मोहरा तुम्हारा ख़र्च हमारा !

रवि अरोड़ा
शायद वर्ष 1986 की कोई सर्द शाम थी । नवयुग मार्केट के अम्बेडकर पार्क में प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह की जनसभा होनी थी । हज़ारों की भीड़ पार्क में मौजूद थी और सभी मुख्यमंत्री के आगमन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे । लाउडस्पीकर पर स्थानीय नेताओं के ज़ोरदार भाषण चल रहे थे । तभी आसमान में एक हेलीकाप्टर की गड़गड़ाहट सुनाई दी और फिर अचानक हेलीकोप्टर ग़ायब हो गया । पंद्रह मिनट बाद एक रिक्शा चालक खद्दरधारी एक सवारी को लेकर सभास्थल पर पहुँचा और सीधा मंच की ओर बढ़ने लगा। मौक़े पर मौजूद एसएसपी वीएन राय को यह देख कर बहुत ग़ुस्सा आया और उन्होंने रिक्शा चालक को एक झांपड़ रसीद कर दिया और तमतमाते हुए सवारी की ओर भी लपके मगर देखकर हदप्रद रह गये कि सवारी कोई और नहीं स्वयं मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह हैं । दरअसल किन्हीं कारणों से पायलेट ने हेलीकोप्टर अम्बेडकर पार्क में नहीं उतारा और रामलीला मैदान घंटाघर में लैंड कराया । वहाँ से मुख्यमंत्री ने एक रिक्शा लिया और चौपाला-सिहानी गेट होते हुए अकेले ही बिना किसी सुरक्षा कर्मी के अम्बेडकर पार्क आ गये । आज के दौर में जनता की गाढ़ी कमाई अपनी और अपनों की कथित सुरक्षा के नाम पर लुटाने की ख़बरें पढ़ता हूँ तो वे पुराने दिन बेसाख़्ता याद आते हैं ।
कंगना रनौत बनाम संजय राउत की ज़बानी जंग और इस प्रकरण में पर्दे की ओट से तीर चला रही भाजपा जैसे फ़ालतू विषय पर बात करके मैं आपकी बुद्धिमत्ता का अपमान नहीं करना चाहता । यूँ भी इस मामले की आढ़ में तमाम भोंपू ख़बरिया चैनल्स आपकी सोच-समझ और आपके सरोकारों को इस हद तक
नीचा दिखा चुके हैं कि अब मुझमे इतना साहस नहीं कि मैं भी आपको नज़रों से गिरने को ऐसा कोई जतन करूँ । हालाँकि विषय मेरा भी इसी सियासी जंग की देन है मगर उसके केंद्र में सरासर मैं और आप ही हैं । दरअसल मैं बात करना चाहता हूँ कंगना रनौत को मिली वाई प्लस सुरक्षा की , जिसका भुगतान आपकी और मेरी गाढ़ी कमाई से ही होना है ।
केवल कंगना रनौत की ही क्यों बात करें ? देश भर में एसे हज़ारों लोग हैं जो हमारे आपके द्वारा दिए गए टैक्स के पैसे पर अपनी मूँछें ऊँची कर रहे हैं । देश में सीआरपीएफ का बजट 26 हज़ार करोड़ रुपये सालाना है और उसके साढ़े सात फ़ीसदी जवान नेताओं और उनके चहेतों की सुरक्षा में ही लगे हैं । तीन सौ से अधिक वीआईपीज की सुरक्षा में ही 53 सौ जवान तैनात हैं । स्वयं प्रधानमंत्री का सुरक्षा दायरा एक हज़ार सुरक्षाकर्मियों का है और उन पर सालाना छः सौ करोड़ रुपया ख़र्च होता है । देश के लगभग सभी जिलो में औसतन पचास ऐसे नेता और कथित बड़े लोग हैं जो स्थानीय पुलिस की सुरक्षा में स्वयं के ख़ास होने का गुमान लोगों को देते हैं । मंत्री, सांसद, विधायक, मेयर और जज आदि तो सुरक्षा के घेरे में हैं ही, हर राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता भी गनर लिये घूम रहे हैं । कमाल की बात यह है कि जिस पार्टी की सरकार होती है, जान का ख़तरा भी उन्ही के नेताओं को माना जाता है और सुरक्षा भी उन्हें ही मिलती है । सरकार हटते ही ख़तरा भी ख़त्म और गनर भी ग़ायब ।
हो सकता है नेताओं और उनके चहेते की सुरक्षा पर हो रहा यह ख़र्च आपको ग़ैरज़रूरी न लगे । आपकी इस सोच को मैं कोई चुनौती भी नहीं दूँगा मगर आपको यह अवश्य याद दिलाना चाहूँगा कि तमाम हवा हवाई बातों के बावजूद हमारी 24 फ़ीसदी आबादी आज भी बेहद ग़रीब है और भुखमरी के अंतराष्ट्रीय सूचकांक में 119 देशों में हम अभी भी 112वें स्थान पर खड़े हैं । चलिये इन आँकड़ों को भी जाने दें और केवल कंगना की ही बात करें । विचार करें कि उसको वाई प्लस सुरक्षा देने के पीछे राजनीति के अतिरिक्त भला और क्या है ? चलिए आप राजनीति भी कीजिये मगर कम से कम 48 करोड़ के बंगले में रहने वाली अपने इस मोहरे से सुरक्षा ख़र्च तो वसूलिये । अजी आर्थिक संकट के इस दौर में कम से कम यूँ हमारी गाढ़ी कमाई तो न लुटाइये ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

फल का नहीं कोई फ़ल

फल का नहीं कोई फ़लरवि अरोड़ा काफी दिनों बाद एक बार फिर देवभूमि उत्तराखंड जाना हुआ । हालांकि इन दिनों…

खाई भी हमें देख रही है

खाई भी हमें देख रही हैरवि अरोड़ाभूतपूर्व आईएएस अधिकारी व मशहूर व्यंगकार अवे शुक्ला की किताब ' होली काऊज़ एंड…

बदजुबानों की फ़ौज

बदजुबानों की फ़ौजरवि अरोड़ाअटल बिहारी वाजपेई ने अपनी गलत बयानी पर एक बार कहा था कि चमड़े की जबान है,…

गपोड़ गाथा

भारत पाकिस्तान के बीच हुए संक्षिप्त युद्ध की भारतीय टीवी चैनल्स द्वारा की गई रिपोर्टिंग देखकर पंजाब की एक मशहूर…