गेटों की दुनिया
रवि अरोड़ा
किसी काम से आज राज नगर डिस्ट्रिक्ट सेंटर गया था । सड़क पर गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह नहीं मिली तो सोचा चलो पड़ौस के रिहायशी मोहल्ले में कार खड़ी कर देता हूँ । मगर इस मोहल्ले की हर सड़क पर बड़े बड़े गेट लगा कर बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा मिला । एक गेट खुला था मगर उसके बाहर एक चौकीदार रजिस्टर लेकर खड़ा था और हर आगंतुक से पूछता था कि किस घर में जाना है । इसी कालोनी की क्या बात करूँ , शहर की हर कालोनी में एसे ही गेट लगे हैं । नई नई बन रहीं टाउनशिप तो गेटों के साथ साथ ऊँची ऊँची दीवारें भी अपने इर्द गिर्द खड़ी कर लेती हैं । बेशक हम सभी इन गेटों और चारदीवारियों के कहीं न कहीं पक्षधर हैं और इनकी सिफ़तों के मुरीद भी हैं और जहाँ भी हों अपने को सुरक्षित करने को एसे जतन करते ही रहते हैं । मगर फिर भी ग़ौर से देखें तो यह किसी मानसिक विकृति से कम नहीं है । यह केवल मेरी आपकी ही मनोवृत्ति नहीं है वरन पूरे इंसानी जगत को इसने अपनी चपेट में ले रखा है । हाल ही में कोरोना संकट ने तो इसने और भी इज़ाफ़ा कर दिया है । अजब द्वन्द है । हम गेट के भीतर हों तो हमें ये सुविधा दिखते हैं और यदि बाहर हो मुसीबत नज़र आते हैं । हम अपने आसपास निगाह दौड़ायें तो हमें नित नये गेट खड़े होते नज़र आयेंगे । आर्थिक , सामाजिक और राजनीतिक गेटों की दुनिया दिन प्रतिदिन विशाल ही होती जा रही है ।
कल ही हरियाणा ने एक बड़ा गेट खड़ा किया है । स्थानीय सरकार ने फ़ैसला लिया है कि निजी क्षेत्र की कम्पनियों में भी 75 फ़ीसदी स्थानीय लोगों को आरक्षण दिया जाएगा । किसी दुकान में भी यदि दस से अधिक कर्मचारी होंगे तो उनमें तीन चौथाई का स्थानीय होना अब आवश्यक होगा । यानि बाहरी लोगों का प्रवेश बंद । ग़ौर करने योग्य बात यह है कि हरियाणा के लोग भी भारी संख्या में दूसरे राज्यों में काम करते हैं और उन राज्यों में भी यदि एसा हुआ तो ये लाखों लोग सड़क पर आ जाएँगे । वैसे किसी न किसी रूप में अनेक राज्य सरकारें एसा कर भी रही हैं । आन्ध्र प्रदेश ने पिछले साल बक़ायदा क़ानून पास कर 75 परसेंट नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण आवश्यक कर दिया था । महाराष्ट्र में एक अरसे से इस माँग को लेकर राजनीति हो रही है और आए दिन बाहरी लोगों के साथ मारपीट के समाचार मिलते रहते हैं । छद्म रूप से सरकार भी यही चाहती है और नौकरियों के लिये मूल निवास प्रमाण पत्र को आवश्यक कर बाहरी राज्यों के लोगों का चयन नहीं करती । हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड का अपना गेट है और वहाँ बाहरी आदमी प्रोपर्टी नहीं ख़रीद सकता । नोर्थ ईस्ट में भी बाहरियों के लिए तमाम बंदिशें हैं । दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी एक बड़ा गेट खड़ा करने का प्रयास किया और कहा कि दिल्ली के अस्पतालों में बाहरियों का इलाज नहीं होगा , हालाँकि वे इसमें कामयाब नहीं हुए । राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की अवधारणा को खंडित करते हुए यूपी भी बार बार दिल्ली वालों का राज्य में प्रवेश प्रतिबंधित कर देती है ।
देश से बाहर निकल कर देखें तो दुनिया के तमाम देशों के अपने अपने बड़े गेट हैं । अमेरिका एच 1 बी वीजा के नाम पर आजकल हमारे लाखों पेशेवरों को वापिस भेज रहा है और कल कुवैत ने भी नया गेट लगा कर घोषणा कर दी है कि कम से कम तीस फ़ीसदी भारतीयों को वो बाहर करेगा । अगर एसा हुआ तो आठ लाख भारतीय बेघर हो जाएँगे । अपने मोहल्ले के गेट पर रीझने वाले हम अब इसकी निंदा करेंगे और कुवैत के इस कदम को अमानवीय बताएँगे । जबकि उसने भी हमारी तरह अपना हित साधा है बस । वैसे समझ नहीं आता कि इन गेटों और चारदिवारियों को ज़रूरत हम इंसानों को ही क्यों पड़ती है । सिद्धांतों में हम ग्लोबलाईजेशन , दुनिया एक गाँव और वसुधैव कुटुम्बकम जैसी बड़ी बड़ी बातें करते हैं मगर हमारे दिलो में जगह इतनी भी नहीं कि कोई बाहरी आदमी हमारे घर के बाहर थोड़ी देर के लिए अपनी गाड़ी भी खड़ी कर ले ।