घंटी की आवाज़ का जाल

रवि अरोड़ा
हालाँकि अब दुनिया बदल चुकी है मगर एक ज़माने में गाँव-देहात में सर्वाधिक अपराध पशु चोरी के ही हुआ करते थे । चोरों के डर से लोगों ने गाय-भैंस घेर और घरों में बाँधने शुरू कर दिये । मगर चोर दो कदम आगे रहते थे और दीवार फाँद कर जानवर चोरी कर लेते थे । इस पर ग्रामीणों ने अपने पशुओं के गले में घंटियाँ बाँधनी शुरू कर दीं । जानवर की गर्दन हिलते ही घंटी बज उठती और घर के भीतर से ही उसकी गतिविधि का अंदाज़ा हो जाता । मगर चोरों ने उसका भी तोड़ निकाल लिया । गिरोह बना कर चोर जानवर को एक दिशा में ले जाते और उनका कोई साथी घंटी बजाता हुआ दूसरी दिशा की ओर चल देता । बेचारा ग्रामीण घंटी की आवाज़ की दिशा में पीछा करता और तब तक चोर उसके जानवर को कहीं दूर ले जाते । अब उत्तर प्रदेश में बसों को लेकर आजकल जो राजनीति हो रही है वह भी कुछ एसी ही है । घंटी कहीं बज रही है और पशु कहीं ओर ले जाया जा रहा है । अब मुझे नहीं मालूम कि इस प्रकरण में चोर कौन है कांग्रेस अथवा भाजपा । पशु भी दोनो में से किसका है , यह भी नहीं मालूम । मुझे तो बस इतना पता है कि पशु की स्थिति में वह ग़रीब गुरबा मज़दूर ज़रूर है , जिसे कोई नहीं अपना रहा और वह यूँ ही सड़क पर बेसहारा पड़ा है ।
पिछले चार दिन से प्रवासी श्रमिकों के नाम पर ग़ज़ब ड्रामा प्रदेश में हो रहा है । शुरुआत कांग्रेस ने की और श्रमिकों को उनके घर पहुँचाने के लिए एक हज़ार बसें उपलब्ध कराने की बात की । पहली नज़र में यह बड़ा ही नेक सा कार्य लगता है मगर उसकी मंशा पर शक यूँ होता है कि श्रमिकों की समस्या तो कांग्रेस शासित प्रदेशों में भी है , वहाँ उन्होंने क्या इंतज़ाम किये ? साफ़ दिखा की घंटी कहीं ओर बज रही है और काम कहीं और हो रहा है । राजनीति का जवाब राजनीति से ही देते हुए प्रदेश सरकार में भी बसें माँग लीं । हालाँकि स्वयं उसकी बसें ही महीनों से ख़ाली खड़ी हैं मगर उसने घंटी उलटी दिशा में बजा कर कांग्रेस को भरमाया । कांग्रेस ने जब बसों की सूची दी तो अब उनकी एसी स्क्रीनिंग की जैसे बसें मंगल मिशन पर जानी हों । बसों के कुछ नम्बर फ़र्ज़ी निकले तो भाजपा ख़ुश हो गई मगर अब जब कांग्रेस की बाक़ी बसें आ चुकी हैं तो प्रदेश सरकार उसे इस्तेमाल करना अपनी राजनीतिक हार मान रही है । उसे समझ नहीं आ रहा कि अब वह घंटी कौन सी दिशा में जाकर बजायें ?
इसमें कोई दो राय नहीं कि नेता हैं तो राजनीति करेंगे ही मगर इनकी सारी राजनीति ग़रीब के नाम पर ही क्यों होती है ? दो महीने से श्रमिकों की समस्या हल नहीं हो पा रही । कांग्रेस विपक्ष में है अतः वो सरकार को नीचा दिखाने का कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहती मगर भाजपा को क्या हुआ है वह तो सत्ता में है ? कांग्रेस का मुँह बंद करने के लिये वह कुछ अच्छा सा काम करके क्यों नहीं दिखाती ? कांग्रेस से पहले बसें लखनऊ में माँगना , फिर ड्राइवर कंडक्टर के नाम माँगना और अब उनके काग़ज़ों की दूरबीन लगा कर स्क्रीनिंग करने से तो साफ़ दिख रहा है कि वह कांग्रेस के जाल में फँस गई है । अजी बसों को आने तो देते । तब साफ़ पता चल जाता कि कितनी बसें हैं और कितने स्कूटर और आटो रिक्शा । क्यों पहले से सवाल उठा कर जाल में फँस रहे हो ? दो चार बसों के पास फ़िटनेस सर्टिफ़िकेट नहीं है तो क्या हुआ , सवारी तो वे फिर भी ढो सकती हैं ? मुआफ़ करना योगी जी इस बार आप मात खा गए । घंटी की आवाज़ के पीछे दौड़ कर अपना नुक़सान कर बैठे । वैसे इससे क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा यदि श्रमिकों को घर भिजवाने का थोड़ा बहुत श्रेय कांग्रेस को भी मिल गया तो ? श्रमिकों की मदद ज़्यादा ज़रूरी है या राजनीति ? अजी मैं तो कहता हूँ छोड़िये घंटी-वंटी और अपने प्रिय पशु की फ़िक्र कीजिये ।

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