फिर पताशे घुलेंगे क्या!

रवि अरोड़ा
महीनों बाद आज दो हजार का नोट देखा। बड़ी हैरानी हुई उसे देख कर । उसकी आदत ही छुट सी गई है। हालांकि 8 नवंबर 2916 को अचानक की गई नोटबंदी के बाद सरकार ने जब दो हज़ार और पांच सौ के नए नोट निकाले थे तब चहुंओर दो हजार का यह गुलाबी नोट ही दिखता था मगर अब धीरे धीरे नज़र आना लगभग बंद ही हो गया है । पहले तो मैं यही समझता रहा कि कोरोना के बाद लोगों की बिगड़ी आर्थिक हालत के कारण ऐसा हो रहा है मगर बाद में पता चला कि यह काम भी सरकार ही कर रही है तो बड़ी हैरानी हुई। समझ नहीं आ रहा कि दो हजार के इस नोट की जरूरत नहीं थी तो इसे शुरू ही क्यों किया गया था ? और यदि अब इसे बाजार से हटाया जा रहा है तो इसकी विधिवत घोषणा क्यों नहीं की जा रही ? क्या इसका मतलब यह तो नहीं कि सरकार को इतना बड़ा नोट बाजार में लाने की अपनी गलती का एहसास हो गया है और अब पिछले दरवाज़े से वह अपनी गलती सुधार रही है ? यदि ऐसा है तो क्या निकट भविष्य में दूसरी नोटबंदी भी देश को झेलनी पड़ेगी ?
सारी दुनिया देख रही है कि अपनी पिद्दी सी सफलता पर भी ढोल नगाड़े पीटने वाली इवेंट वादी मोदी सरकार हाल ही में नोटबंदी की छटी बरसी पर भी मुंह में दही जमा कर बैठी रही । साफ दिखा कि सरकार मान रही है कि नोटबंदी के नाम पर उसने महा मूर्खता की थी और उसके लिए जो भी कारण उसने गिनाए थे वे सभी हवा हवाई निकले । मगर फिर भी इसकी आत्मग्लानि सरकार के बडे़ नेताओं के चेहरों पर दिखाई क्यों नहीं देती ? क्या इतनी मोटी चमड़ी है हमारे कर्णधारों की ? दो सौ से अधिक लोगों की मौत, करोड़ों लोगों के जीवन में तूफान लाने और मुल्क की अर्थव्यवस्था का भट्टा बिठाने वाले उस तुगलकी फैसले पर चर्चा भी क्यों नहीं होती ? चलिए मत कीजिए नोटबंदी पर कोई चर्चा मगर कम से कम यह तो बता ही दीजिए कि दो हजार के उस गुलाबी नोट को लेकर क्या खिचड़ी पकाई जा रही है जिसमें चिप लगी होने के दावे किए गए थे ?
वित्त मंत्रालय ने हाल ही में संसद को बताया कि 2019 से दो हजार के नोट रिजर्व बैंक ने छापने बंद कर दिए हैं। इसी का नतीजा है कि 31 मार्च 2017 को दो हजार का वह नोट जो पचास फीसदी से अधिक देश की करेंसी का हिस्सा था अब 31 मार्च 2022 को सिमट कर मात्र 14 फीसदी रह गया है। ऐसा क्यों किया गया इसकी जानकारी संसद को भी नहीं दी गई । बेशक इस दौरान छापे गए तमाम बड़े नोट पांच सौ के ही थे मगर फिर भी चलन से बाहर हुए दो हजार के लगभग 18 लाख करोड़ रुपए की करेंसी आखिर कहां गई ? क्या सरकार ने अघोषित रूप से बैंकों के माध्यम से बाजार से उसे वापिस उठा लिया है अथवा अपना काला धन बड़े नोटों के रूप में जमा करने वाले बड़े मगरमच्छों ने अपने तहखानों में उसे छुपा लिया ? इस दो हजार के बड़े नोट के साथ आखिर हो क्या रहा है? क्या यह जानने का हक भी हमें नहीं ? क्या यही है लोकतंत्र ? क्या वोट देने के अतिरिक्त हमारे कोई अन्य अधिकार हैं ही नहीं ? कायदे से इतने बड़े मामले पर सरकार को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए । संसद ही नहीं आम आदमी को भी इस बड़े नोट के बाबत सरकार की भावी योजना से अवगत कराया जाना चाहिए । ताली थाली बजवाने और दीया और टॉर्च जलवाने के लिए भी राष्ट्र को संबोधित करने वाले मोदी जी को खुद सामने आकर इस बारे में बताना चाहिए ताकि फिर कोई गरीब लाइनों में लग कर मरने को अभिशप्त न हो मगर यहां तो सरकार को सारे साल चुनावों से ही फुर्सत नहीं मिलती । कोई मरे कोई जीए, सुथरा घोल बताशे पीए।

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