मेरे हनुमान तेरे हनुमान

रवि अरोड़ा

उन दिनो आठवीं क्लास में पढ़ता था । एक दिन क्लास में नए टीचर आये । नाम था दिनेश सिंह । उन्होंने एक एक कर हम सब बच्चों के नाम पूछे । जब मेरा नम्बर आया तो मैंने बताया-रवि कुमार । उन्होंने पूछा रवि कुमार क्या ? मैं इस ‘क्या‘ को नहीं समझ पाया तो वे नाराज़ हो गए और बोले अबे कौन जात है ? मैं बेवक़ूफ़ फिर भी नहीं समझा । इस पर वे आग बबूला हो गए । बचाव में इसबार मैंने कहा कि पंजाबी हूँ । इस बार चांटा ही पड़ गया और वे बोले-अबे पंजाबी कोई जात होती है क्या ? कल घर से पूछ कर आइयो । घर आ कर अपनी माँ से मैंने अपनी जाति पूछी तो उन्होंने बताया की हम लोग अरोड़ा हैं । सुन कर बड़ी राहत हुई कि चलो शुक्र है कि मेरी कोई जाति तो है वरना अगले दिन फिर पिटना पड़ता । वैसे मुझे हैरानी हुई की मेरे पिता , चाचा , ताऊ और दादा जी कोई भी अपने नाम के साथ अरोड़ा क्यों नहीं लगाता ? माँ से जब यह पूछा तो वह भी कोई संतोष जनक जवाब नहीं दे पाईं । उन्होंने बस इतना बताया कि पंजाब में हम लोग इलाक़े के चौधरी थे और सभी लोग-चौधरी-चौधरी ही पुकारते थे । बहरहाल मेरा काम तो हो ही चुका था और अब मैं भी जाति वाला हो गया था । हालाँकि अकादमिक रिकार्ड में यह अरोड़ा शब्द में कभी नहीं जुड़वा सका और एमए पास करने तक रवि कुमार ही रहा । अख़बार की दुनिया में आया तो अनेक रवि आस पास दिखे तो अलग शिनाख्त के लिए फिर अरोड़ा शब्द की पनाह में जाना पड़ा और रवि कुमार से रवि अरोड़ा हो गया । हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा हनुमान जी की जाति बताने पर अपनी आठवीं क्लास के मास्टर दिनेश सिंह बहुत याद आये । क़सम से ।

सुबह अख़बार में पढ़ा कि दलितों ने आगरा के एक हनुमान मंदिर पर कब्ज़ा कर लिया है । भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर ने हनुमान मंदिरों के चढ़ावे पर दलितों के हक़ की बात की है । दलितों के अनेक अन्य संघटनों ने हनुमान मंदिरों में पुजारी किसी दलित को बनवाने की घोषणा भी कर दी है । एक दलित नेता ने योगी से अन्य भगवानों की जातियाँ भी बताने का आग्रह किया है ताकि दलित अपने भगवान अलग से छाँट लें । उधर अनेक ब्राह्मण संघटन दावा कर रहे हैं कि हनुमान ब्राह्मण थे अतः उन पर हमारा पहला हक़ है । आलम यह है कि पूरे देश में हनुमान की जाति खोज प्रतियोगिता सी ही शुरू हो गई है और इस प्रतियोगिता में बड़े बड़े दिग्गज कूद रहे हैं । बाबा राम देव कह रहे हैं कि हनुमान क्षत्रीय थे । केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह कह रहे हैं कि हनुमान आर्य थे । एससीएसटी आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार राम दावा कर रहे हैं कि नहीं हनुमान आदिवासी थे ।

पता नहीं आपकी इन ख़बरों पर क्या प्रतिक्रिया है मगर मेरे मुँह से तो बार बार एक ही शब्द निकल रहा है- लानत है । अज़ी ख़ूब घटियापना करो मगर देवी-देवताओं को तो बक्श दो । कोई योगी से पूछे कि हनुमान की जाति महर्षि भास , वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसी दास जैसे राम कथा के रचयिताओं को भी नहीं मालूम थी तो आप को कैसे पता चल गई ? चलिए माना कि आप सबसे बड़े राम कथा मर्मज्ञ हैं और आप सबसे अधिक जानते हैं , फिर भी एसा क्या हुआ कि आपको हनुमान की जाति सार्वजनिक करने की आवश्यकता पड़ गई ? क्या राम को क्षत्रिय और कृष्ण को यादव बताने से काम नहीं चल रहा था जो अब हनुमान जी को भी जातियों के बँटवारे में घसीट लाये ? सच कहूँ तो मुझे साफ़ दिख रहा है कि हमारा पूरी तरह राजनीतिक पतन हो चुका है । समाज में यूँ भी जाति प्रथा का कोढ़ है और ऊपर से ये पतित नेता आग में हाथ तापने आ जाते हैं । हनुमान जी कि जाति बताने भर से जो एक नया बँटवारा समाज में होगा उससे हमारा आपका नहीं इन पतितों का ही भला होना है । हमें तो मास्टर दिनेश सिंह जैसों की पिटाई से बचने को हर बार अपनी जाति की शरण में जाना ही पड़ेगा । कहिये क्या कहते हैं ?

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