तू भी टची मैं भी टची

रवि अरोड़ा
कहते हैं कि मज़ाक़ तीन तरह का होता है । पहला अपना मज़ाक़ उड़ाना, दूसरा सामने वाले का और तीसरा होता है परिस्थिति का मज़ाक़ अथवा परिस्थितिजन्य हास्य । तमाम हास्य फ़िल्मों और कोमेडी शो के बावजूद समाज में हास-परिहास अब ग़ायब होता जा रहा है । लोग बाग़ इतने संवेदनशील हो गए हैं कि अपने परिजनों से मज़ाक़ करते हुए भी चार बार सोचते हैं । एक ज़माना था कि समाज में हास-परिहास को बहुत ही महत्व दिया जाता था । गाँव-देहात की चौपाल और कुँए के जमघट ही नहीं घरों के आँगन भी खिलखिलाहटों से दिन भर गूँजते रहते थे । नई ही नहीं पुरानी रिश्तेदारियों में भी कुछ रिश्ते हँसी मज़ाक़ के ही होते थे । साली-जीजा और देवर-भाभी का रिश्ता तो जैसे था ही हास-परिहास के लिये । दिन भर बात-बेबात पर हँसी मज़ाक़ होते रहने से ही शायद पुराने दौर में अवसाद जैसे मानसिक रोग भी नहीं होते थे ।
बेशक समय के साथ पुरानी व्यवस्थाएँ खोटपूर्ण हो गईं मगर कई बार अपने उन पूर्वजों को सलाम करने को जी चाहता है जिन्होंने हमारी सामाजिक संरचना का गठन किया था । बेशक इन्हीं तमाम व्यवस्थाएँ से बाद में जाति व्यवस्था का कोढ़ भी जन्मा मगर शुरुआती दौर में तो शायद यह निश्छल ही रही होंगी । पंजाब की सरज़मीं तो इस मामले में पूरी तरह से ही मालामाल थी । वहाँ मनोरंजन के लिए गीत-संगीत और नृत्य के साथ साथ भरत मुनि के नाट्य शास्त्र को एक ख़ास तबके ने आगे बढ़ाया जो हिंदुओं , सिखों और मुस्लिमों तीनो में मिरासी के नाम से जाने गए । । वे लोग मज़ाक़ को नाट्य रूप में इस क़दर पिरो पर प्रस्तुत करते थे कि दर्शक हँसते हँसते पेट ही पकड़ लेते थे । निजी जीवन में भी मिरासी बेहद हँसोड़ होते थे और हँसने की गरज से लोग बाग़ राह चलते भी उन्हें रोक कर कुछ चुहल कर देते थे और फिर उनकी हाज़िर जवाबी से उत्पन्न होता था एक और हास्य । मिसाल के तौर पर एक क़िस्सा प्रस्तुत है । एक मिरासी नंगे पाँव बाज़ार से गुज़र रहा था और उसने अपनी जूतियाँ लाठी से बाँध कर कंधे पर लटका रखी थीं । एक दुकानदार ने मज़ाक़ किया कि भाई रोटियाँ इतनी ऊँची क्यों बांधी हैं ? इस पर मिरासी बोला कि बांधी तो इस लिए थीं कि कुत्तों की निगाह न पड़े मगर मेरी बदकिस्मती कि एक कुत्ते ने फिर भी देख लिया ।
एक अन्य क़िस्सा कुछ यूँ है । थाने के आगे से एक मिरासी गुज़र रहा था। पुलिस वालों ने मज़ाक़ की गरज से उसे रोका और पूछा कहा जा रहा है ? मिरासी बोला ससुराल जा रहा हूँ । मेरी बीवी को बेटा हुआ है । पुलिस वालों ने कहा कि बीवी कब से मायके में है ? मिरासी ने कहा जी लगभग सवा साल से । इस पर पुलिस वालों ने छेड़ा कि फिर तो तेरा बच्चा हरामी हुआ । तब मिरासी बोला साहब मुझे क्या फ़र्क़ पड़ता है , मैंने कौन सा उसे घर रखना है । बड़ा होते ही पुलिस में भर्ती करा दूँगा । लीजिए एक क़िस्सा और सुनिये । एक रात को मिरासी और उसकी बीवी अपने घर में बैठे थे कि तभी एक बिच्छू घर में आ गया । मिरासी उसे मारने लगा तो पत्नी ने कहा कि क्यों जीव हत्या करते हो सुबह होगी तो इसे झाड़ू से बाहर निकाल देंगे और उसके एक कटोरी से बिच्छू को ढक दिया । उसी रात मिरासी के घर एक चोर आ गया और अंधेरे में चुपचाप तलाशी लेने लगा । पति पत्नी दोनो स्थिति को भाँप गए और पति बोला-अरी भगवान कल जो ज़मींदार के यहाँ से सोने की अँगूठी मिली थी वो कहाँ है ? इस पर पत्नी बोली- अजी वो तो ग़लती से रसोई में ही रह गई और कटोरे के नीचे रखी है । यह सुन कर चोर बहुत ख़ुश हुआ और उसने झट कटोरे के नीचे हाथ मारा । बस फिर क्या था , बिच्छू ने उसे काट लिया और चोर चिल्ला उठा । इस पर मिरासी बोला- भाई थूक लगा कर पहनना, यह अँगूठी मुझे भी टाइट ही थी । बताइये अब कहीं दिखता है समाज में एसा हास-परिहास ? अब तो जिसे देखो वही ‘ टची ‘ बना घूम रहा है ।

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