बात हो इनकी भी

रवि अरोड़ा
देश के लगभग सत्तर करोड़ पुरुषों को शर्मिंदा कर देने वाली एक ख़बर आजकल प्रमुख सुर्खियों में है। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने बड़ी हिम्मत का परिचय देते हुए खुलासा किया है कि बचपन में उनके पिता उनका यौन शोषण करते थे । इससे पूर्व फिल्म अभिनेत्री खुशबू सुंदर और नंदिता दास जैसी अनेक चर्चित महिलाएं भी इस तरह के खुलासे कर चुकी हैं। उधर, उपलब्ध तमाम आंकड़े बता रहे हैं कि मुल्क में बलात्कार जैसे घिनौने अपराध तेजी से बढ़े हैं और दो तिहाई मामलों में पीड़िता नाबालिग होती है। चौंकाने वाली बात यह भी है कि अधिकांश मामलों में अपराधी परिवार का ही कोई सदस्य होता है। यह जान कर तो आपको यकीनन शर्मिंदा होना ही पड़ेगा कि बलात्कार के मामले उत्तर भारत में ही ज्यादा हैं और राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली इनमें सबसे ऊपर हैं। क्या इन तथ्यों की रौशनी में यह एक बार फिर साबित नहीं होता है कि हम उत्तर भारतीय लोग दक्षिण के मुकाबले कम संस्कारी और नैतिक रूप से अधिक पतित हैं ?
पूरी दुनिया मानती है कि सामाजिक कारणों से भारत में बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज ही नहीं कराई जाती। हालांकि फिर भी रोजाना 86 मामले देश के विभिन्न थानों में रिकॉर्ड किए जाते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आखिरी आंकड़ों के अनुरूप साल 2021 में 31 हजार 677 बलात्कार की वारदात हुईं। पिछले साल के मुकाबले यह 13 फीसदी ज्यादा थीं। जारी आंकड़े चुगली करते हैं कि उन राज्यों में जहां महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार प्राप्त हैं, वहां सबसे कम ऐसी घटनाएं हुईं और सामंती विचार धारा से ओतप्रोत हमारे जैसे राज्य ही इस मामले में सबसे आगे रहे । साफ नज़र आ रहा है कि नैतिक शिक्षा का अभाव, सोशल मीडिया पर थोक के भाव परोसी जा रही अश्लील सामग्री और न्याय मिलने में देरी के चलते यह कोढ़ दिन प्रति दिन बढ़ रहा है। अव्वल तो बदनामी के डर से पीड़ित सामने आकर शिकायत ही नहीं करतीं और यही हिम्मत करके रिपोर्ट दर्ज भी करा दें तब भी मात्र 27 फीसदी संभावना है कि दोषी को सजा मिले। इन मामलों में भी दशकों की जद्दोजहद और जिल्लत के बाद न्याय की उम्मीद रहती है। हैरानी की बात यह है कि निर्भया कांड के बाद देश में बलात्कार संबंधी कानून बेहद सख्त हो गए हैं और दोषी को कम से कम दस साल की सजा और अधिकतम मृत्यु दण्ड भी दिया जा सकता है। पाक्सो एक्ट 2012 के तहत तो 12 साल से कम उम्र की बच्ची अथवा बच्चे के साथ ऐसा अपराध करने पर फांसी की ही सजा है बावजूद इसके समाज में इसे लेकर कतई खौफ नहीं है। धर्म गुरू, नेता, पत्रकार, अधिकारी, जज और तमाम क्षेत्रों के प्रभावी लोग ऐसे मामलों में मुब्तिला नजर आ रहे हैं। आए दिन आसाराम, राम रहीम और नित्यानाद जैसे बलात्कारी बाबा सामने आ रहे हैं। चिम्यानंद और कुलदीप सेंगर जैसे नेताओं का हश्र भी समाज में बलात्कार के खिलाफ कोई चेतना पैदा नहीं कर पा रहा और इस समय भी 48 विधायक-सांसद बलात्कार का आरोपी होने के बावजूद सत्ता का सुख भोग रहे हैं। कोई हैरानी नहीं है कि इनमें 12 नेता खुद को नैतिक मूल्यों की पार्टी बताने वाली भाजपा के हैं। क्या ही अच्छा हो कि सरकार धर्म के नाम पर खुराफातों की बजाय समाज को नैतिक रूप से समृद्ध करने की दिशा में अधिक कार्य करे। स्कूली शिक्षा से ही इसकी शुरूआत हो। यदि और कुछ न भी करना चाहे तो कम से कम इतना तो ढंग से प्रचारित प्रसारित कर ही दे कि देश का कानून इस मामले में बेहद सख़्त है और दोषी को मृत्यु दण्ड दिया जा सकता है। वैसे यदि राजनीति आड़े न आए तो स्वाति मालीवाल जैसी जुझारू महिलाओं को, जिनमें सच्चाई उजागर करने का माद्दा है आगे लाया जाना चाहिए ताकि महिला सम्मान की सामाजिक चेतना जगाई जा सके । शर्त बस वही है कि इसके लिए राजनीति को एक किनारे पर रखना पड़ेगा।

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