बदजुबानों की फ़ौज

बदजुबानों की फ़ौज
रवि अरोड़ा
अटल बिहारी वाजपेई ने अपनी गलत बयानी पर एक बार कहा था कि चमड़े की जबान है, कभी कभी फिसल भी जाती है। उनके इस कथन से सहमत असहमत हुआ जा सकता है मगर पिछले एक दशक में ऐसा क्या हुआ कि हमारे नेताओं की जुबां अब आए दिन ही फिसल जाती है। फिसल भी क्या रही है , सीधा कीचड़ में जा लोटती है। देश के छोटे बड़े सभी नेताओं को यह बीमारी हो चली है। साफ दिखाई देता है कि जान बूझ कर वे ऐसा करते हैं और फिर बाद में दूसरों पर आरोप लगाते हैं कि मेरी बात को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया । चलिए नेता और राजनीतिक दल एक दूसरे के खिलाफ कुछ भी करें अथवा कहें मगर अब देश की सेना को क्यों बीच में घसीट रहे हैं, उसे क्यों अपमानित कर रहे हैं ? ऑपरेशन सिंदूर को स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहनों के सिंदूर का बदला बताया था । यही नहीं देश की महिला शक्ति और सांप्रदायिक एकता का संदेश देने को ऑपरेशन सिंदूर की प्रेस ब्रीफिंग की जिम्मेदारी भी कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह जैसी जाबांज महिला अधिकारियों को सौंपी थी मगर अपने वकार से गिरे हमारे नेताओं ने यह क्या किया ? क्या यह उचित है कि विंग कमांडर व्योमिका सिंह की जाति की सार्वजनिक चर्चा की जाए ? क्या यह देश द्रोह नहीं कि भारतीय सेना की आइकन बनी सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन कहा जाए ? माना राजनीति में आगे बढ़ने की पहली शर्त अब चापलूसी ही हो चली है मगर क्या इतना नीचे गिरा जायेगा कि अपने साथ साथ पूरे देश और उसकी सेना को मोदी जी के चरणों में नतमस्तक बता दिया जाए ?
हैरानी की बात है कि कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ बेहद निचले स्तर की बयानबाजी करने वाले मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय भी उसके खिलाफ बेहद सख्त टिप्पणी कर चुका है। सर्वविदित है कि शाह के खिलाफ एफआईआर भी स्वयं उच्च न्यायालय ने जोर देकर दर्ज करवाई मगर फिर भी अभी तक कुछ नहीं हुआ । न तो ऐसे मंत्री के खिलाफ पुलिस ने कोई कार्रवाई की और न ही भाजपा ने अपने इस मंत्री को मंत्री पद से हटाया । बताया तो यह भी जा रहा है कि मंत्री के खिलाफ एफआईआर भी बेहद हल्की धाराओं में पुलिस ने दर्ज की है और सोशल मीडिया से उनका वह वीडियो भी गायब करवा दिया गया है, जिसमें वह अपनी घटिया मानसिकता का परिचय दे रहा है । आखिर क्या कारण है कि ऑपरेशन सिंदूर के जरिए मोदी जी ने जो संदेश देश को देना चाहा, उसी को पलीता लगाने वाले मंत्री के खिलाफ स्वयं मोदी जी की सरकार और उनकी पार्टी कोई कार्रवाई नहीं कर रही और वह बड़े आराम से कहीं आराम फरमा रहा है ? क्या इसका कारण यह तो नहीं कि यह मंत्री जिस आदिवासी समूह से आता है, उसके मतदाताओं के वोटों का लालच भाजपा के हाथ थामे हुए है ? क्या पार्टी इस बात से तो नहीं डर रही कि मंत्री के खिलाफ कार्रवाई की तो मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप पार्टी पर लग जाएगा ? क्या यह सही है कि पिछले कई दशकों से पार्टी जिस एजेंडे को लेकर चल रही थी , इस मंत्री ने बस उसे ही सार्वजनिक रूप से कहा है और उसमें उसका अपना कुछ भी नहीं था ? आखिर क्या कारण है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव इस मंत्री को बर्खास्त करने का साहस नहीं कर पा रहे ? क्यों पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा इस मामले में चुप हैं, जबकि उन्होंने राज्य के संगठन से इसकी रिपोर्ट भी अगले दिन मंगवा ली थी ? क्यों अमित शाह भी नहीं बोल रहे, जो समय समय पर इस मंत्री को आगे बढ़ाते रहे हैं ? क्या यह पार्टी के भीतर की ही कोई राजनीति है और जिसमें इस मंत्री को यूं छुट्टा छोड़ देने से मोदी जी के अतिरिक्त किसी का कोई नुकसान नहीं है ?
इस देश की परम्परा रही है कि फ़ौज का अपमान कभी बर्दाश्त नहीं किया गया । आजादी के तुरंत बाद कश्मीर में हुआ पाकिस्तान से युद्ध हो या सन 1962 में चीन के साथ, 1965 , 1971 की जंग हो या फिर कारगिल , हर बार देश ने सीमाओं के रखवालों को सिर आंखों पर बिठाया मगर अब समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव, मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह और वहीं के उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा जैसे नेता अपनी घटिया बातों से देश के इस गौरव को कितना नीचे ले जा रहे हैं। क्या उन्हें देश की रक्षक सेना के मोराल की भी कोई परवाह नहीं है ? क्या वे सेना को भी अपने स्तर पर लाना चाहते हैं ? आदरणीय मोदी जी कृपया ध्यान दीजिए , जिस सेना की शाम में अभी कुछ दिन पहले ही आपने लंबा चौड़ा कसीदा पढ़ा, उसे ही कैसे रुसवा कर रहे हैं आपने लोग ।

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