पुष्प वर्षा के असली हकदार
रवि अरोड़ा
चारों ओर बाढ़ जैसे हालात हैं और हर बार की तरह इस बार भी सिख कौम सेवा में जुटी हुई है। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से ऐसे सैंकड़ों समाचार मिल रहे हैं जहां परेशान हाल लोगों तक सरकार बेशक न पहुंच पाई हो मगर सिख कौम खाना, दवा और जरूरी सामान लेकर पहुंच गई है । पूरी दुनिया छान लीजिए , सेवा का यह भाव आपको किसी और धर्म में नहीं मिलेगा । बंटवारे के बाद से आज तक सैंकड़ों ऐसे मौके आए हैं जब असली धर्म क्या है, यह सिखों ने ही साबित किया है। देश में ही नहीं विदेशों में भी समय समय पर सिखों ने अपनी यही सेवा गाथा दोहराई है। कहा जाता है कि आलू और सिख आपको दुनिया में हर जगह मिल जायेंगे मगर शायद यह अधूरा सत्य है। पूरा सच यह है कि जहां जहां इंसान है, वहां वहां इंसानियत का झंडा बुलंद करने को कोई न कोई सिख आपको जरूर नजर आ जायेगा ।
भारत में आधा दर्जन बड़े धर्मों के अनुयाई हैं। कमाल की बात यह है कि इन सभी धर्मों में मानव सेवा को सर्वोपरि बताया गया है। हिंदू धर्म में तो सम्पूर्ण जीव जगत की सेवा की भी बातें कही गई हैं मगर दुर्भाग्य से सिख धर्म के अतिरिक्त इनपर अमल होता कहीं नहीं दिखता । हाल ही में संपन्न हुई कांवड़ यात्रा में हजारों हिंदुओं ने शिविर लगा कर शिव भक्तों की सेवा की । क्या ही अच्छा होता यदि बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में भी प्रभावित लोगों के लिए भी ऐसे शिविर लगते। करोड़ों लोगों ने गंगा जल लाकर शिवालयों में चढ़ाया । कितना अच्छा होता यदि इतनी मशक्कत वे भूखे प्यासे लोगों तक भोजन पहुंचाने में भी करते। सरकारों का तो समझ आता है कि उनका रुख समस्याओं के स्थाई समाधान पर नहीं वरन उसका समाधान करते हुए खुद को दिखाना भर होता है मगर धार्मिक संस्थाओं को क्या हुआ है, वह ऐसे मौकों पर सामने क्यों नहीं आतीं ? दूसरों को अपने धर्म की ओर आकर्षित करने का यह मौका भला कैसे वे अपने हाथ से निकल जाने देती हैं ? हरियाणा के एक युवक का आज ही वीडियो देखा । बाढ़ग्रस्त अपने क्षेत्र में सिखों की सेवा से प्रभावित होकर वह अब सिख धर्म अपनाने की घोषणा कर रहा है । वे लोग जो धर्मांतरण पर अपनी ताकत, ऊर्जा और पैसा खर्च करते हैं, उन्हें सेवा का यह सस्ता उपाय क्यों नहीं दिखता ?
कई बार सोचता हूं कि सिख धर्म में ऐसा क्या अनोखा बताया गया है जो अन्य धर्मों में नहीं है ? दूसरों की सेवा का पाठ तो हिन्दू, मुस्लिम और ईसाइयों को यक्सा पढ़ाया जाता है । खूब मंथन करूं तो सिर्फ एक ही बात समझ आती है और वह ये कि उनके यहां परमात्मा और इंसान के बीच कोई बिचौलिए नहीं हैं। सिखों के अतिरिक्त हर धर्म को परिभाषित करने वाले कुछ खास लोग हैं जो सारी मलाई पर केवल और केवल अपना हक समझते हैं। मलाई की इसी बंदरबांट ने ही तमाम धर्मों का बेड़ा गर्क किया हुआ है। रही सही कसर इनका राजनीतिक इस्तेमाल करने वाले पूरी कर देते हैं। नेताओं को भी अपनी सेवा करने वाला धर्म चाहिए, इंसानियत की सेवा तो उनकी प्राथमिकताओं में भी सबसे नीचे है।
किसान आंदोलन और कोरोना संकट समेत अनेक अवसरों पर सिखों की सेवा का मैं चश्मदीद गवाह रहा हूं और गवाही दे सकता हूं कि सेवा के बदले में उन्हें कुछ नहीं चाहिए। न अखबारों में फोटो, न सरकारी मेडल, न कोई पद और न ही कोई पहचान । वे तो बस अपने गुरुओं की शिक्षा का अनुसरण कर रहे हैं । उधर, ये शिविर और भंडारे वाले इसी में मरे जा रहे हैं कि उनकी फोटो फलां फलां अखबार में क्यों नहीं छपी । जन्नत की चाह वाले भी कौन सा किसी से पीछे हैं और उनका जकात, फितरा और सदका भी नाम चारे से कहां आगे दिखता है ? बदहाल मुस्लिम बस्तियों की सूरत बयां कर रही है उनके यहां भी कितना दान धर्म और दूसरों की सेवा होती है। उधर, सबने देखा कि पूरा शासन प्रशासन कांवड़ियों पर हैलीकोप्टर से फूल बरसा रहा था । ठीक है कि उनकी राजनीति के लिए यह मुफीद है मगर क्या ही अच्छा होता यदि कमर तक पानी में डूब कर लोगों को भोजन पहुंचा रहे किसी गुमनाम सिख पर भी ऐसी फूल वर्षा होती । पुष्प वर्षा के असली हकदार तो ऐसे लोग ही हैं।