंगी मान ही नहीं रहे ।
अपने मन की मैं पहले भी कह चुका हूँ कि इस मंदिर में जाने अथवा न जाने का फ़ैसला महिलाओं को ही लेना चाहिए मगर अब आये दिन हो रही ख़ुराफ़ातों को देखते हुए मन करता है कि महिलायें ही इस मंदिर का बहिष्कार कर दें । वे ख़ुद तो इस मंदिर में जायें ही नहीं साथ ही अपने पति , पुत्रों और भाइयों को भी इस मंदिर में जाने से रोकें । इस बहिष्कार का एसा असर होगा कि कुछ ही दिनो में अपने आप मंदिर में ताला लग जाएगा । देश की आधी आबादी का अपमान करने वाले इस मंदिर अथवा अन्य सभी धार्मिक स्थलों को यूँ ही नहीं छोड़ देना चाहिये । पाखंड और दकियानूसी परम्पराओं पर एसी ज़बरदस्त चोट लगनी चाहिए कि उसके पैरोकर अपने पिछवाड़े का सदक़ा भी न उतार सकें ।