गांधी-गोडसे दोनों की जय
रवि अरोड़ा
वे तस्वीरें और वीडियो आपने भी देखे होंगे जिनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया के बड़े बड़े राष्ट्राध्यक्षों को लेकर बड़ी शान से राज घाट जा रहे हैं और वहां जाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। जी 20 की बैठक के आखरी दिन हुए इस इवेंट को पूरी दुनिया ने देखा होगा और अपने तईं उसके अर्थ भी लगाए होंगे। जाहिर है कि अर्थ तो हम भारतियों ने भी लगाए मगर पता नहीं क्यों मैं अर्थ लगाने की बजाय सवालों में मुब्तला रहा । सबसे बड़ा सवाल तो यह ही था कि गांधी जी की समाधि पर न केवल खुद जाने अपितु दुनिया के सबसे शक्ति शाली लोगों को भी अपने साथ वहां ले जाने पर मोदी जी के मनोभाव क्या रहे होंगे ? चेहरे मोहरे से तो बिलकुल उनके मन की बात पता नहीं चल रही थी मगर उस समय उनके मन में आखिर चल क्या रहा होगा ?
महात्मा गांधी दुनिया के एकलौते हिंदुस्तानी हैं जिन्हें भारतीय ही नहीं पूरी दुनिया मानती है। उनकी हत्या पर पूरी दुनिया में शोक छा गया था और अनगिनत देशों ने अपने झंडे झुका दिए थे । उनकी याद में सत्तर से अधिक देशों में आज भी खड़ी उनकी विशाल प्रतिमाएं गवाही देती हैं कि गांधी जी के प्रति दुनिया का सम्मान एक सदी के बाद भी रत्ती भर कम नहीं हुआ है। जब भी जहां भी शांति और प्रेम की बात होती है, गांधी जी का जिक्र लाजमी हो ही जाता है। हालांकि अपने मुल्क ने भी गांधी जी को राष्ट्रपिता का दर्जा दे रखा है और इमारतों, संस्थानों, इदारों और सड़कों तक का नाम उनकी स्मृति में रखने के अतिरिक्त अपनी करेंसी पर भी उनकी तस्वीर सजा रखी है। मगर फिर भी सबको पता है कि गांधी जी का कद छोटा करने की साजिशें सर्वाधिक उनके अपने ही देश भारत में हुई हैं और कमोवेश आज भी हो रही हैं। सच्चाई तो यही है कि गांधी के बरक्स सावरकर और नाथू राम गोडसे जैसों को खड़ा करने की कोशिशें आज पहले से अधिक हो रही हैं। कमाल की बात है कि अटल बिहारी वाजपेई और स्वयं नरेन्द्र मोदी जैसे प्रधानमन्त्री गांधी जी के साथ साथ उन सावरकर की प्रतिमाओं पर भी फूल माला चढ़ाते रहे हैं , जिन पर गांधी जी की हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोप लगा और तकनीकी कारण से वह बरी हो गए थे । अनेक रिपोर्ट ही नहीं तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल भी मानते थे कि आरएसएस और हिन्दू महासभा ने ही गांधी जी की हत्या का षड्यंत्र रचा था । मोदी जी जिस भाजपा के सर्वोच्च नेता हैं, वह उसी विचारधारा की उपज है। आज भी भाजपा में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो गोडसे को महिमा मंडित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते । भाजपा शासन में ही देश के कई शहरों में गोडसे के मंदिर बनवाने के प्रयास हुए और उसे शहीद का दर्जा देने का अनवरत कुचक्र अब तक रचा जा रहा है। सावरकार को तो खैर स्थापित कर ही दिया गया है और शहर शहर ही नहीं संसद तक में उनकी तस्वीर लगवा दी गई है।
कितना अजीब है कि भाजपा हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को मानती है और इसके लिए सावरकर को अपना आदर्श पुरुष भी बताती है मगर अंतराष्ट्रीय मंचों पर उसे खुद को गांधी का अनुयाई बताना पड़ता है। पार्टी वीर सावरकर की जयंती के दिन नए संसद भवन का उद्घाटन कराती है और मोदी जी उस कोठरी को भी जाकर प्रमाण करते हैं जहां सावरकर काला पानी की सजा भोग रहे थे मगर विदेश यात्राओं में गांधी जी की प्रतिमाओं के समक्ष सिर भी जाकर झुकाते हैं। पार्टी की नेता प्रज्ञा ठाकुर गांधी के हत्यारे गोडसे को राष्ट्र भक्त बताती हैं और बदले में पार्टी उन्हें भोपाल सीट से सांसद चुनवा देती है। दुनिया जानती है कि गांधी समावेशी विचारधारा के थे और सभी धर्मों और जातियों के बीच समानता की बात करते थे । उधर, भाजपा सावरकर के एजेंडे हिंदुत्व को लेकर चलती है और मुस्लिमों के प्रति उसके दुराग्रह जग जाहिर हैं। मगर राजनीतिक मजबूरी देखिए कि बीच बीच में इन लोगों को गांधी जी की जय भी बोलनी पड़ती है। चलिए अपना सवाल आपसे ही पूछता हूं- गांधी जी की हत्या के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि एक साथ दुनिया के इतने बड़े नेता राज घाट गए । यह कार्यक्रम तय करते और उसे संपन्न कराते समय हमारे मोदी जी के मन में आखिर क्या चल रहा होगा ?