पूछना बनता है या नहीं

रवि अरोड़ा
लीजिये जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को हटे हुए एक साल भी हो गया । ज़ाहिर है कि इतने बड़े फ़ैसले के बाद रातों रात एच्छिक परिणाम नहीं आते मगर फिर भी एक साल का समय इतना तो होता ही है कि वस्तुस्थिति का मूल्याँकन किया जा सके । यह जाँचा जा सके कि हम सही दिशा की ओर बढ़ भी रहे हैं अथवा नहीं । यह जानने का प्रयास भी तो किया ही जाना चाहिये कि कल पाँच अगस्त को जिस समय पूरा देश अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के आनंद में डूबा होगा , उस समय आम कश्मीरी क्या कर रहा होगा ? इत्तफ़ाक़ से कल ही धारा 370 व 35 ए हटाने का एक साल पूरा हो रहा है और इसी के चलते अलगाववादियों ने कल जो कश्मीर बंद का आह्वान किया है, उसके प्रति कश्मीरियों का क्या रूख रहेगा ? हालाँकि इस दौरान अलगाववाद की कमर टूटने की आस पूरी नहीं हुई है मगर फिर भी पता तो करना ही चाहिये कि क्या उनकी पीठ पर कुछ चोट लगी भी है अथवा नहीं ?
साल भर पहले संसद में गृह मंत्री अमित शाह जिस समय जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जे की समाप्ति व दो नये केंद्र शासित राज्य बनाये जाने की घोषणा कर रहे थे , उस समय अनेक नई आशाओं ने जन्म लिया था । लग रहा था कि पर्यटन, व्यापार और भूमि सुधार कार्यक्रमों से आम भारतीयों का अब कश्मीर से गहरा जुड़ाव हो सकेगा । मगर इस दिशा में तो पिछले एक साल में रत्ती भर भी प्रगति दिखाई नहीं पड़ रही । लोगों को उम्मीद थी कि देश भर से कश्मीर के लिए सस्ती हवाई यात्रा शुरू होगी और ग़ैर कश्मीरियों को भी वहाँ व्यापार और उद्योग चलाने का अवसर मिलेगा मगर इस ओर भी कोई काम होता नहीं दिखा । हालाँकि देश की आस अभी भी नहीं टूटी है और लोगों को लगता है कि देर सवेर यह अवश्य सम्भव होगा मगर पिछले एक साल की प्रगति की बात करें तो परिणाम निराशाजनक ही कहे जाएँगे । इस एक साल में केंद्र सरकार का पूरा ज़ोर राज्य में क़ानून व्यवस्था की स्थिति को पटरी पर लाने पर ही रहा और शक्ति प्रदर्शन के परम्परागत तरीक़े से फ़ौरी तौर पर शायद इसका कुछ परिणाम भी निकला है ।
कश्मीर के हालात का पिछले सालों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करें तो साफ़ दिखता है कि वहाँ अब पत्थरबाज़ी की घटनाओं में थोड़ी कमी आई है । सन 2018 में 532 एसी घटनाएँ हुईं जबकि 2019 में 389 तथा इस साल अब तक 102 बार एसा हुआ है । 2018 में 2268 लोग एसा करते गिरफ़्तार हुए तथा 2019 में 1129 व इस साल अब तक 1152 लोगों को पकड़ा गया है। हालाँकि पत्थरबाज़ी में कमी का कारण यह भी माना जा रहा है कि कश्मीर में सीआरपीएफ के जवानों की संख्या काफ़ी बढाई गई है और पिछले एक साल से लगभग सभी अलगाववादी नेता जेलों में बंद हैं अथवा अपने घरों में नज़रबंद किये गए हैं । आतंकियों के सफ़ाये में भी पूरी ताक़त झोंकी गई है और इस साल अब तक 136 आतंकी मार गिराये गए है जबकि पिछले साल कुल 126 आतंकी मुठभेड़ में मारे गये थे। मगर इस मामले का एक पहलू यह भी है कि जितने आतंकी मारे जाते है लगभग उतने ही नये युवक आतंकी बन जाते हैं । पिछले साल 135 युवकों ने हथियार उठाये और इस साल भी अब तक 79 एसे युवकों की पहचान हो चुकी है । एसे में यह विषय विचारणीय हो जाता है कि क्या इस तरह से हम स्थाई समाधान की ओर बढ़ पाएँगे ?
जानकर बताते हैं कि आम कश्मीरी कई दशकों से भय के आग़ोश में है । वह आतंकियों से जितना डरता है उतना ही सुरक्षा बलों को लेकर उसके मन में ख़ौफ़ है । सरकार ने सख़्ती दिखाते हुए अब परिदृश्य से एसे लोगों को हटा दिया है जो कश्मीरियों को पैसे देकर पत्थरबाज़ी अथवा बंद व हड़ताल कराते थे । हालाँकि ये तमाम लोग जेलों से भी एसे आदेश दे रहे हैं मगर लोग अब उनका कहा नहीं मान रहे । अब पाँच अगस्त को लेकर भी उन्होंने काला दिन मनाने का आह्वान किया है । जवाब में स्थानीय प्रशासन ने भी दो दिन के कर्फ़्यू की घोषणा की है । मगर इसमें नया क्या है ? यह काम तो पिछले पच्चीस तीस साल से हो रहा है ? धारा 370 और 35 ए के हटने का क्या लाभ हुआ ? क्या भाजपा के मेनिफ़ेस्टो को पूरा करना भर ही मोदी सरकार की ज़िम्मेदारी थी या कश्मीर के लिए कुछ ठोस करने का भी उनका मन है ? पूछना बनता है कि नहीं ?

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