लकीर सोनू सूदों की
रवि अरोड़ा
अपनी तरफ़ से मैं बहुत कोशिश करता हूँ कि राजनीति और राजनीतिज्ञों पर कम से कम बात की जाये मगर हालत यह है कि मैं तो कंबल छोड़ना चाहता हूँ मगर कंबल मुझे नहीं छोड़ रहा । अब सोनू सूद का प्रकरण ही देख लीजिये । आपको नहीं लगता कि देश की राजनीति और राजनीतिज्ञ हैं ही इसी योग्य कि इन्हें सुबह शाम गरियाया और पानी पी पी कर कोसा जाये ? प्रवासी मज़दूरों की मदद करने वाले फ़िल्म स्टार सोनू सूद पर निशाना साध कर शिव सेना सांसद संजय राउत ने भी साबित कर दिया है कि मुल्क की राजनीति किसी रियायत के योग्य है ही नहीं । जो काम सरकारों, राजनीतिक दलों और नेताओं को करना चाहिये था वह काम देश में हज़ारों लाखों सोनू सूदों ने किया । बिना किसी संसाधन व बिना किसी सरकारी मदद के लाखों लोगों के भोजन का इंतज़ाम किया और उन्हें उनके घर पहुँचाया मगर अब सोनूओं को अपनी खाल भी बचानी भारी पड़ रही है । पता नहीं ये नेता सबको अपने जैसा ही क्यों समझते हैं ? क्यों नहीं मानते कि निस्वार्थ भी किसी की मदद की जा सकती है ?
सोनू सूद पिछले बीस सालों से फ़िल्मों में काम कर रहे हैं । दर्जनों हिंदी, कन्नड़, तेलगू और तमिल फ़िल्मों में काम करके उन्होंने एक पहचान बनाई है । बेशक फ़िल्मों में वे अक्सर खलनायक बनते हैं मगर हज़ारों-लाखों श्रमिकों के लिये तो वे हीरो हैं , रियल लाइफ़ हीरो । रात रात भर जाग कर उन्होंने हज़ारों मज़दूरों को बसों, ट्रेन और यहाँ तक कि हवाई जहाज से भी निशुल्क उनके घर पहुँचाया । मानवता की उनकी यह सेवा आज तक जारी है । ट्विटर पर किसी मज़दूर ने मदद की गुहार लगाई नहीं कि सोनू का फ़ोन उसे पहुँच जाता है । श्रमिकों में सोनू की प्रसिद्धी इस चरम पर पहुँच गई है कि श्रमिक अपने नवजात बच्चों के नाम सोनू सूद रख रहे हैं । बस में सवार होने से पहले महिलायें ज़बरन उनकी आरती उतार रही हैं और उनके गुणगान वाले गीत भी गाये जा रहे हैं । मगर यहीं सोनू मात खा गये । उनकी प्रसिद्धी से नेताओं के अहंकार को ठेस लग गई । अपने सामने लोगों को गिड़गिड़ाता देखने की अभ्यस्त राजनीति यह कैसे बर्दाश्त कर ले कि बिना खादी पहने, बिना चुनाव लड़े और बिना ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद किये कोई कैसे जनसेवक हो सकता है । नतीजा शिव सेना सांसद संजय राउत के रूप में सामने आ रहा है और वे पूछ रहे कि सोनू को बसें कहाँ से मिली , कितना ख़र्चा हुआ और उन्हें कौन सी पार्टी मदद कर रही है ? सांसद महोदय को इसी बात की जलन हो रही है कि सोनू सूद को महात्मा की उपाधि क्यों दी जा रही है ? अब सोनू बेचारे क्या करते , उन्हें सारा काम छोड़ कर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के यहाँ हाज़िरी भर कर सत्तानशीं लोगों के अहंकार की तुष्टि करनी पड़ी । हालाँकि बात अभी यहीं नहीं रुकी है और सोनू के ट्विटर एकाउंट से एसे संदेश भी हटाए जा रहे हैं जिसमें लोगों ने उन्हें अपनी मदद की गुहार लगाई अथवा धन्यवाद किया । इस कार्य को कराने वाले लोगों की मंशा शायद यही है कि किसी तरह साबित किया जाये कि सोनू ने लोगों की मदद की ही नहीं और जो भी मदद हुई वह केवल सरकारों ने की ।
बात इकलौते सोनू सूद की नहीं है । लॉकडाउन में आम आदमी के समक्ष खड़ी हुई दुशवारियों में तमाम सरकारों के फ़ेल हो जाने पर समाज के हज़ारों लाखों गुमनाम सोनू सूदों ने अपने हम वतनों का हाथ थामा है । जिससे जो बन पड़ा , उसने वही किया । मानवता की सच्ची सेवा की उतनी ही कहानियों ने जन्म लिया हालात ने जितने पीड़ित सृजित किये । हालाँकि कभी पास, कभी लॉकडाउन उल्लंघन और कभी कोरोना फैलाने के नाम पर उनका ख़ूब उत्पीड़न भी हुआ मगर मदद का यह सिलसिला एक दिन भी नहीं रुका । समाज के इन्हीं गुमनाम नायकों को आज एक नाम मिला है सोनू का । सत्ता का अहंकार चाहता तो इन सोनूओं का क़द छोटा करने को उनके समक्ष अपने कामों की एक लम्बी लकीर खींच सकता था मगर यह तो उसे आता ही नहीं सो सोनूओं की लकीर को ही मिटाने पर आमादा है ।