डंडे मारतेहम्

रवि अरोड़ा

अष्टमी पर कन्याओं के पूजन के बाद जैसे ही ख़बरों की दुनिया की ओर लौटा , बनारस लाठीचार्ज की घटना मेरा इंतज़ार कर रही थी । यह किस पाखंड भरे दौर से गुज़र रहे है हम ? एक ओर देवी और कन्याओं की आराधना और दूसरी ओर उन्ही का सिरफुड़व्वल ? और कितने पाखंड करेंगे हम ? कहाँ कहाँ पाखंड नहीं कर रहे हम ? और फिर भी दावा कि हम विश्वगुरु बनेंगे ? एसे बनेंगे हम विश्वगुरु ? अपनी बच्चियों के कुर्तों में हाथ डाल कर ? उनके होस्टलों के बाहर हस्तमैथुन करके ? या जब वह शिकायत करें तो यह पूछकर कि अँधेरा होने पर बाहर ही क्यों निकली ?

नवरात्र चल रहे थे । देवी पूजा से पूरा देश सराबोर था । धर्मकर्म से दूर रहने वाले लोग भी भक्ति भाव में थे।मंदिरों में ही नहीं घरों में भी नारी की शक्तिरूप में स्तुति हो रही थी । कन्यापूजन की घर घर तैयारी हो रही थी । अभी कुछ घंटे पहले तक प्रधानमंत्री मोदी जी भी उस शहर में थे और एसे माहौल में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में उन छात्राओं पर बड़ी बेरहमी से हुए लाठी चार्ज कर दिया गया जो बावन घंटे से धरने पर बैठी थीं और शोहदों से अपनी सुरक्षा की माँग कर रही थीं। निशाना साध कर पुरुष सिपाहियों द्वारा छात्राओं के सिरों में लाठियाँ मारी गईं और पाँवों से भी कुचला गया । तीस से अधिक छात्रायें बुरी तरह घायल हुईं । यह सब उस विश्वविद्यालय में हुआ जिसे भारतीयता का संवाहक कहा जाता है । उस शहर में हुआ जो हिंदू संस्कृति के सबसे बड़े केंद्रों में से एक है । उस लोकसभा क्षेत्र में हुआ जहाँ से प्रधानमंत्री ख़ुद सांसद हैं । उस प्रदेश में हुआ जहाँ के मुख्यमंत्री योगी जी ने कुर्सी सम्भालते ही सबसे महिलाओं की सुरक्षा को आपरेशन मजनू की घोषणा की थी । सबसे ख़ास बात प्रदेश और केंद्र की उन भाजपा सरकारों की नाक के नीचे हुआ जो नारी सम्मान की माला जपते जपते ही सत्ता तक पहुँची हैं।

अजब पाखंड है । एक ओर हम नारा देते हैं-बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, और जब बेटियाँ पढ़ने को घर से निकलती हैं तो हम शोहदों की जमात में शामिल हो जाते हैं । अपनी बच्चियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी जीसी त्रिपाठी जैसों के हाथों में सौंप देते हैं जो स्वयं किसी शोहदे जैसा व्यवहार कर रहे हैं । शोहदे लड़कियों के देह को छूते हैं और वीसी जैसे लोग एसी संस्कृति को पोषित करते हैं जहाँ एसे शोहदे पनाह पाते हैं । कई बार लगता है कि इस हादसे के लिए उन सभी को ज़िम्मेदार मान लूँ जो सबकुछ जानते हुए भी चुप हैं । मन किसी योगी किसी मोदी को बरी करने को तैयार नहीं होता ।कमिश्नर की रिपोर्ट कह रही है कि विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही से यह सब कुछ हुआ मगर विश्वविद्यालय के वीसी जीसी त्रिपाठी अभी भी अकड़ रहे हैं । अकड़ें भी क्यों ना , उनकी पीठ पर संघ और भाजपा के बड़े नेताओं का हाथ जो है ।

हज़ारों साल लगे हैं हमें यह समझने में कि अपनी महिलाओं को पीछे धकेलकर हम आगे नहीं बढ़ सकते । बाल विवाह , सती प्रथा , दहेज , बहु विवाह , पर्दा, अशिक्षा, कुपोषण और कन्या भ्रूण हत्या से अभी भी हम पूरी तरह बाहर नहीं आए हैं । जैसे तैसे पश्चिम की बयार से प्रभावित होकर कुछ माहौल बदला है मगर जीसी त्रिपाठी जैसे लोग फिर महिलाओं को मध्ययुग की ओर ले जाना चाहते हैं । शोहदों से तो क़ानून देर सवेर निपट ही लेगा मगर जीसी त्रिपाठी और उस जैसों के आकाओं से निपटना बड़ी चुनौती है ।इनसे निपटे बिना माहौल नहीं बदलने वाला । ये लोग तो खुल कर कह ही रहे हैं- डंडे मारतेहम् ।

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