वन्दे मातरम् बनाम जय हिंद

रवि अरोड़ा
लाल क़िले की प्राचीर से राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जब उपस्थित जन समूह का आह्वान किया कि मेरे साथ दोनो हाथ उठा कर दोहरायें- भारत माता की जय और वन्दे मातरम् , तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने न तो ये नारे लगाये और न किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया दी । हालाँकि कार्यक्रम में मौजूद सभी ख़ास और आम लोग पूरे जोश से प्रधानमंत्री के साथ नारे लगा रहे थे मगर अकेले केजरीवाल ही इस तरह ख़ामोश बैठे थे जैसे उन्होंने कुछ सुना ही न हो । बेशक उन्हें पता होगा कि यह कार्यक्रम किसी पार्टी अथवा किसी सरकार का नहीं है। सम्बोधन करने वाला व्यक्ति भी किसी पार्टी का नहीं देश का प्रधानमंत्री है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि स्वतंत्रता दिवस पूरे देश है किसी दल का नहीं, एसे में किसी ज़िम्मेदार और संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए एसा करना उचित था क्या ? यक़ीनन केजरीवाल उन नारों को लेकर असहज थे जो प्रधानमंत्री ने लगवाए । बताते हैं कि कई नारे किसी धर्म की राजनीति को पसंद हैं तो कई किसी को नापसंद । अजब स्थिति है कि आजादी की पौनी सदी होने को आई और हमारे यहाँ आजतक नारे जैसी चीज़ों पर भी राजनीति बंद नहीं हुई । पता नहीं देश के मुसलमानो को वन्दे मातरम् अथवा भारत माता की जय जैसे नारों से परहेज़ है भी अथवा नहीं मगर इस पर राजनीति तो हो ही रही है । उधर, मुसलमानों को इन नारे से चिड़ हो सकती है यह मानकर भी कुछ लोग जानबूझकर उन्ही को ही दोहराते हैं ।
सब जानते हैं कि आज़ादी के आंदोलन में नारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । वन्दे मातरम्, भारत माता की जय और जय हिंद जैसे नारे तो पिछली डेड दो सदी से देश के बच्चे बच्चे की ज़बान पर हैं । 1882 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनंद मठ से वन्दे मातरम् नारा क्रांतिकारियों की ज़बान पर चढ़ा । 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अज़ीमुल्ला खान ने मादरे वतन हिंदुस्तान ज़िंदाबाद का नारा दिया जिसका हिंदी अनुवाद किरण चंद्र बंदोपाध्याय ने अपने नाटक भारत भूमि में भारत माता की जय के रूप में किया । आबिद हसन सफ़रानी ने जय हिंद का नारा दिया जिसे युद्द के उद्घोष के रूप में सुभाष चंद्र बोस ने इस्तेमाल कर घर घर पहुँचाया ।
नारे और गीतों को लेकर उठापटक होते देख सन 1937 में ही कांग्रेस ने एक कमेटी गठित कर पाया कि वन्दे मातरम् गीत में पहले दो पहरे ही देश के लिए हैं और शेष गीत देवी देवताओं के लिए है अतः राष्ट्र गीत के रूप में शुरुआती दो पद ही स्वीकार किए गए और जन गान मन को राष्ट्र गीत की मान्यता दी गई । हालाँकि नेहरू को जय हिंद नारा इतना भाया कि देश की पहली मुहर भी जय हिंद के नाम से बनी और पहली डाक टिकिट भी जय हिंद लिखी प्रकाशित हुई । स्वतंत्रता दिवस पर लाल क़िले से देश को सम्बोधित करते हुए जय हिंद का नारा उन्होंने आज़ादी के पहले ही प्रतिस्थापित कर दिया था और उनके बाद के सभी प्रधानमंत्रियों ने इस परम्परा को निभाया और अपने भाषण के बाद मौजूद लोगों से जय हिंद के नारे लगवाए ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस परम्परा का निर्वाह कर रहे हैं मगर अब इसमें कुछ बदलाव उन्होंने किये हैं । आज सातवीं बार लाल क़िले से देश को सम्बोधित करते हुए उन्होंने पहले भारत माता की जय और वन्दे मातरम के नारे तीन तीन बार लगवाए और आख़िर में एक बार जय हिंद का नारा लगाया । हालाँकि पहले वे तीन बार जय हिंद का नारा सर्वप्रथम लगवाते थे और बाद में भारत माता की जय कहते थे । इस बार उन्होंने एसा क्यों किया, यह तो वही जानें मगर मेरा मानना है कि देश को और ख़ास तौर पर देश के नेताओं को अब कम से कम नारों को लेकर तो राजनीति नहीं करनी चाहिये । बेशक सभी नारे अच्छे हैं और उनसे करोड़ों लोगों की भावनायें भी जुड़ी हुई हैं मगर यदि कोई सर्वमान्य नारा हम तलाश लें तो बहुत अच्छा हो । ताकि एसी स्थिति फिर कभी न आए कि देश की आज़ादी का जश्न हो तथा पूरी दुनिया उसे लाइव देख रही हो और कोई केजरीवाल यूँ ही चुपचाप बुत बना बैठा रहे ।

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