योर बॉडी माई चॉइस का नया संस्करण

रवि अरोड़ा
बेशक उत्तर प्रदेश और अमेरिका में किसी किस्म की कोई समानता नहीं है मगर हाल ही में दोनों जगह कुछ ऐसा हुआ है कि भौगोलिक रूप से बेहद दूर इन क्षेत्रों में भी एक अनजाना सा मेल उभर कर सामने आ गया है। हाल ही में अमेरिका में वह डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीत गए हैं जिन्हें घोषित रूप से महिला विरोधी माना जाता है। दूसरी बार चुने गए ट्रंप इकलौते ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति भी हैं जो दोनों बार महिलाओं को हरा कर सत्ता पर काबिज हुए हैं । उनकी इस जीत से उत्साहित रिपब्लिकन पार्टी के उनके समर्थकों ने आजकल अमेरिकी सोशल मीडिया पर महिला विरोधी कैंपेन जोर शोर से चलाया हुआ है। सन 1960 में महिला वादी संगठनों द्वारा शुरू किए गए आंदोलन ‘ माई बॉडी माई चॉइस ‘ का मजाक उड़ाते हुए उसी की तर्ज पर स्लोगन चलाया जा रहा है ‘ योर बॉडी माई चॉइस ‘ । यही नहीं ‘ गेट बैक टू किचन ‘ जैसे नारे भी दिए जा रहे हैं। पिछले एक सप्ताह में ही करोड़ों लोग ट्वीटर यानी एक्स पर ऐसे संदेशों को देख चुके हैं। इधर उत्तर प्रदेश में भी महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर कुछ कुछ ऐसा ही तमाशा हो रहा है जैसे उन्हें भी कहा जा रहा हो कि ‘ योर बॉडी आवर चॉयस ‘ । यकीन न हो तो उत्तर प्रदेश महिला आयोग की उन सिफारिशों पर निगाह डाल लीजिए जो उसने हाल में प्रदेश सरकार को भेजी हैं ।
ट्रंप समर्थकों के महिला विरोधी अभियान का ही नतीजा है कि अमेरिका में ट्रंप के खिलाफ महिलाएं एकजुट हो रही हैं और प्रदर्शन आदि के साथ साथ सोशल मीडिया पर जवाबी कार्रवाई के रूप में ‘ 4 बी मूवमेंट ‘ की भी चेतावनी दे रही है। मूलतः साउथ कोरिया से शुरू हुए इस ‘4 बी ‘आन्दोलन के तहत महिलाओं ने घोषणा की थी कि वे न तो शादी करेंगी और न ही बच्चे पैदा करेंगी। यही नहीं पुरूषों के साथ डेट पर नहीं जाने की भी घोषणा इस आंदोलन का हिस्सा थी । बेशक उत्तर प्रदेश में ऐसे हालात कतई नहीं हैं मगर माहौल को उसी तरह से बिगाड़ने की कोशिशें तो हो ही रही हैं जैसे अमेरिका में रिपब्लिकन कर रहे हैं। मजाक देखिए कि इसे पेश ऐसे किया जा रहा है जैसे यह सब महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर है। उत्तर प्रदेश महिला आयोग ने सरकार से अनुरोध किया है कि उन पुरुष दर्जियों पर रोक लगाई जाए जो महिलाओं का सिलाई हेतु नाप लेते हैं। सुझाव है कि इस काम के लिए महिला दर्जी होने चाहिए । जिम, नाटक और योग केंद्रों पर भी महिलाओं के प्रशिक्षण हेतु पुरूषों पर रोक और महिला प्रशिक्षकों की भर्ती की बात इन सुझावों में कही गई है। अब यह तो सबको मालूम ही है कि प्रदेश की योगी सरकार ने पहले ही महिला कर्मचारियों के कारखानों में रात की शिफ्ट में काम करने पर रोक लगा रखी है। लैंगिक समानता के नारों के बीच ये सुझाव अब एक और नई इबारत लिख रहे हैं। पता नहीं यह सुझाव देने से पहले राज्य महिला आयोग ने जानकारी एकत्र कर ली थी अथवा नहीं कि देश प्रदेश में कितनी महिला दर्जी उपलब्ध हैं ? जिम आदि में जहां महिला ट्रेनर ढूंढे से भी नहीं मिलतींं, उनके आंकड़े भी आयोग ने जुटा ही लिए होंगे ? यदि नहीं तो क्या इसका अर्थ यह नहीं होगा कि जाने अनजाने महिलाओं के नए कपड़ों की सिलाई और फिटनेस के लिए उनके जिम जाने पर रोक लगाने की जुगत हो रही है ? चलिए माना कि देर सवेर महिलाओं को इन कामों के लिए प्रशिक्षित कर ही लिया जाएगा मगर छोटे कारोबारी माने जाने दर्ज़ियों अथवा जिम संचालकों के लिए आर्थिक रूप से यह कैसे मुफीद होगा कि वे एक ही काम के लिए महिलाओं और पुरूषों को अलग अलग रखें ? एक बड़ा सवाल तो यह भी है कि क्या ऐसी सिफारिशें करने से पहले आयोग से महिलाओं की इच्छा जानने की कोशिश भी की थी अथवा नहीं ? असल सवाल तो यह भी है कि क्यों नहीं आयोग यह फैसला महिलाओं पर छोड़ देता कि वे किससे अपने कपड़े सिलवाएंगी और किससे कसरत का प्रशिक्षण लेंगी ? क्या इस तरह के नए फरमान भी ‘ योर बॉडी माई चॉइस ‘ का ही भारतीय संस्करण नहीं कहलाएंगे ? यदि नहीं तो सरकार को चाहिए कि महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद करने पर जोर दे और ऐसे ऊल जलूल कामों से बचे जो जग हंसाई का बायस बन सकते हैं।

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