वीर दास के बहाने

रवि अरोड़ा
स्टैंडअप कॉमेडियन वीर दास का नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना था । हाल ही में जब उसके खिलाफ देश को बदनाम करने के मुकदमे दर्ज हुए तो उसके बारे में पता चला । उसके बारे में अनभिज्ञता की वजह शायद यह भी हो सकती है कि वह भारत में कम और विदेशों में ज्यादा काम करता है और उसके तमाम मोनोलॉग हिंदी नहीं वरन अंग्रेजी में होते हैं । सच कहूं तो यूं भी स्टैंडअप कॉमेडी के नाम पर तो मैं बस कपिल शर्मा और राजू श्रीवास्तव जैसे कुछ लोगों को ही जानता हूं । हालांकि कॉमेडी के नाम पर ये लोग भी केवल छिछोरपना ही करते हैं । मगर फिर भी अपनी समस्याओं से घिरा आम भारतीय कुछ देर को हंसने के लिए इनके शो देखना पसंद करता ही है । राजनीतिक व्यंग के नाम हमारे यहां केवल वरुण ग्रोवर और संपत सरल जैसे चंद लोग ही दिखाई पड़ते हैं । दरअसल देश में राजनीतिक व्यंग का बाजार अभी ढंग से विकसित ही नहीं हुआ है और इसकी न तो कोई खास डिमांड है और न ही सप्लाई । हमारे यहां नेता लोग ही एक दूसरे की इतना छीछालेदर कर देते हैं कि किस कॉमेडियन के लिए कुछ कहने सुनने की गुंजाइश ही नहीं बचती । कोई किसी को पप्पू कह देता है तो कोई किसी को फेंकू । दूसरों को चोर तो खुद को चौकीदार बता दिया जाता है । बाद में ऐसे नारे भी मंचों पर लगवाए जाते हैं कि चौकीदार ही चोर है । अब आप ही बताइए कि क्या है किसी कॉमेडियन के लिए कोई गुंजाइश ?

मगर विगत 13 नवंबर को अमेरिका के जे एफ कैनेडी सेंटर फ़ॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में वीर दास ने जो अपना सात मिनट का मोनोलॉग आई केम फ्रॉम टू इंडिया सुनाया वह तो किसी भी सूरत कॉमेडी था ही नहीं । हालांकि वीर दास और उनके चाहने वाले इस कविता को व्यंग की श्रेणी में रख रहे हैं मगर यह तो व्यंग से भी आगे की चीज थी । वीर दास जब कहता है कि मैं उस भारत से आता हूं जहां दिन में औरत की पूजा की जाती है और रात में गैंग रेप , तो इसमें झूठ कहां है ? यदि झूठ है तो बताएं कि नारी पूजा के पाखंड से लबरेज हमारा देश दुनिया भर में बलात्कार की राजधानी क्यों कहा जाता है ? किसानों और कोरोना पर भी व्यंग कहां कसा वीर दास ने , उसने तो सीधा सीधा सच ही बयान किया है ? हां अब ये सच सत्ता प्रतिष्ठान को अपना अपमान लगता है तो कोई क्या करे ? कहा जा रहा है कि यह सब कुछ विदेश की धरती पर क्यों कहा ? इसका मतलब भारत में कहा जाता तो ठीक था ? यानी ये लोग स्वीकार करते हैं कि वीरदास जो कह रहा है वह सच है ? कोई इनसे पूछे कि विदेश में कहा तब इतने मुकदमे ठोक रहे हैं , भारत में कहता तो क्या छोड़ देते ? तब केवल मुकदमों तक ही रुकते या इससे भी आगे बढ़ जाते ?

चलिए अब अदालत जो फैसला देगी सो देगी। वैसे वीर दास के खिलाफ खड़े लोगों को यह जरूर याद रखना चाहिए कि वीर दास ने यह सब उस देश में कहा जो दुनिया का सबसे सफल लोकतंत्र माना जाता है और उनके यहां इस तरह की बातें बड़ी सामान्य हैं । इस तरह के व्यंगों को वे लोग हमारी तरह दिल से नही लगाते । वे लोग तो न केवल उनका स्वागत करते हैं अपितु उस पर मनन भी करते हैं । बेशक अमेरिका का लोकतंत्र भी कोई आदर्श लोकतंत्र नहीं है मगर फिर भी उनके यहां अभिव्यक्ति का इतना खुलापन है कि हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते । हाल ही में हुए राष्ट्रपति के चुनावों में वहां एक बड़े शहर के चौक पर तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप की आदमकद नग्न मूर्ति लगाई गई और आते जाते लोगो से ट्रंप के पिछवाड़े पर लात मारने का आव्हान किया गया । बेशक यह भी किसी स्वस्थ लोकतंत्र का नमूना नही था मगर वह भी स्वस्थ लोकतंत्र कतई नही है कि कोई वीर दास हमारी नग्न सच्चाई पर बात भी न कर सके ।

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