जो कृष्ण नहीं वह कौरव है
रवि अरोड़ा
कम से कम मुझे तो अब पक्का यकीन हो चला है कि महाभारत वेदव्यास की कोरी कल्पना थी और इस तरह का कुछ भी भारत में कभी घटित नहीं हुआ होगा । यदि कोई अपनी तर्क शक्ति से इसकी सत्यता साबित कर भी दे तो भी उसके लिए यह सिद्ध करना असंभव होगा कि हम लोग महाभारत काल के उन्हीं सिद्धांतवादी लोगों के वंशज हैं। शर्तिया बात है कि कोई कितना भी जोर लगा ले मगर दोनों बातें एक साथ साबित नहीं कर सकेगा । भला ऐसे कैसे हो सकता है कि महाभारत काल में एक स्त्री के चीरहरण पर ऐसा युद्ध हो गया, जिसमें एक करोड़ चौदह लाख लोग मारे गए और उसी देश में अब पुलिस की मौजूदगी में महिलाओं की नग्न परेड और सामूहिक बलात्कार जैसा जघन्य कांड हो जाए और एक चिड़िया पर भी आंच नहीं आए ?
महाभारत काल में भरी सभा में एक महिला का चीर हरण हुआ और आधुनिक काल में दो महिलाओं को नग्न कर बाज़ार में घुमाया गया और सामूहिक बलात्कार हुआ । महाभारत में द्रोपदी की लाज बचाने कृष्ण आए थे मगर मणिपुर में इन महिलाओं की मदद को कोई नहीं आया। सहायता को द्रोपदी भी चिल्ला रही थी और कुकी जनजाति की ये महिलाएं भी । महाभारत में कौरव थे और मणिपुर में मैतई समुदाय के लोग । उस दौर में दुराचारी सत्तानशीं थे और इस दौर में भी केंद्र और राज्य सरकार का मैतई समुदाय की पीठ पर हाथ है। तब कृष्ण थे मगर अब जिनके जिम्मे कृष्ण की भूमिका होनी चाहिए, वे सभी धृतराष्ट्र बने बैठे हैं । अब बताइए कि कोई कैसे विश्वास कर ले कि हम उसी समाज से आते हैं, जहां महिला के सम्मान पर कभी महाभारत हो गया था। माना कृष्ण अब नहीं आते मगर ऐसे लोग कहां बिला गए जो द्रोपदी की पुकार पर दौड़े चले आने वाले कृष्ण को अपना आदर्श बताते हैं ? क्या झूठा है उनका कृष्ण प्रेम या उन्हें वह सब कुछ अर्थहीन लगता है जिसका महत्व हमें समझाने कभी कृष्ण धरती पर आए थे ?
मणिपुर के हालात जितने दुखद हैं, उससे अधिक निराशाजनक है उसे लेकर केन्द्र और राज्य सरकार का रवैया । सारी दुनिया में भारत की थू थू हो रही है मगर ऊंची कुर्सियों पर बैठे लोग मुंह में दही जमा कर बैठे है। तीन महीने से राज्य में आग लगी है । सैंकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और हजारों विस्थापित हो गए हैं मगर सरकारों ने अभी तक एक कदम भी ऐसा नहीं उठाया है, जिससे साबित हो कि वह वाकई इस आग को बुझाना चाहती है। प्रधानमंत्री हर विषय पर बोलते हैं मगर मणिपुर पर चुप रहते हैं। सारी दुनिया का चक्कर लगाने का उनके पास समय है मगर मणिपुर जाने की फुर्सत उन्हें नहीं है। उन्हीं की देखादेखी उनका पालतू मीडिया भी मणिपुर पर मुंह सिले बैठा है। इसी का नतीजा है कि ढाई महीने पहले की इस भयावह वारदात को जनता से तब तक छुपाए रखा गया जब तक कि स्वयं बलात्कारियों ने इस जघन्य कांड का वीडियो वायरल नहीं कर दिया । मणिपुर में फिलवक्त इंटर नेट बंद है। जब खुलेगा तब पता नहीं और क्या क्या हमें देखना पड़ेगा । सामने आए इस लोमहर्षक कांड पर संसद में हो हल्ला मचने पर अब पहली बार प्रधानमंत्री ने अपना मुंह खोला है मगर मणिपुर पर सीधे सीधे कुछ कहने की बजाय गोलमोल कहानी और राजनीतिक लफ्फाजी ही की । प्रधानमंत्री ने एक शब्द भी ऐसा नहीं कहा जिससे यह भरोसा हो कि भविष्य में ऐसी वारदात नहीं होंगी । इतना सब कुछ हो रहा है मगर आश्चर्य जनक रूप से राज्य के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह के प्रति मोदी जी का प्रेम अभी भी धृतराष्ट मार्का ही बना हुआ है। कोई हमारे नेताओं को क्यों नहीं समझाता कि आज के इस दौर पर भी यदि कोई महाभारत फिर से लिखी गई तो हर वह शख्स जो महिला सम्मान को लेकर कृष्ण नहीं है वह कौरव माना जायेगा । यह भी जरूरी नहीं कि आज जो कृष्ण बने घूम रहे हैं, आने वाला वक्त भी उन्हें यही दर्जा दे। यह वह मुल्क है जहां इतिहास सब कुछ भूल जाता है मगर महिला का अपमान वह सदा याद रखता है।