( तीसरी कड़ी )
स्वर्गीय तेलूराम कम्बोज जी को ग़ाज़ियाबाद से पहला दैनिक समाचार पत्र निकालने का भी श्रेय जाता है। अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जन सरोकारों के चलते वे बाद में शहर के महापौर भी बने ।
यह वही वक्त था जब राष्ट्रीय समाचार पत्रों में भी ग़ाज़ियाबाद की खबरें प्रमुखता से ली जानी शुरू हो गईं थी । उन दिनो नवभारत टाइम्स और वीर अर्जुन अखबार के लिए स्वर्गीय चिरंजी लाल पाराशर खूब समाचार भेजा करते थे । बाद में उनके बेटे श्री राकेश पाराशर भी नव भारत टाइम्स से जुड़े और तीस साल तक एक जुझारू पत्रकार के रुप में काम करने के बाद हाल ही इसी अख़बार में ऊँचे ओहदे से रिटायर हुए हैं । दैनिक हिंदुस्तान के लिए स्वर्गीय चन्द्रभान गर्ग समाचार भेजा करते थे । बाद में उनके पुत्र श्री विधान चंद्र गर्ग ने यह भूमिका बख़ूबी निभाई । प्रताप और मिलाप अखबार की खबरों की जिम्मेदारी स्वर्गीय जोगेंदेर पाल सिंह बागी जी के कंधों पर थी । स्वर्गीय मेजर इकबाल सिंह इवनिंग न्यूज़ के लिए समाचार संकलित करते थे ।स्वर्गीय तेलूराम कांबोज वीर अर्जुन और हिंदुस्तान समाचार के लिए ख़बरें भेजते थे तो हिट समूह के संस्थापक स्वर्गीय विजय सीकरी टाइम्स ऑफ इंडिया के स्थानीय संवाददाता थे । उन दिनो समाचार भेजने का तरीका भी निराला था । तब ना तो बहुतायत में फोन होते थे और ना ही फ़ेक्स मशीन । आधुनिक संसाधन ईमेल और मोबाइल फोन की तो कल्पना भी उस दौर में आम लोगों ने नहीं की थी । आमतौर पर संवाददाता दोपहर तक समाचार संकलित करते और फिर बस पकड़ कर दिल्ली अखबार के मुख्यालय पहुंचते थे और वहां अपने हाथ से खबरें लिखकर देकर आते थे । कई समाचार पत्रों में तो एक एक हफ्ते बाद खबरें छपती थी । इसी बीच ग़ाज़ियाबाद में दैनिक अखबारों के प्रकाशन का सिलसिला शुरु हुआ । सर्वप्रथम स्वर्गीय तेलू राम कांबोज ने प्रलंयकर की शुरुआत की । स्वर्गीय शिव कुमार गोयल , राष्ट्र कवि श्री कृष्ण मित्र और श्री विनय संकोची की टीम ने इस अख़बार को घर घर पहुँचाया । इसके बाद तो दैनिक अखबारों के प्रकाशन का सिलसिला ही शुरु हो गया । हिंट , अथाह, जन समावेश , गऊ गंगा , हिंद आत्मा , वर्तमान सत्ता , राष्ट्रीय आइना और भावी सत्ता समेत अनेक दैनिक अखबारों का प्रकाशन यहां से शुरू हो गया । आठवें दशक से शुरू हुआ यह सिलसिला लगभग डेढ़ दशक तक चला । यह वह दौर था जब गाजियाबाद विकास प्राधिकरण अंगड़ाई ले रहा था । इससे पूर्व इंप्रुवमेंट ट्रस्ट के नाम से यह विभाग कार्य करता था । चूँकि जीडीए के विज्ञापन का बजट काफ़ी बड़ा था अतः उसके लोभ में कुकुरमुत्ते की तरह अनेक हवाई अखबार
भी मैदान में खड़े हुए। नवें दशक के शुरुआत में जीडीए की माली हालत बिगड़ने पर इन अखबारों की भी हालत पतली हो गई और वह एक के बाद एक बंद होते चले गए । मैदान में वही बचे जिनमें अपने दम पर खड़े होने की कूव्वत थी । (क्रमशः )