दाना दाना लाल जैसी खुशी

रवि अरोड़ा
कहते हैं कि पंजाबी एक ऐसी कौम है जिसे खुद नहीं पता कि वो इतना खुश क्यों रहती है। इस कहावत की एक बार और तस्दीक करते नज़र आते हैं लैंदे पंजाब यानि पाकिस्तान वाले हिस्से के पंजाब के वे हजारों वीडियो, जिनमें बच्चे बूढ़े जवान और महिलाएं सामूहिक रूप से तालियां बजा बजा कर और ढोल पीट पीट कर गाते दिखाई पड़ते हैं- माल ए लाल ए, सारी गड्डी लाल ए, दाना दाना लाल है। दरअसल लाहौर की फल मंडी का तरबूज विक्रेता तारिक कई सालों से अपने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए यह बेतुका गाना गाता है। तरबूज से लदे उसके ट्रक पर चढ़ कर उसके तमाम कर्मचारी भी उसकी धुन पर ट्रक की दीवारों को ढोलक सा बजाते हैं और नाच नाच कर इन्हीं पंक्तियों को दोहराते हैं। इस धुन से प्रभावित होकर पिछले साल किसी ने उसका वीडियो बना कर वायरल कर दिया और फिर देखते ही दिखते लैंदे पंजाब में टिकटॉक, ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्स एप जैसे सोशल मीडिया ही नहीं अखबारों और टेलीविजन पर भी ‘ माल ए लाल ए ‘ छा गया और आज ऐसा एक भी पाकिस्तानी नहीं जिसने फोन पर ऐसे दर्जनों वीडियो न पहुंचे हों। गौर से कई कई बार देखने के बावजूद मैं समझ नहीं पाता कि इन बेतुकी पंक्तियों पर वहां के पंजाबी झूम क्यों रहे हैं, ऐसी क्या बात है इसमें ? कहीं इस बिलावजह खुशी का कारण केवल उनका पंजाबी होना तो नहीं है ? जाति कोई भी हो, धर्म कोई भी हो पांच दरियाओं वाली इस सरजमीं के सारे बंदे यक्सा मस्त ही हैं ?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में पाकिस्तान हम भारतीयों से कहीं आगे हैं। सूची में शामिल 137 देशों में भारत 125वें तो पाकिस्तन 103वें स्थान पर है। हैरानी की बात है कि इस इंडेक्स के मूल आधार आमदनी, स्वास्थ्य, स्वतन्त्रता और शिक्षा जैसे मामलों में पाकिस्तान हमारे सामने कहीं नहीं टिकता । यह मुल्क भुखमरी, महंगाई और गले तक पहुंचे कर्ज के चलते लगभग बर्बाद है मगर फिर भी न जाने क्यों वहां लोग हमसे ज्यादा खुश हैं ? क्या इसका कारण वहां की आधी से अधिक आबादी का पंजाबी संस्कृति से ओत प्रोत होना तो नहीं है ? पाकिस्तान ही क्यों भारत का चढ़दा पंजाब भी अरसे तक मुल्क का सबसे खुशहाल राज्य रहा है और आज भी पंजाब और उससे मिलती जुलती संस्कृति वाले हिमाचल, हरियाणा और दिल्ली इस इंडेक्स में लगभग सबसे ऊपर हैं। उधर, नॉर्थ ईस्ट और द्रविड़ संस्कृति वाले तमिलनाडु जैसे राज्य भी कम खुशहाल नहीं हैं। हां बात हम बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे उत्तरी राज्यों की करें तो ये इस इंडेक्स में सबसे नीचे नज़र आते हैं। जबकि संसाधनों, शिक्षा और अन्य सुविधाओं की अन्य राज्यों के मुकाबले यहां भी कोई कमी नहीं है। तो क्या इसका अर्थ यह निकाला जाए कि खुशी का बड़ा कारण संस्कृति भी है ? यदि हां तो क्यों न हैप्पीनेस जैसी इंडेक्स बनाते समय इसका भी खयाल रखा जाए ? उधर, पिछ्ले कई सालों के आंकड़े जब चुगली कर रहे हैं कि धार्मिक संकीर्णता वाले देश सबसे अधिक दुखी हैं और नास्तिक आबादी वाले देश अधिक खुश हैं तो क्यों न धार्मिक बंदिशों को भी इसमें शामिल किया जाए ? वैसे यह उन लोगों के लिए भी सबक है जो देश को धर्मांधता में धकेलना चाहते हैं। कोई भी धर्म जो अपने अनुयाई को खुश ही न रख सके तो उसके होने का अर्थ भी क्या है। वैसे तो सदियों से हमारी यह मान्यता भी रही है कि खुशी बाहर नहीं वरन भीतर की कोई चीज है तो फिर क्यों न बाहरी कारणों के साथ साथ थोड़ा भीतर भी झांका जाए और खुशी के मानक तय करते समय यह भी देखा जाए कि कौन कौन सा देश और समाज ऐसा है जो अकारण भी खुश हो लेता है। आखिर ऐसे लोग कौन कौन हैं जो तरबूज बेचने को दुकानदार द्वारा लगाई गई हांक ‘ दाना दाना लाल है ‘ जैसी बेसिर पैर की तुकबंदी पर भी नाच उठते हैं ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

जो न हो सो कम

रवि अरोड़ाराजनीति में प्रहसन का दौर है। अपने मुल्क में ही नहीं पड़ोसी मुल्क में भी यही आलम है ।…

निठारी कांड का शर्मनाक अंत

रवि अरोड़ा29 दिसंबर 2006 की सुबह ग्यारह बजे मैं हिंदुस्तान अखबार के कार्यालय में अपने संवाददाताओं की नियमित बैठक ले…

भूखे पेट ही होगा भजन

रवि अरोड़ालीजिए अब आपकी झोली में एक और तीर्थ स्थान आ गया है। पिथौरागढ़ के जोलिंग कोंग में मोदी जी…

गंगा में तैरते हुए सवाल

रवि अरोड़ासुबह का वक्त था और मैं परिजनों समेत प्रयाग राज संगम पर एक बोट में सवार था । आसपास…