कौन वड्डा !
रवि अरोड़ा
पंजाबी में एक तंजिया कहावत है- कौन वड्डा-जिन्दी जबान वड्डी। यानी बड़ा तो वही है जिसकी जबान ज्यादा चलती हो और जो बढ़ बढ़ कर बोले। हाल ही में 2 जून को ओडिशा के बालासोर में हुई भीषण रेल दुर्घटना पर यह कहावत पूरी तरह फिट बैठती है। देश की सबसे घातक रेल दुर्घटनाओं में से एक इस हादसे में 288 लोग मारे गए और 1100 लोग घायल हो गए मगर उसकी जिम्मेदारी लेना तो दूर सरकार और उसका आई टी सेल रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव की जय जयकार में लगा हुआ है। गोया मंत्री जी कोई देवदूत हों और उन्होंने कोई अभूतपूर्व कार्य कर दिखाया हो। सोशल मीडिया मंत्री जी की तस्वीरों और वीडियो से पाट दिया गया है और कुछ ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे किसी दुर्घटना के बाद देश में पहली बार राहत कार्य हुआ हो । पता नहीं यह कैसे हुआ मगर मारे गए लोगों और घायलों के बजाय रेल मंत्री के प्रति अधिक संवेदना प्रकट की जा रही है । यह स्थिति तो तब है जब एक तिहाई मृतकों की अभी तक शिनाख्त भी सरकार नहीं करा सकी है और बोरियों की तरह मृतकों को ट्रकों में फेंकने के वीडियो भी सामने आ रहे हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि हादसे के बाद रेल मंत्री का राहत कार्य में इस तरह से जुट जाना स्वागत के ही योग्य है मगर फिर भी इससे यह तो तय नहीं हो जाता कि रेल मंत्री को अब हादसे की जिम्मेदारी लेने की कोई आवश्यकता नहीं है ? युवा और फुर्तीले मंत्री जी प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं और बालासोर के जिलाधिकारी भी रह चुके हैं तथा ओडिशा से ही राज्यसभा सांसद हैं अतः उनसे ऐसा साहसी कार्य करने की उम्मीद की ही जानी चाहिए थी। मगर इससे उन्हें हीरो कैसे मान लिया जाए और क्यों उनकी जय जयकार की जाए ? क्या केवल इसलिए कि घटना स्थल पर उन्होंने भारत माता की जय और वंदे मातरम् के नारे लगवाए थे ? क्या इसलिए कि हादसे के पीछे उन्हें किसी साजिश की बू आ रही है और उठी उंगलियों का मुंह मोड़ने और कोई ऐच्छिक खलनायक ढूंढने को इन्होंने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी है ? बेशक उनका इस्तीफा न देकर राहत कार्य में जुटना ठीक ही था मगर इससे पूर्व के वे तमाम रेल मंत्री बौने कैसे हो गए जिन्होंने अपने कार्यकाल में हुए हादसे की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे दिए थे और अब इसी बात पर उनका मखौल उड़ाया जा रहा है ?
सरकारी आंकड़ा है कि पिछले चार साल में 1100 रेल गाड़ियां पटरी से उतरी हैं और पिछले पांच सालों में 217 रेल हादसे हो चुके हैं। मोदी जी के अब तक के कार्यकाल में 8 बड़ी रेल दुर्घटनाएं हुई हैं और 588 लोग अकाल मौत के मुंह में समा गए । इसपर वर्तमान रेल मंत्री ने ऑटोमेटिक ब्रेकिंग सिस्टम यानी कवच की धूमधाम से घोषणा कर बड़े बड़े दावे किए थे मगर हादसे फिर भी हो रहे हैं ।सरकार पिछले पांच सालों में एक लाख करोड़ रुपए रेलवे सुरक्षा के नाम पर खर्च कर चुकी है मगर उसका परिणाम कहीं भी नहीं दिख रहा । मोदी सरकार का सारा ध्यान नई नई गाड़ियों की घोषणा करने और रेलों की स्पीड बढ़ाने पर है मगर वह पटरियों के बाबत लापरवाह बनी हुई है। खुद कैग ने माना है कि पटरियों की हालत खस्ता है और अधिकांश साल 1870 से 1930 के बीच की बनी हुई हैं। जमीनी हकीकत यह भी है कि बेतहाशा भाड़ा बढ़ाने और सुविधाएं कम करने के बावजूद पटरियों के रखरखाव का खर्च लगातार कम किया जा रहा है। रेलयात्रियों के जीवन का मूल्य सरकार की नज़र में कितना है इसका अंदाजा इसी से लगता है कि रेल मंत्रालय के लिए मंत्री भी वह दिया गया है जो आईटी जैसे अन्य मंत्रालय भी देखता है। इतना सब कुछ है मगर फिर भी रेल मंत्री जी महान हैं, प्रधानमंत्री जी महानतम हैं। सच! बुजुर्ग ठीक ही कहते थे- कौन वड्डा जिन्दी जबान वड्डी ।