क्या सचमुच देवतुल्य
रवि अरोड़ा
एक बात के लिए तो भाजपा वालों की तारीफ करनी पड़ेगी । वो जब अपनी पर आते हैं तो सामने वाले को सीधा चने के झाड़ पर चढ़ा देते हैं । अब देखिए न, चुनाव के दिनों में वो अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को ‘ देवतुल्य ‘ पुकारने लगते हैं । अपने भाषणों में पार्टी के बड़े बड़े नेता ऐसा करते हैं । भाजपा की देखादेखी अन्य दल भी अब मतदाताओं को देवतुल्य कहने लगे हैं । सभी कह रहे हैं तो हो सकता हो कि मतदाता सचमुच देवताओं के समान ही हों । यूं भी इस नेताओं की नैया पार लगाने वाले उनके लिए किसी देवता से कम हो भी कैसे सकते हैं । मगर कभी कभी शक होता है । क्योंकि शास्त्र तो कहते हैं कि देवता परालौकिक शक्ति का स्वामी और कोई पराप्राकृतिक व्यक्तित्व होता है जबकि देखे सुने सभी चुनाव तो शक पैदा करते हैं कि हमारे मतदात क्या चार कदम दूर की चीज भी ढंग से देख पाते हैं ?
खबर है कि उन्नाव के बलात्कार कांड की पीड़िता की कांग्रेस उम्मीदवार मां आशा सिंह अपनी जमानत बचा पाने में नाकामयाब रही हैं और उन्हें केवल 1544 वोट मिले हैं। आशा सिंह की बेटी के साथ भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने बलात्कार किया था।यह बलात्कार कांड वही है जिसने पूरे देश की राजनीति को हिला दिया था और पीड़िता के घर नेताओं और मीडिया का हुजूम टूट पड़ा था । आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट के खिलाफ दुनिया की सबसे लंबी भूख हड़ताल करने वाली लड़की इरोम भी शायद आपको याद हो । जी हां वही जिसे अस्पताल में कैद करके सोलह साल तक नाक में नली डालकर भोजन दिया गया था । अंग्रेजों के जमाने के इस तुगलकी कानून के खिलाफ नॉर्थ ईस्ट की सशक्त आवाज बनी इरोम ने जब चुनाव लडा तो उसे मात्र 90 वोट मिले जबकि 143 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था । टी एन शेषण तो यकीनन आप भूले नहीं होंगे । जी हां भारत के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त जिन्होंने देश के चुनावों की तस्वीर बदल दी और चुनावों को इतना पारदर्शी और निष्पक्ष बना दिया था कि पूरी दुनिया उसे देख कर दंग रह गई थी । उस जमाने में कहा जाने लगा था कि देश के नेता ऊपर भगवान से और नीचे केवल शेषण से डरते हैं । शेषण वही अधिकारी थे जिन्होंने चुनाव खर्च का ब्यौरा न देने पर 1488 नेताओं के चुनाव लडने पर बैन लगा दिया था । यही शेषण जब खुद 1997 में लोकसभा का चुनाव लडने उतरे तो जनता ने उन्हें मुंह के बल पटक दिया ।
भाजपा ही नहीं देश के महान नेता अटल बिहारी वाजपई को जनता ने पांच बार लोकसभा का चुनाव हरवाया । बेशक आज देश के नेताओं का एक बड़ा धड़ा राम मनोहर लोहिया का शागिर्द है मगर जनता ने उन्हें केवल एक बार जिताया वरना हर बार करारी शिकस्त दिलवाई । चुनावी समर में राजेश खन्ना के लटकों झटकों ने लाल कृष्ण आडवाणी को इतना परेशान किया कि वे हमेशा के लिए दिल्ली छोड़ कर गुजराती हो गए । उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की राजनीति शिखर के पुरुष हेमवती नंदन बहुगुणा के बजाय इलाहाबाद की जनता ने अमिताभ बच्चन को जिताना उचित समझा तो भाजपा के बड़े नेता राम नाइक को मुंबई वालों ने गोविंदा के सामने टिकने नहीं दिया । दक्षिणी राज्यों का भी यही हाल है । जमीनी नेता पिछड़ जाते हैं और फिल्म स्टार मुख्यमंत्री तक बन जाते हैं । ऐसे अनेक उदाहरण आपको भी याद होंगे जब जनता ने आंख बंद करके अपने नेता का चुनाव किया । अब आप भी बेशक इन बंद आखों वालों को देव तुल्य कहिए मगर अपना मन तो नहीं है ।