तलाश है अपनी जाति के भगवान की
रवि अरोड़ा
बहुत खोज ख़बर ले चुका हूँ मगर मेरी जाति का कोई देवी-देवता पुराणों में नहीं मिल रहा । जुगाड़ लगाऊँ तो भगवान राम से कोई लिंक निकाल सकता हूँ मगर फिर भी क़ायदे से साबित नहीं कर सकता कि मैं सच में उन्ही का वंशज हूँ । काश कोई भगवान मेरी भी जाति का होता तो शायद मेरी भी वैसी ही पूछ होती जैसी प्रदेश में आजकल ब्राह्मणों की हो रही है । भगवान परशुराम की मूर्तियों के बहाने तमाम राजनीतिक पार्टियाँ ब्राह्मणों की ठोडी में जिस तरह हाथ लगा रही हैं उससे तो मुझ जैसे न जाने कितने लोगों का मन मचला होगा । बेशक प्रदेश में विधानसभा चुनाव अभी दूर है मगर सभी दल जिस तरह से अपनी अपनी भेड़ें इकट्ठा कर रहा है और दूसरे दलों की भेड़ों को फुसला रहे हैं , उससे वे सभी लोग परेशान हैं जिनका कोई पेटेंटिड भगवान नहीं हैं और अपनी जाति के भगवान के अभाव में वे ख़ुद को बिना झुंड की गाय समझ रहे है । झुंडों की राजनीति में भला मुझ जैसी अकेली-दुकेली भेड़ की पूछ कहाँ ?
पता नहीं यह आँकड़ा कहाँ से आया मगर ब्राह्मण सभा वालों ने कह दिया कि पिछले दो सालों में प्रदेश में पाँच सौ ब्राह्मणों की हत्या हुई है । उसका यह भी आरोप है कि योगी सरकार में ब्राह्मणों के साथ भेदभाव और अत्याचार हो रहा है । बस फिर क्या था राजनीति के जंगल में आग लग गई और वोटों के थोक व्यापारी जैसे सोते से जागे । सबको यही लगा कि भीड़ भरी बस में एक सीट ख़ाली हो गई है । अखिलेश यादव बोले हम लखनऊ में परशुराम की 108 फ़ुटी मूर्ति लगाएँगे और उन्होंने बस की सीट पर रुमाल रख कर ऊँची आवाज़ लगा दी कि यह सीट मेरी है । मायावती भी झट से बोलीं कि हम सपा से भी बड़ी परशुराम की मूर्ति लगाएँगे और फिर एलान किया कि मेरा पर्स यहाँ पहले से पड़ा है । कांग्रेस बोली कि इस सीट को मैंने पहले देखा था तो भाजपा चिल्लाई कि मैं तो पिछले अड्डे से ही इस सीट पर क़ाबिज़ हूँ । बेचारा कंडक्टर हैरान परेशान सबको देख रहा है ।
पता नहीं यह ख़याल अभी तक किसी नेता के दिमाग़ में क्यों नहीं आया कि कानपुर वाले विकास दुबे की ही मूर्ति क्यों न लगा दें । गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद से ही तो प्रदेश में ब्राह्मणों को लेकर राजनीति शुरू हुई है । बात जाति की हो तो इस देश में जब फूलन देवी को वीरांगना बता कर पुजवाया जा सकता है तो विकास दुबे को महान क्यों नहीं साबित किया जा सकता ? देश प्रदेश में ब्राह्मण किस हालात में हैं , आरक्षण व्यवस्था में उनके हितों पर कितना कुठाराघात हुआ और आर्थिक रूप से दरिद्र होने के बावजूद उन्हें ऊँचा बताकर कैसे दरकिनार किया गया इस पर बात करने का क्या फ़ायदा ? एक मूर्ति लगाकर ही जब सारे सवाल छुप जाते हों तो भला इससे बढ़िया क्या है ?
मेरे ख़याल से देश में ब्राह्मण ही नहीं सभी जातियों के देवी देवताओं और भगवानों की मूर्तियाँ लगनी चाहिये । जब राम ठाकुरों के, कृष्ण यादवों के, परशुराम ब्राह्मणों के और
वाल्मीकि दलितों के हो ही चुके हैं तो इसे खुलकर कहने में क्या हर्ज है ? ये मूर्तियाँ हर शहर में लगनी चाहिये । हर चौराहे पर लगनी चाहिये । स्कूलों और अस्पतालों में लगनी चाहिये । जिस मोहल्ले में जिस जाति का वर्चस्व हो, वहाँ उसी की जाति के भगवान को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। कोई भी जाति भगवान की विशालकाय मूर्ति के बिना न रहे , एसी व्यवस्था होनी चाहिये । कुल जमा दो चार हज़ार ही तो जातियाँ हैं और देवी-देवता तेतीस करोड़ हैं । एक एक जाति के हिस्से कई कई हज़ार देवी देवता आएँगे । यदि आपको मेरा विचार जंचे तो कृपा इसे सभी नेताओं तक ज़रूर पहुँचाइए । और हाँ थोड़ी सी मदद मेरी भी कीजिए और पता करके बताइये कि मेरी जाति के कौन कौन से भगवान हैं ? ताकि मैं ग़लती से किसी और जाति के पेटेंटिड भगवान को मत्था न टेक आऊँ ?