गपोड़ गाथा

भारत पाकिस्तान के बीच हुए संक्षिप्त युद्ध की भारतीय टीवी चैनल्स द्वारा की गई रिपोर्टिंग देखकर पंजाब की एक मशहूर गपोड़ गाथा याद आ गई । वैसे तो यह पंजाबी कविता हमारे टीवी चैनल्स की गपोड़गाथाओं के आगे बहुत बौनी है मगर क्या करूं, इससे बड़ी हांकने में पंजाबी तो क्या किसी भी भाषा का साहित्य हाँफ जाएगा । पाठकों की सुविधा के लिए इस कविता का हिंदी रूपांतरण करने की गुस्ताखी इस नाचीज़ ने की है।
गंगा से निकलीं तीन नहरें
दो सूखी एक बहे ही ना
जो बहे ही ना
उसमें नहाने गए तीन भक्त
दो डूब गए और एक मिले ही ना
जो मिले ही ना
उसे मिलीं तीन भैंसें
दो बांझ और एक ब्याहे ही ना
जो ब्याहे ही ना
उसने दिए तीन बछड़े
दो लंगड़े और एक उठे ही ना
जो उठे ही ना
उसकी कीमत तीन अशर्फी
दो खोटीं और एक चले ही ना
जो चले ही ना
उसे देखने आए तीन सुनार
दो अंधे और एक को दिखे ही ना
जिसे दिखे ही ना
उसे पड़े तीन घूंसे
दो खाली गए और एक लगे ही ना
रवि अरोड़ा
( आप चाहें तो स्वतः ही इस गप्प को अंतहीन सिरे तक बढ़ा सकते हैं )
( कोई तस्वीर साथ हो तो फेसबुक संदेश की पहुंच बढ़ा देता है। मजबूरन इसलिए अपनी एक तस्वीर नत्थी कर रहा हूँ । जाहिर है कि कविता का इस तस्वीर से कोई संबंध नहीं है । )

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