भूखे पेट ही होगा भजन

रवि अरोड़ा
लीजिए अब आपकी झोली में एक और तीर्थ स्थान आ गया है। पिथौरागढ़ के जोलिंग कोंग में मोदी जी ने कैलाश पर्वत के दर्शन कर इस पूरे क्षेत्र को विकसित करने को अपनी तिजोरी खोल दी है। बताया जा रहा है की 4 हजार दो सौ करोड़ रुपए की लागत से क्षेत्र में शिवधाम, होटल, यात्री निवास, सड़कें और न जाने क्या क्या बनेगा । इससे पहले मोदी जी अयोध्या में भव्य राम मंदिर के शिलान्यास के अतिरिक्त काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर, केदार नाथ धाम, सोमनाथ मंदिर समेत अनगिनत अन्य मंदिरों का नया भव्य रूप भी अपनी जनता को सपर्पित कर चुके हैं। भारत में ही नहीं अबू दाबी और बेहरीन जैसी विदेशी भूमि पर भी अनेक मंदिरों का उद्घाटन मोदी जी के हाथों हुआ है। चार धाम यात्रा हेतु बारहमासी सड़क, अनेक अन्य प्राचीन मंदिरों का विकास और झारखंड के बैद्यनाथ मंदिर समेत अनेक प्राचीन मंदिरों हेतु हवाई मार्ग भी उन्होंने विकसित कराए हैं। हिमाचल प्रदेश में 108 फुट ऊंची हनुमान जी, हैदराबाद में संत रामानुजाचार्य की 208 फुट ऊंची और कोयंबटूर में भगवान शिव की 112 फुट ऊंची मूर्ति समेत अनेक बड़ी मूर्तियां भी उन्होंने जनता को समर्पित कीं हैं । इधर वृंदावन-मथुरा समेत अनेक अन्य प्राचीन मंदिरों के उद्धार की भी योजनाएं बन रही हैं। यकीनन मोदी सरकार के ये सभी कार्य इसलिए प्रशंसनीय हैं कि इनसे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है । कहना न होगा कि धार्मिक प्रवृत्ति का आमजन इससे गदगद है और मोदी जी को हिन्दू हृदय सम्राट की उपाधि से नवाज रहा है । वोट की राजनीति की नजर से भी देखें तो इसमें कुछ अनोखा नहीं है मगर फिर भी यह तो पता चलना ही चाहिए कि इस राजनीति की कीमत आखिर कौन चुका रहा है ? ख़बर तो होनी ही चाहिए कि कहीं इन मंदिरों और तीर्थस्थलों पर उमड़ रही भीड़ के पांवों तले बड़े सवाल तो नहीं कुचलवाए जा रहे ?

गुजरे हफ्ते की दो बड़ी खबरें ऐसी थीं जिनका दूर दूर तक आपस में कोई संबंध नहीं था मगर फिर भी दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू सी जान पड़ती हैं। पहली खबर तो यही थी कि प्रधान मंत्री मोदी जी ने पिथौरागढ़ के गौरी कुंड जाकर आदि कैलाश दर्शन स्थल के विकास की घोषणा की और दूसरी खबर यह थी कि इस साल भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में अब और अधिक पिछड़ गया है और 125 मुल्कों में उसका स्थान अब 111वां हो गया है। हैरानी की बात यह है कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल की भी हालत हमसे बेहतर है। याद रखने योग्य बात यह है कि मोदी जी के सत्ता संभालने से पूर्व देश मात्र 55वें स्थान पर था । सवाल तो बनता ही है कि जब मोदी सरकार 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने का दावा कर रही है फिर भी देश में इतनी भुखमरी क्यों है ? पूछा तो जाना ही चाहिए कि जब देश पर विदेशी कर्ज मोदी शासन में 181 प्रतिशत तक बढ़ गया है तो पैसा आखिर किन कामों में लग रहा है ? आजादी के बाद 67 सालों में देश के 14 प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में विदेशों से 55 लाख करोड़ कर्जा लिया गया मगर अकेले मोदी शासन के साढ़े नौ सालों में सौ लाख करोड़ से भी अधिक कर्ज लेकर किया क्या जा रहा है ? जीएसटी के भारी कलेक्शन और डीजल पेट्रोल पर बेतहाशा टैक्स का पैसा जनता के किस काम आ रहा है ? हम बेशक विश्व गुरु-विश्व गुरु कह कर खुद को भरमाएं और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कह कर भी अपनी पीठ थपथपायें मगर मोदी जी के कार्यकाल में ही लोकतन्त्र सूचकांक में भारत 27 वें स्थान से फिसल कर 108वें स्थान पर क्यों आ गया ? मोदी जी दिन में 18 घंटे मेहनत कर रहे हैं तो फिर क्यों महंगाई आसमान पर और डॉलर रसातल में जा रहा है ? सवाल तो यह भी है कि क्या इन सवालों से निगाह हटाने को ही तो आए दिन नया मंदिर और तीर्थ स्थान नहीं बनाया जा रहा है अथवा सचमुच देश को स्कूल , कालेज, अस्पताल आदि छोड़ कर अभी और अधिक मंदिरों और तीर्थ स्थलों की आवश्यकता है ?

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