जय बलूचिस्तान
रवि अरोड़ा
हाल ही में सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य एवं आध्यात्मिक गुरु पवन सिन्हा जी के आश्रम में जाना हुआ । बातचीत में पता चला कि सिन्हा जी एवं देश के कुछ अन्य क़ाबिल लोग मिल कर अपने मुल्क में हिंद-बलोच फ़ोरम भी चला रहे हैं । बलोच यानि बलूचिस्तान । पाकिस्तान का वह हिस्सा जिसे वर्ष 1948 में उसने ज़बरन बलूचों से क़ब्ज़ाया था और तब से आज तक उनकी आज़ादी की माँग को बड़ी बेदर्दी से कुचल रहा है । सिन्हा जी ने बताया कि पाकिस्तान के बाहर भी बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए दुनिया भर के बलोच सक्रिय हैं और भारत में रह रहे पाँच लाख बलूचिस्तान मूल के लोग भी उनके साथ हैं । उनके इस फ़ोरम का मूल उद्देश है अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलूचों की आवाज़ बनना और अपने देश में भी बलूचों के लिए समर्थन जुटाना ।
स्वयं मेरे अपने पूर्वज पंजाब के थे । वह पंजाब जो बँटवारे में पाकिस्तान के हिस्से आया । उन्होंने भी विभाजन के समय बर्बरता का नंगा नाच देखा था अतः मैं आसानी से समझ सकता हूँ कि बलूचों के साथ पाकिस्तान कैसा बर्ताव कर रहा होगा । बलूचिस्तान में प्राकृतिक संसाधनों का अंबार है और वह भूभाग तेल और गैस ही नहीं सोना और अन्य धातुएँ भी उगल रहा है । पाक से चीन की दोस्ती की वजह यह प्राकृतिक संसाधन भी हैं क्योंकि चीन को उसका तीन चौथाई हिस्सा पाक यूँ ही दे देता है । भूभाग के हिसाब से बलूचिस्तान पाक का चवालिस फ़ीसदी है और वहाँ के बाशिंदे मुस्लिम होते हुए भी हिंदू मान्यताओं के काफ़ी निकट हैं । वहाँ के बाइस बड़े क़बीले मराठा हैं और उनकी जड़ें हमारे महाराष्ट्र में ही हैं । सिन्हा जी बताते हैं कि उनकी भाषा के अनेक शब्द भी हमारी संस्कृति से निकले हैं । जनसंख्या के हिसाब से पाकिस्तान की दस फ़ीसदी यह आबादी पाकिस्तान के साथ नहीं रहना चाहती और अपनी आज़ादी के लिए सत्तर सालों से संघर्ष कर रही है । हममें से कितने लोग जानते हैं कि बलूचिस्तान बँटवारे के समय भारत का हिस्सा बनना चाहता था ? वहाँ के गद्दीनशीं बादशाह ने इस आशय का अनुरोध भी हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से किया था मगर उन्होंने इस प्रस्ताव को यह कह कर ठुकरा दिया कि बलूचिस्तान दिल्ली से बहुत दूर है । वहीं पाकिस्तान ने एसी कोई भूल नहीं की और हज़ारों किलोमीटर दूर पूर्वी पाकिस्तान पर तब तक राज किया जब तक कि वर्ष 1971 में वह स्वतंत्र होकर बांग्लादेश नहीं बन गया ।
सिन्हा जी की संस्था की गतिविधियाँ जान कर मन बाग़ बाग़ हो गया । दरअसल यही वह तरीक़ा है जिससे पाकिस्तान के कान हम उमेठ सकते हैं । आज़ादी के बाद से पाकिस्तान हम पर चार युद्ध थोप चुका है और उसके द्वारा प्रशिक्षित आतंकी आए दिन हमारी शांति व्यवस्था भंग करते रहते हैं । कश्मीर पर एक दिन भी उसने हमें चैन से नहीं बैठने दिया । वह स्वयं असफल देश है ही और हमें भी अस्थिर करने के कुचक्र रचता रहता है । उधर हमारा राजनीतिक नेतृत्व हमेशा उसकी मीठी मीठी बातों में आ जाता है और हम उनके नेताओ को कभी दिल्ली आगरा घुमाते हैं और कभी उनके जन्मदिन का केक खाने उनके घर पहुँच जाते हैं । मुझे लगता है कि पाकिस्तान को उसकी भाषा में जवाब देने का सबसे बेहतर उपाय हो सकता है बलूचिस्तान की आज़ादी । पाक को उसकी नीति से ही जवाब देना होगा और हमें भी अप्रत्यक्ष लड़ाई लड़नी सीखनी होगी । आज बलूचिस्तान की आज़ादी तो कल सिंध की । बाक़ी बचेगा सिर्फ़ झुनझुना । आपको क्या लगता है , क्या हमें अपने राजनीतिक नेतृत्व पर दबाव नहीं बनाना चाहिए कि वह बलोचों की लड़ाई लड़े ? कश्मीर पर उसकी दख़लांदजी का जवाब क्या हमें बलूचिस्तान के रूप में नहीं देना चाहिए ? यदि आप सहमत हैं तो आप भी इस मुहिम में शामिल हों । कम से कम हिंद-बलोच फ़ोरम जैसी संस्थाओं के कार्यक्रमों में शिरकत तो अवश्य ही कीजिए । बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी । जय बलूचिस्तान ।