नंबर किस किस का

रवि अरोड़ा
नैनीताल जाते हुए हर बार रामपुर से होकर गुजरना ही पड़ता है । दो दशक पहले तक तो रामपुर पार करना ही सबसे बड़ी आफत लगती थी । फिर धीरे धीरे रामपुर की काया पलट होने लग गई । पुल बन गए, सड़कें चौड़ी हो गईं और शहर का ऐसा सौंदर्यीकरण हुआ जैसे प्रदेश के कम ही शहरों को नसीब हुआ था । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तर्ज़ पर जौहर यूनिवर्सिटी भी देखते देखते खड़ी हो गई । नतीजा रामपुर से गुजरते हुए अच्छा लगने लगा और मन स्थानीय नेता आजम खान को साधुवाद देने को मचलने लगता । इसी बीच आजम खान के अक्खड़पन और सत्ता के दुरूपयोग की खबरें मिलने लगीं तो दुःख भी होता था कि अपने क्षेत्र के लिए आदर्श कार्य करने वाला व्यक्ति निजी आचरण में इतना टुच्चा क्यों है ? सपा सरकार में अपनी चोरी हो गई भैंसों के लिए जब उन्होंने पूरी प्रदेश की पुलिस को ही लगा दिया तो मन नफरत से ही भर उठा । उन्हीं दिनों एक पुलिस कर्मी ने बताया कि लखनऊ से रामपुर आते-जाते समय आजम खान का काफिला सड़क पर कहीं नहीं रुकता और उनकी सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों को पेशाब करने के लिए बोतल अपने साथ जीप में रखनी पड़ती थी । शायद इसी का बदला अब पुलिस कर्मी उनसे लेते हैं और एक खबर के अनुसार सीतापुर जेल से लखनऊ अथवा इलाहाबाद अदालत आते जाते समय काफिला कहीं नहीं रोकते , चाहे आजम खान जितना भी अनुरोध करें । यह सब पढ़ कर हो सकता है कि आपने भी आजम खान के प्रति कोई राय बनाई होगी । या यह भी हो सकता है कि आप उनके बारे में पहले से ही कोई अच्छी अथवा बुरी राय रखते हों मगर पता नहीं क्यों मैं अपने समेत अधिकांश लोगों को आजकल फिर आजम खान के पक्ष में खड़ा देखता हूं ।

बेशक अपने पाले में लाने की गरज से आज राहुल गांधी, मायावती, औवेसी और शिवपाल यादव जैसे विपक्षी नेता आजम खान के साथ खड़े दिख रहे हों मगर सच्चाई यही है कि प्रदेश में मुस्लिमों के इस सबसे बड़े नेता की सवा दो साल की जेल के दौरान किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया । स्वयं उनकी पार्टी सपा ने भी न जाने क्या सोच कर उनसे किनारा किए रखा और उसी का नतीजा यह हुआ कि जैसे ही उन्हें पुराने किसी मामले में अदालत से जमानत मिलती है , सरकार नया मुकदमा ठोक देती है । अब तक उनके खिलाफ 88 मुकदमे दर्ज हुए हैं और 87 में जमानत मिलने के बावजूद वे जेल से बाहर नहीं आ सके हैं । यह सब देख कर हैरानी होती है कि कानून, न्याय और व्यवस्था के नाम पर यह क्या मज़ाक हो रहा है ? क्या उनका असली कसूर मुस्लिम होना ही है ? चाहे कुछ भी हो जमानत मिलना आजम खान का कानूनी हक है और कोई कैसे उन्हें इससे महरूम रख सकता है ? यकीनन उनके बाबत हाई कोर्ट की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है कि उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग किया और अच्छे कामों के बावजूद साधनों की पवित्रता का ध्यान नहीं रखा मगर सुप्रीम कोर्ट का यह सवाल भी तो बहुत अहम है कि ऐसा हर बार कैसे हो जाता है कि जमानत मिलते ही आजम खान के खिलाफ अगले दिन नया मामला दर्ज कर लिया जाता है ? सुप्रीम कोर्ट की इस तल्ख टिप्पणी के बाद बेशक अब आजम खान जेल से बाहर आ जाएं मगर यह तो विचारणीय है ही कि इन सवा दो सालों में उन्होंने जो यातनाएं भुगतीं , क्या उनसे कोई नया अध्याय खुलेगा ?

राजनीति में बदले की कार्रवाई का कोई स्थान नहीं होना चाहिए मगर दुर्भाग्य से यह कार्य नेहरू काल से ही मुल्क में चला आ रहा है । इंदिरा गांधी ने इसे और गति प्रदान की तो भाजपा शासन में यह सरपट ही दौड़ रहा है । पी चितंबरम द्वारा अमित शाह को जेल भिजवाने और बाद में अमित शाह द्वारा उन्हें जेल की रोटी खिलवाने जैसे पचासों उदाहरण हम लोग देख चुके हैं । तमाम राज्यों में भी यह तमाशा हो रहा है तो उधर उत्तर प्रदेश में अब सारे रिकॉर्ड ही टूट रहे हैं । पता नहीं कहां थमेगा यह सिलसिला । मुझे ज्यादा कुछ तो नहीं पता मगर इस बात का गवाह जरूर हूं कि इस देश की जनता रोटी जलने से बचाने के लिए उलटती पलटती है । आने वक्त में उसने फिर रोटी पलटी तो फिर पता नहीं किस किस बड़े आदमी का नंबर आयेगा ।

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