नज़र हमारी जेब पर
रवि अरोड़ा
संवेदनहीनता की हद है । पूरे दस दिन हो गये और रोज़ाना पेट्रोल व डीज़ल की क़ीमतें बढ़ाई जा रही हैं । इस दौरान 5 रुपये 45 पैसे पेट्रोल और 5 रुपये 80 पैसे डीज़ल के दाम बढ़ाये जा चुके हैं । कोरोना महामारी के संकट में पाई पाई को परेशान जनता की जेब से कितने लाख रुपये निकल गए होंगे , सुबह से यही हिसाब लगा रहा हूँ । मोदी जी ने पैकेज के नाम पर बीस लाख करोड़ रुपये उधार देने की जो घोषणा की थी , पता नहीं उससे किसका कितना फ़ायदा होगा मगर सीधे सीधे लोगों की जेब तो काट ही ली । यह तो तब है जब महामारी की वजह से अंतराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम बेहद कम हैं और जैसे जैसे देशों में लाकडाउन खुल रहे हैं वैसे वैसे तेल के दाम भी बढ़ने के आसार हैं। पता नहीं तब सरकार हमारे साथ क्या करेगी ।
महामारी और लाक़डाउन की वजह से देश में करोड़ों नौकरियाँ चली गई हैं और करोड़ों ही लोग सड़क पर आ गये हैं । अनलाक़ शुरू होते ही लोगों ने काम-धंधे के लिए घरों से निकलना शुरू किया है मगर कार-स्कूटर की ख़ाली टंकी उनका मुँह चिढ़ा रही है । आलम यह है कि पेट्रोल और डीज़ल दोनो के ही दाम पिछत्तर रुपये लीटर को पार कर गये हैं । सरकारी आँकड़े बताते हैं कि देश में तेल की बेस क़ीमत केवल 22 रुपये 11 पैसे ही है मगर सरकार 31 रुपये 98 पैसे उस पर एक्साइज ड्यूटी हमसे वसूलती है । क़ीमत में 33 पैसे भाड़ा और डीलर कमीशन 3 रुपये 60 पैसे भी हमसे वसूला जाता है । इसके अतिरिक्त 17 रुपये 41 पैसे राज्य सरकार वैट के अलग से चार्ज करती है । पिछले सात जून से लगातार दाम बढ़ाये जा रहे हैं और तेल कम्पनियों के इरादे तेल को अस्सी रुपये से ऊपर पहुँचाने के साफ़ दिख रहे हैं । ये कम्पनियाँ आज डालर के मुक़ाबले रुपये की क़ीमत कम होने और अंतराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत 35 डालर प्रति बैरल होने की बात कर रही हैं मगर महामारी के दौरान जब यह दाम बीस डालर तक आ गये थे तब भारतीयों को महँगा तेल क्यों बेचा गया , यह कोई नहीं बताता ? सउदी अरब और रशिया के बीच अप्रैल में छिड़ी प्राईस वार में जब तेल के दाम नेगेटिव हो गए थे और तेल उठाने के भी पैसे मिल रहे थे , तब एक दिन भी हमें सस्ता तेल इन कम्पनियों ने क्यों नहीं दिया ?
साल 2019-20 के वित्त वर्ष में भारत ने साढ़े 22 करोड़ टन कच्चा तेल बाहर से ख़रीदा और 105 .58 अरब डालर यानि 7 .43 लाख करोड़ रुपया ख़र्च किया । इस दौरान सरकार को औसतन 18 रुपये 64 पैसे लीटर तेल मिला । इस हिसाब से देखे तो भारत सरकार ने अपनी जनता से लगभग बारह लाख करोड़ रुपया तेल के मुनाफ़े के रूप में वसूला । यही नहीं सात लाख करोड़ रुपया राज्य सरकारों ने अलग से हमसे लिया । यह आँकड़ा इसलिए लिखा है ताकि वे लोग जिन्हें सरकार द्वारा घोषित बीस लाख करोड़ रुपये की राशि बहुत बड़ी लग रही है , वे जान लें कि इससे ज़्यादा तो हम साल भर में अपने स्कूटर कार में तेल डलवा कर सरकार को दे देते हैं ।
एक बात तो तय है कि सभी राजनीतिक दल एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं । जब मुल्क में कांग्रेस की सरकार थी तो तेल की क़ीमतें बढ़ने पर भाजपाई यूँ छाती पीटते थे जैसे उनके घर में किसी का इंतक़ाल हो गया हो । मगर पिछले छः सालों में केंद्र की भाजपा नीत सरकार ने हर वो काम किया जिसका उसने ही कभी सड़कों पर उतर कर विरोध किया था । आज तेल की क़ीमतें बढ़ाने में तो भाजपा ने कांग्रेस को भी बहुत पीछे छोड़ दिया है । कमाल देखिये कि अब कांग्रेस इस मुद्दे पर भाजपा को सुबह शाम कोस रही है । कांग्रेस के राज में डालर के मुक़ाबले रुपये की क़ीमत गिरने पर भाजपा कांग्रेस को आढ़े हाथों लेती थी मगर पिछले छः साल में रुपए की क़ीमत पंद्रह रुपये कम हुई लेकिन अब भाजपा ख़ामोश है । कुल जमा बात यह है कि हम किसी राजनीति-वाजनीति के चक्कर में न पड़ें और मान कर चलें कि जो कुर्सी पर बैठेगा उसकी ही नज़र हमारी जेब पर होगी ।