बापू के तीन बंदर और नई दिल्ली

रवि अरोड़ा
पुरानी कहावत है कि नया नया मुल्ला ज्यादा प्याज़ खाता है । मेरे खयाल से अब इस कहावत को बदलने का समय आ गया है । नई कहावत कुछ इस तरह से होनी चाहिए- नया नया हिंदू मुसलमानों को ज्यादा गाली देता है । आप पूछ सकते हैं कि इस कहावत को बदलने का क्या औचित्य है और किस संदर्भ में मैने यह सुझाव दिया है ? जवाब यह है कि हाल ही में हरिद्वार में हुई कथित धर्म संसद में मुस्लिम से नए नए हिंदू बने वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी ने जिस तरह से मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगला है , उसी से मुझे इस पुरानी कहावत को नया कलेवर देने का विचार आया । वसीम रिजवी हिंदू हो गया , यहां तक तो ठीक है मगर वह त्यागी कैसे हो गया ? चलिए त्यागी भी हो गया मगर चार दिन में सन्यासी कैसे हो गया ? चलिए सन्यासी भी हो गया मगर धर्म संसद को संबोधित करने की योग्यता उसने कहां से हासिल कर ली ? चलिए धर्म संसद को भी संबोधित उसने कर दिया मगर मुस्लिमों के खिलाफ इस कदर हेट स्पीच देने का अधिकार उसे किस कानून ने दिया ?

वसीम रिजवी पढ़ा लिखा मुसलमान था । पेशे से वकील रहा है । अमेरिका समेत कई देशों में काम कर चुका है । समाजवादी पार्टी से जुड़ कर राजनीति का भी स्वाद ले चुका है । दस साल तक शिया सेंट्रल वक्फ का चेयरमैन भी रहा है । पढ़े लिखे मुस्लिमों में उसकी अच्छी खासी धाक रही है । उसके द्वारा उठाए गए मुद्दों से बेशक कठमुल्ले नाराज रहे हों मगर आम मुस्लिमों से उन्हें हाथों हाथ लिया था । हो सकता है कि अपने खिलाफ लगे आर्थिक गड़बड़ियों के आरोपों से बचने को उसने यह नया रूप धरा हो मगर उसे इस कदर जहरीला तो कतई नहीं होना चाहिए था । वह सैयद है और उसके कुनबे का पूरे इस्लामिक जगत में खास स्थान भी है मगर उसने मुस्लिम जगत के असली मुद्दों पर संघर्ष करने की बजाय यह रास्ता चुना ? चलिए यह उसका निजी फैसला था और हम कौन होते हैं उस पर सवाल-जवाब करने वाले मगर अब हिन्दुओं में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने को वह आएं बाएं क्यों बक रहा है ? मुस्लिमों के नरसंहार के आह्वान से क्या वह पक्का हिंदू हो जायेगा ? बेशक ऐसे तमाशों से सत्ता साधी जा सकती है मगर इसके लिए धर्म का चोला ओढ़ना क्या जरूरी है ? क्यों वह उस भगवा वस्त्र की मिट्टी पलीत कर रहा है जिसे हजारों साल से एक विशेष सम्मान हासिल है । आप कह सकते हैं कि उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज तो हो गई है और क्या चाहिए ? मगर सवाल यह है कि क्या उसकी गिरफ्तारी भी होगी ? हालात तो चुगली कर रहे हैं कि देर सवेर हम उसे विधानसभा अथवा संसद में बैठा देखने को भी अभिशप्त हो सकते हैं । उसके जैसे ही कथित संत कालीचरण का भी भविष्य मुझे उज्जवल नजर आता है । रायपुर की कथित धर्म संसद में महात्मा गांधी को गरिया कर और गोडसे का महिमा मंडन करके वह भी एक खास किस्म की राजनीति करने वालों की नज़रों में चढ़ गया है । अजी उसकी गिरफ्तारी पर मत जाइए , जेल तो उसका लॉन्चिंग पैड साबित होना है ।

समझ नही आता कि इस किस्म की खुराफातों को धर्म संसद किस लिहाज से कहा जा रहा है जबकि उनमें न धर्म है और न ही संसद । जिन लोगों को जेल की काल कोठरी में होना चाहिए वे लोग भगवा कपड़े पहन कर वह सब कहते हैं जो संत तो क्या कोई वहशी भी नहीं कह सकता । सुनिए तो सही भला ये लोग कह क्या रहे हैं ? पूरी दुनिया थू थू कर रही है इन कथित धर्म संसदों की बातों पर । पाकिस्तान जैसा देश भी हमें नसीहत दे रहा है । विदेशी मीडिया भी पूछ रहा है कि यह सब किसकी शय पर हो रहा है ? सबकी जबान पर एक ही सवाल है कि क्या नई दिल्ली बापू के तीन बंदरों की तरह बहरी है , उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा ? अंधी है जो कुछ नही दिखता ? सचमुच गूंगी भी है जो इसके खिलाफ कुछ बोल भी नहीं सकती ?

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