ख़तरा झूले का
रवि अरोड़ा
लॉकडाउन का समय बड़ों ने बेशक रो-धो के काटा हो मगर बच्चों , किशोर और युवाओं की तो पूरी मौज रही । शहरों में ही नहीं गाँवों में भी युवा पीढ़ी रात रात भर इंटरनेट खेल पबजी में मशगूल दिखी । सोच कर ही हैरानी होती है कि ऑनलाइन लूडो और पबजी जैसे खेलों का सहारा न होता तो ये बच्चे क्या करते ? बेशक प्रधानमंत्री ने सोशल डिसटेंसिंग जैसा बेतुका शब्द दिया हो मगर युवा पीढ़ी ने इस दौर में घर में रह कर ही अपना सामाजिक दायरा ख़ूब बढ़ाया । पबजी में एक साथ देश दुनिया के सौ लोग खेलते हैं और इसमें अपने समूह के लोगों से बातचीत की भी सुविधा होती है अतः बच्चे आपस में ख़ूब घुले मिले । चूँकि स्कूल कालेज अभी नहीं खुले हैं अतः अब भी बहुतों का सहारा ये ऑनलाइन गेम्स ही हैं मगर फिर भी धीरे धीरे फ़िज़ा बदल रही है । प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर और वोकल फ़ोर लोकल वाले भाषण और अब सीमा पर चीन से चल रही तनातनी से ग़ुस्साई युवा पीढ़ी धड़ाधड़ चाइनीज़ एप अपने फ़ोन और कम्प्यूटर से हटा रही है । जवाँ ख़ून में जगी देशभक्ति की इस भावना की गहराई इसी से समझी जा सकती है कि समय व्यतीत करने के लिए कोई अन्य अच्छा विकल्प मौजूद न होने के बावजूद वे एसा कर रहे हैं ।
पिछले पाँच छः सालों में चीन ने मोबाईल फ़ोन, कम्प्यूटर और अन्य गेजेट्स में ही नहीं एप्स के भारतीय बाज़ार पर भी क़ब्ज़ा कर लिया है । भारतीय बाज़ार में गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड होने वाले सौ प्रमुख एप में से पचास चीन के ही हैं । दरअसल भारत दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ता एप बाज़ार है अतः चीन ने भी अपने प्रसार को यहाँ अपनी पूरी ताक़त झोंक रखी है । पबजी ही नहीं टिकटोक , हेलो, शेयरइट और यूडिक्शनरी जैसे चीन निर्मित एप भी भारतीयों में बहुत पसंद किये जाते रहे हैं । अकेले हेलो एप के भारत में चार करोड़ उपभोक्ता हैं । दुनिया भर में टिकटोक के चालीस फ़ीसदी उपभोक्ता भारतीय ही हैं । ख़ास बात यह है कि अधिकांशत ये उपभोक्ता सोलह से चौबीस साल उम्र के हैं ।
वुहान लैब में कोरोना वायरस के बने होने की चर्चाओं, लॉकडाउन के बाद बिगड़ी देश की आर्थिक स्थिति, प्रधानमंत्री के स्वदेशी वाले भाषण और अब सीमा पर चीन द्वारा की जा रही ढींगामुश्ती ने देश में सर्वाधिक युवा पीढ़ी को उद्देलित किया है । इसी का असर है कि और कुछ बड़ा कर पाने में अक्षम युवाओं ने धड़ाधड़ चीनी एप ही अपने फ़ोन से हटाने शुरू कर दिये हैं । टिकटोक के विकल्प के रूप में युवाओं द्वारा ‘ मित्रों ‘ एप भी धड़ाधड़ डाउनलोड किया जा रहा था कि चीन के दबाव में गूगल ने अपने प्ले स्टोर से इसे हटा दिया । हालाँकि यह एप मूलतः पाकिस्तानी कम्पनी का है मगर भारतीय प्रधानमंत्री के तकिया कलाम होने के कारण भारतीय युवाओं में कुछ ही समय में यह लोकप्रिय हो गया । इसी बीच जयपुर की कम्पनी वनटेक एपलैब ने ‘ रिमूव चाईना एप ‘ नामक एक एप बना कर भारतीय एप मार्केट में तहलका मचा दिया । इस एप को डाउनलोड करके उपभोक्ता अपने फ़ोन से सारे चीन निर्मित एप्स डिलीट कर सकता है । देश में यह एप इतना हिट हुआ कि दो हफ़्ते में ही पचास लाख भारतीयों ने इसे डाउनलोड कर लिया मगर चीन के दबाव में गूगल ने अपने एप स्टोर से इसे भी हटा लिया। लॉकडाउन के शुरुआती दौर में तमाम सरकारी बैठकें ज़ूम एप के माध्यम से ऑनलाइन हो रही थीं । स्कूलों और कालेजों की ऑनलाइन क्लासेज़ भी इसी चीनी एप से हो रही हैं । दुनिया भर में ज़ूम की विश्वसनीयता को लेकर उठे सवालों के चलते सत्रह अप्रेल से सरकारी कामों में यह एप इस्तेमाल नहीं हो रहा मगर शिक्षा क्षेत्र अभी भी इसका कोई अच्छा विकल्प तलाश नहीं पाया है ।
ज़ाहिर है कि चीन के प्रति देश की युवा पीढ़ी में उपज़ा आक्रोश भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये कुछ बड़ा कर सकता है । इसी आक्रोश के चलते भारत-चीन के उस सालाना छः सौ अरब डालर व्यापार की इबारत नए तरीक़े से लिखी जा सकती है जिसमें दो तिहाई हमारा चीन से आयत ही है । आज अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी अमेरिका और उसके पीछे चलने वाले अनेक देश भारत के साथ खड़े हो गये हैं । अब यह सरकार करना है कि वह अपनी दृढ़ता कब तक बनाये रखेगी । क्योंकि यह ख़तरा तो है कि पता नहीं कब मोदी जी फिर से चीनी राष्ट्रपति को झूला झुलाने लगें ।