चल उड़ जा रे पंछी

रवि अरोड़ा
बीती रात खाली बैठा हिसाब लगा रहा था कि मेरे कितने परिचितों के बच्चे विदेश में रह रहे हैं ? लिस्ट देखकर खुद ही हैरानी हुई कि अरे ! हमारी डाल छोड़ कर इतने सारे पंछी उड़ गए ? जान पहचान के हर चौथे पांचवें घर का कोई न कोई सदस्य विदेश जा बसा है। हालांकि इस सूची में मैंने उन्हें भी शामिल कर लिया है जो पढ़ने के बहाने विदेश गए हैं, क्योंकि उच्च शिक्षा को विदेश गए दस में से केवल चार लोग ही तो भारत वापिस लौटते हैं। पहले स्टूडेंट वीजा, फिर पीआर यानि परमानेंट रेजिडेंट और फिर वहां की नागरिकता। यही तो हो रहा है। मां बाप को भी पता है कि बच्चा वापिस नहीं लौटेगा । अधिकांश ने तो स्वयं इसी सपने के साथ अपने बच्चे को पाला है। सामाजिक स्थितियों पर बात फिर कभी, आज तो इसके आर्थिक पहलुओं को समझने का मन है।
वैसे आर्थिक मामलों की कोई खास समझ मुझे नहीं है मगर फिर भी इतना तो मुझे भी पता है भारत की नागरिकता छोड़ कर विदेश जा बसने वालों की संख्या में लगातर हो रहा इज़ाफा देश की आर्थिक सेहत के अच्छा नहीं है। उधर, मोदी सरकार का यह हालिया बयान भी हैरान करता है कि उसे पता ही नहीं है कि विदेश जाकर बसने वाले कितना पैसा बाहर लेकर गए ? मेरा खुद का अनुभव है कि भ्रमण, रोजगार, शिक्षा अथवा निवेशक के रूप में विदेश जाने वाला कोई भी आदमी बिना सरकार की जानकारी के तो फूटी कौड़ी भी नहीं ले जा सकता । हो सकता है कि विदेशी मुद्रा के इस अपव्यय पर किसी किरकिरी से बचने विदेश राज्य मंत्री ने संसद में यह बयान दिया हो मगर फिर भी इसे लेकर चिंता तो सरकार को भी अवश्य हो ही रही होगी। पिछले साल 1 लाख 84 हजार लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी और इस समय लगभग 18 लाख भारतीय छात्र विदेश पढ़ने गए हुए हैं। जाहिर है कि आने वाले सालों में यही बच्चे इस सूची को और बड़ा करेंगे। विदेशों में जा बसे भारतीयों की संख्या ऐसे ही अब दो करोड़ नहीं हो गई है । कोई प्रदूषण और आबोहवा के बहाने नहीं लौटा तो कोई रोज़गार के अच्छे अवसर की बात कह कर वापिस नहीं आया । किसी को बाहर का टैक्स सिस्टम लुभाता है तो किसी को अपने बच्चों की शिक्षा और इलाज की सुविधाएं वहां से लौटने नहीं देती। किसी किसी को तो भारतीय पासपोर्ट से ही खुन्नस है कि इसी के चलते आधिकांश देशों में जाने के लिए पहले वीज़ा लेना पड़ता है।
बेशक सरकार दावा करे कि विदेश जा बसे प्रवासी भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देते हैं मगर कम से कम मुझे तो अपने दायरे में ऐसा दिखाई नहीं देता । मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिन्होंने निवेशक के तौर पर कनाडा, ब्रिटेन और अमेरीका की सीधे नागरिकता हासिल की और प्रति व्यक्ति पांच से दस करोड़ रुपया वहां निवेश किया । अब यदि थोड़ा बहुत चिल्लर वे भारत में अपने रिश्तेदारों को भेज भी देंगे तो वह उस बड़ी रकम के मुकाबले कुछ नहीं होगी जो वे यहां से ले गए । उच्च शिक्षा के लिए बाहर गए छात्र भी फीस आदि के लिए अच्छी खासी विदेशी मुद्रा बाहर ले जाते हैं। खास बात यह है कि कुछ ख़ास काबलियत रखने वाले लोगों को ही विदेश में बसने का सपना आता है और यह ब्रेन ड्रेन अनमोल होता है । उधर, भारतीय अर्थव्यवस्था में कोई ख़ास योगदान न देने वाले यहीं रह जाते हैं सरकार से मुफ्त का राशन पाने को । वैसे सोचना तो सरकार को भी पड़ेगा कि उसकी ऐसी कौन सी रीति नीति है जिसके चलते पिछली सरकारों के मुकाबले भारतीय नागरिकता छोड़ने को लालायित लोगों की तादाद डेढ़ गुना बढ़ गई है और उसके मुकाबले केवल सौ पचास लोग ही सालाना भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर रहे हैं और वह भी केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के ?

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