नूरा कुश्ती
रवि अरोड़ा
मेरे बचपन का एक मित्र आजकल मुझसे कटा कटा सा रहता है । कहीं टकरा जाये तो हाय हेलो करके ही खिसक लेता है । दरअसल उसे मेरी राजनीतिक समझ ( अथवा नासमझ ) बेहद नागवार गुज़रती है और सच कहूँ तो एक ख़ास पार्टी के प्रति उनकी अंधभक्ति मेरी भी परेशानी का सबब रहती है । यही वजह है कि हम दूर हो रहे हैं । चुनावी बयार में तो यह दूरियाँ दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी कर रही हैं । मगर नरेंद मोदी जी के ख़िलाफ़ कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन द्वारा मैदान में बेशक कमज़ोर प्रत्याशियों को उतारे जाने की ख़बर ने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं अपने मित्र को फ़ोन करूँ और कहूँ- अमाँ छोड़ो ये राजनीति-वाजनीति और आओ मिल बैठें व अपने निजी सुख-दुःख पर चर्चा करें। अब आप ही बताइये कि जब कांग्रेस और सपा-बसपा की मोदी जी से कोई लड़ाई नहीं है और वे घर बैठे हुए उन्हें वाक़ओवर दे रहे हैं तो मेरी कौन सी भैंस मोदी जी ने खोली है । मैं क्यों टीवी चैनल्स की तरह तीतर लड़ाऊँ ? वाराणसी की ही बात क्यों करूँ अन्य सभी लोकसभा सीटों पर भी तो यही हो रहा है । तमाम बड़े नेता , चाहे वे किसी भी दल के हों उनके सामने दूसरी पार्टियों ने कमज़ोर प्रत्याशी ही उतारे हैं । जहाँ अभी प्रत्याशी घोषित नहीं हुए वहाँ भी यही होने जा रहा है । सुना है कि लखनऊ में राजनाथ सिंह जी के ख़िलाफ़ कांग्रेस और सपा बसपा गठबंधन से कौन लड़ेगा यह भी राजनाथ जी ने तय किया । उधर अब मोदी जी बता रहे हैं कि ममता बैनर्जी साल में कई बार उन्हें मिठाई और कपड़े भेंट करती हैं । अब आप ही बताइये कि ये सारे नेता अंदर खाने आपस में मिले हुए हैं तो हमें कौन से पागल कुत्ते ने काटा है जो हम एक दूसरे के कपड़े फाड़ रहे हैं ।
अजब माहौल है । सारी उम्र जिस पार्टी को अपनी माँ बताते हैं , टिकिट न मिलने पर उसे ही गाली देने लगते हैं । और जिसे पानी पी पी कर तमाम उम्र कोसा टिकिट मिलते ही अब उसमें देश का भविष्य नज़र आने लगता है । कोई शर्म नहीं ज़रा भी हया नहीं । रातों रात घर और दफ़्तर की तस्वीरें बदल जाती हैं । जहाँ कभी श्यामा प्रसाद मुखर्जी विद्यमान होते थे अब वहाँ नेहरू जी सुशोभित हैं । जहाँ सोनिया जी को बुके भेंट करने की बड़ी बड़ी फोटुएँ थीं अब वहाँ मोदी और अमित शाह के हँसते चेहरे दिख रहे हैं । अम्बेडकर को गांधी जी रिप्लेस कर रहे हैं तो गांधी जी को दीन दयाल उपाध्याय । अजब तमाशा हो रहा है । जन्म जन्म के बैरी मायावती और मुलायम सिंह एक दूसरे के लिए वोट माँग रहे हैं । शिव सेना पाँच साल तक भाजपा को गरियाती रही अब वही बग़लगीर है । अजित सिंह इस बार भी उन्हें गाली देंगे जिन्हें पिछली बार अपना माई बाप बनाया था । जिस शीला दीक्षित को जेल भेजने की बात कह कर केजरीवाल ने दिल्ली में खूँटा गाड़ा वही केजरीवाल गठबंधन के लिए शीला जी से भीख सी माँगते दिखे । एनडीए और यूपीए में इसबार कौन कौन से दल हैं , यह याद रखना भी टेडी खीर हो चला है ।
हालाँकि दलबदलू नेता हमारे यहाँ कभी हेय दृष्टि से नहीं देखे गए और आया राम गया राम को देश की जनता भी स्वीकार कर लेती है मगर इसकी कोई सीमा तो तय हो । नरेश अग्रवाल कांग्रेस, लोकतांत्रिक कांग्रेस, सपा के बाद अब भाजपा के लिए वोट माँग रहे हैं । सारी उम्र बहन जी की ज़िंदाबाद करने वाले नसीमुद्दीन सिद्दकी अब कांग्रेसी होकर बहन जी की अंदरूनी बातें बता रहे हैं । जब तक सपा में थीं आज़मखान जया प्रदा के बड़े भाई थे और अब जब जया भगवा हुईं तो उनके अंडरवियर का रंग मंचों पर बताया जाने लगा । नवजोत सिंह सिद्धू को तो शायद याद भी नहीं होगा कि उन्होंने कांग्रेस के बारे में क्या क्या कहा है जिसके नाम पर वोट माँगने वे अब गली गली जा रहे हैं । पता नहीं हंस राज हंस , शत्रुघन सिन्हा , रीता बहुगुणा , स्वामी प्रसाद मोर्या , ब्रजेश पाठक , सावित्री बाई फुले , अशोक बाजपेई जैसे नेता अब उस पार्टी के क़सीदे कैसे पड़ते होंगे जिसे कभी सारी बुराइयों की जड़ बताते थे । कुल जमा बात वही है कि इन राजनीतिक दलो और नेताओं का जब कोई दीन ईमान नहीं है तो हम काहे पगलाए हुए हैं । क्यों अपने निजी रिश्ते इन नेताओं के चक्कर में बेवक़ूफ़ाना बहसों में स्वाह कर रहे हैं । तो आओ हम भी अपने नेताओं से बन जायें और एक दूसरे को बस कुर्ते और मिठाइयाँ गिफ़्ट करें ।