डराती है टिहरी झील
रवि अरोड़ा
न तो मैं भू वैज्ञानिक हूं और कायदे से न ही पर्यावरणविद मगर फिर भी इस बार जब टिहरी बांध के निकट गया तो माथे पर चिंता की लकीरें थीं। ऐसा होना स्वाभाविक भी था क्योंकि जोशीमठ की खबरों ने भीतर तक हिला जो रखा है । ऐतिहासिक जोशीमठ शहर के छह सौ मकानों में अब तक दरारें आ ही चुकी हैं और बेशक मीडिया में इसकी चर्चा बंद करवा दी गई है मगर यह सिलसिला अभी थमा नहीं है। बताया गया है कि तीन हज़ार घर अभी और खतरे में हैं । हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि जोशीमठ की यह हालत क्यों हुई मगर एक अनुमान यह भी तो है कि शायद टिहरी डैम के कारण ही यह शहर धंस रहा है। सच्चाई क्या है सरकार ने इसका खुलासा अभी तक नहीं किया है मगर इस डैम के करीब जाकर तमाम आशंकाएं तो सिर उठाती ही हैं । वैसे यह सवाल भी तो दशकों से अनुत्तरीण ही खड़ा है तमाम बड़े खतरों के बावजूद आख़िर इतने बड़े बांध की जरूरत ही क्या थी ?
टिहरी झील में नौका विहार करते समय मुझे पूरा एहसास था कि मेरे पांवों के नीचे एक पूरा शहर जलमग्न पड़ा है। कुछ लोगों ने बताया कि कभी कभी जलमग्न मंदिर और किले आदि की चोटी पानी में दिखती भी है। उधर, झील के किनारे खड़े होने पर साफ नजर आया कि उसमें पानी का भंडार आजकल बेहद कम है। नौकायन कराने वाले ठेकेदार ने बताया कि मात्र डेढ़ दो महीने ही झील में पूरा पानी रहता है और बाकी दिन झील लगभग आधी ही भरती है। घर लौटकर एक स्थानीय पत्रकार से फोन पर बात की तो यह रोचक जानकारी मिली कि भागीरथी नदी पर बनी देश की सबसे बड़ी यह जल विद्युत परियोजना बेशक साल 2006 से कार्य कर रही है मगर इतने वर्षों में बस एक बार ही इसमें पूरी क्षमता यानि 830 मीटर तक का जल भराव किया गया है। और वह भी मात्र डेढ़ साल पहले 24 सितंबर 2021 को । अब जब बांध में पूरा पानी ही नहीं होता तो बिजली का पूरा उत्पादन भी कैसे हो । नतीजा 25 मिलियन यूनिट की क्षमता वाली यह परियोजना मात्र 8 – 9 मिलियन यूनिट बिजली ही प्रतिदिन बना पाती है। यही नहीं इसके टरबाइन केवल सुबह शाम तब ही चलते हैं जब पीक आवर्स में नॉर्दन ग्रिड को अतिरिक्त बिजली की आवश्यकता होती है और बाकी समय यह प्रोजेक्ट बंद पड़ा रहता है।
समझ नहीं आया कि जब इस्तेमाल एक तिहाई क्षमता का ही करना था तो आखिर इतना बड़ा डैम क्यों बनाया ? क्यों करोड़ों लोगों का जीवन खतरे में डाला और हजारों को विस्थापित किया ? क्यों 8392 करोड़ रुपए इसमें झोंक दिए और पर्यावरण पर पड़ने वाले कुप्रभाव की भी परवाह नहीं की ? चलिए पूर्व की सरकारों ने जो कर दिया सो कर दिया मगर वर्तमान सरकार अब क्या कर रही है ? जोशीमठ में जो हो रहा है उसके मद्देनजर इसकी फिर से कड़ी समीक्षा क्यों नहीं कर रही ? खबरें आ रही हैं कि टिहरी डैम के आसपास के कुछ गांवों से भी आजकल दीवारें दरक रही हैं। पर्यावरणविद तो पहले ही इसकी आशंका जता चुके हैं। संसदीय समिति ने भी इस पर अपनी चिंता जताई है। क्या केन्द्र और राज्य सरकार को अब इस बांध से जुड़े खतरों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए ? ऐसे में जब कहा जाता रहा है कि डैम टूटा तो हरिद्वार और ऋषिकेश पूरी तरह डूब जायेंगे और बांध का पानी मेरठ तक आ जायेगा, मुझ जैसे कमजोर दिल वाले का तो उसके पास जाकर घबराना स्वाभाविक ही है। वैसे उक्त पंक्तियां पढ़ कर चिंतित तो आप भी हो रहे होंगे।