शर्तिया हम हारेंगे

रवि अरोड़ा

नीच, पागल कुत्ता, नाली का कीड़ा, गंगू तेली, रावण, चोर, सांप, बिच्छू, मेंढक। बुरा न माने ये सब गालियाँ मैं नहीं दे रहा । ये गालियाँ तो वो हैं जो हमारे नेता आजकल एक दूसरे को दे रहे हैं । प्रधानमंत्री को मंचों पर चोर कहा जा रहा है और स्वयं प्रधानमंत्री एक स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचारी नम्बर वन बता रहे हैं । कोई किसी को थप्पड़ मारने की बात कर रहा है तो कोई किसी को चौराहे पर फाँसी लगाने की । कोई बोटी बोटी करने की कह रहा है तो कोई कुछ और बुरा करने की । किसी के पास अपनी कोई बात नहीं है और सभी दूसरों के पाप गिनाने में लगे हैं । सत्रहवीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनावों ने वह सब राष्ट्रीय पटल पर दिख रहा है जो गली मोहल्लों में सरकारी नल से पहले पानी भरने को लेकर फूहड़ महिलाओं में होता है । स्वयं प्रधानमंत्री की भाषा इतनी स्तरहीन है जितनी किसी ग्राम प्रधान से भी अपेक्षा नहीं की जा सकती । मैं मैं मैं और सिर्फ़ मैं । कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते करते उन्होंने भाजपा मुक्त भारत कर दिया । बात मोदी से शुरू होती है और मोदी पर ही ख़त्म । उधर विपक्ष भी प्रधानमंत्री पद की गरिमा तार तार किए हुए है और उन्हें सड़कछाप उपमाओं से ही नवाज़ रहा है । मुझे तो याद नहीं कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे किसी अन्य व्यक्ति को कभी इतनी गालियाँ दी गई होंगी । बेशक खेल की शुरुआत स्वयं नरेंद्र मोदी ने ही की और विपक्षी नेताओं का जम कर मज़ाक़ पिछले पाँच सालों में उन्होंने उड़ाया मगर विपक्ष उसका बदला एन चुनाव के वक़्त इस ओछे तरीक़े से लेगा एसा तो स्वयं मोदी जी ने भी सपने मे नहीं सोचा होगा ।

राहुल गांधी अब तक कम से एक हज़ार बार सार्वजनिक मंचों पर मोदी जी को चोर कह चुके हैं । आरोप सिद्ध होना तो दूर अभी न्याय की कसौटी पर भी नहीं पहुँचे और प्रधानमंत्री पद की गरिमा को तार तार कर दिया गया। मोदी जी मंचों पर ख़ुद बड़ी शान से गिना रहे हैं कि विपक्ष ने उन्हें किस किस गाली से नवाज़ा है । पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी तो जैसे अपने प्रदेश को भारत का हिस्सा ही नहीं समझतीं । प्रधानमंत्री को थप्पड़ मारने , उठक-बैठक लगवाने और जेल भेजने की बात भी वे कर चुकी हैं । मायावती, अखिलेश, आज़म खान, खड़के , मणि शंकर अय्यर और अमित शाह की भाषा भी सड़क छाप दिखी । पहली बार हुआ कि देश की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष का रोड शो एक प्रदेश में नहीं हो सका। हालाँकि इन अध्यक्ष महोदय यानि अमित शाह ने भी चुनाव आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ाते हुए अपने शो में धार्मिक नारे लगवाए । यही नहीं हिंदू वोटों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने कुछ कलाकारों को भगवान राम, लक्ष्मण और हनुमान बना कर मीलों अपने जुलूस के आगे आगे चलवाया । भगवान पैदल और पार्टी अध्यक्ष रथ पर , वाह रे राम भक्त । अब जो राष्ट्रीय अध्यक्ष ‘ जो चाहे उखाड़ लो ‘ जैसी बातें अपनी रैली में कर रहा हो , उनसे किसी शोभनीय बात की उम्मीद यूँ भी नहीं की जानी चाहिए । अजब माहौल है । साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जैसे लोग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे को राष्ट्रभक्त और मुंबई में हुए आतंकी में हमले में शहीद हुए करकरे को देश द्रोही बता रही हैं । यह स्थिति तो तब है कि आतंकी ब्लास्ट के मामले में प्रज्ञा ख़ुद हाल ही ज़मानत पर जेल से बाहर आई हैं ।

मतदान का आख़िरी चरण ख़त्म हो गया । दुनिया का सबसे महँगा चुनाव अभी हमने देखा । अमेरिका के चुनावों से भी डेड गुना महँगा । ग़रीब देश में साठ हज़ार करोड़ रुपये जिस चुनाव में ख़र्च हुए उसमें चालीस फ़ीसदी लोगों ने हिस्सा ही नहीं लिया । दो लाख करोड़ रुपये का सट्टा लगा । ग़रीब जनता का प्रतिनिधि बनने को सत्तर सत्तर लाख रुपये प्रत्याशियों ने ख़र्च किए ।एसे में क्या आपको भी नहीं लगता कि देश की सबसे बड़ी पंचायत के चुनाव परिणाम में बेशक कोई भी जीते मगर हारेंगे हम ही । हारेगा हमारा लोकतंत्र ही ?

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