किसे याद रहेगा
रवि अरोड़ा
पिछ्ले एक सप्ताह से तबीयत नासाज है । पहले समझा मौसम में बदलाव का असर है । जब आराम नहीं आया तो डॉक्टर को फोन किया । डॉक्टर ने बताया कि मौसम नहीं खराब हवा में सांस लेने के कारण ऐसा हो रहा है। उसने हंस कर सलाह दी कि कहीं बाहर चले जाओ। हंस कर इसलिए कहा होगा क्योंकि वह जानता है कि मैं इतना बड़ा आदमी तो हूं नहीं जो खराब हवा के चलते शहर छोड़ दूं। हालांकि एक ख़बर के मुताबिक दिल्ली के 17 फीसदी लोग अब शहर छोड़ गए हैं। जाहिर है कि वे सभी लोग पैसे वाले होंगे अथवा अपनी तमाम जिम्मेदारियों से बरी होंगे। मगर बचे हुए हम 83 फीसदी लोग क्या करें ? हमें किस गुनाह की सज़ा मिल रही है। न दिन में चैन है और न रात में आराम। पांच में से चार परिवारों में एक न एक आदमी प्रदूषण के चलते आजकल बीमार है। ये सारी बातें उन्हीं सर्वे से सामने आ रही हैं जो अपनी विरोधी पॉलिटिकल पार्टी को घेरने के लिए खास राजनीतिक दलों की शय पर आजकल हो रहे हैं। एक दूसरे को प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार ठहराने के लिए अपनी पसंद के आंकड़े तैयार करवाए जा रहे हैं। इसी का नतीजा है कि कोई एक सटीक आंकड़ा ही अब तक सामने निकल कर नहीं आ रहा कि दिल्ली एनसीआर की खराब हवा के लिए आखिर कितने फीसदी वाहन ज़िम्मेदार हैं और कितने फीसदी उद्योग। पराली जलाए जाने की इसमें कितनी भूमिका है और कितने फीसदी निर्माण कार्यों की ? प्रदूषण से निपटने का कोई स्थाई समाधान तो ख़ैर ढूंढा ही नहीं जा रहा।
बेशक दिल्ली सरकार ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं मगर उसका परिणाम क्यों नहीं दिखाई दे रहा, यह किसी को समझ नहीं आ रहा । कहीं ऐसा तो नहीं कि पराली जलाए जाने की खराब हवा में भूमिका को कम करके दिखाया जा रहा हो ? इस मामले में तो केन्द्र और पंजाब सरकार दोनो फंसती हैं। हालांकि केन्द्र में बैठी भाजपा और दिल्ली व पंजाब में शासन कर रही आप पार्टी एक दूसरे को तो कोस रही हैं मगर मिल कर इस समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं ढूंढ रहीं जो साल में छह महीने करोड़ों लोगों को हलकान करती है। राजनीति इतना नीचे गिर गई है कि तीन कृषि कानूनों से उपजी किसानों की नाराजगी के चलते केन्द्र सरकार किसानों के खिलाफ कोई बड़ा कदम नहीं उठाना चाहती और अपने बड़े मतदाता किसान वर्ग के खिलाफ आप पार्टी भी कुछ करने की बजाय बस मौसम बदलने का इंतजार कर रही है । आपसी नफरत का स्तर यह है कि केन्द्र का नुमाइंदा दिल्ली का उपराज्यपाल दिल्ली सरकार का रेड लाईट ऑन गाड़ी ऑफ का मामूली सा प्रस्ताव इसलिए रोक लेता है कि कहीं इससे केजरीवाल सरकार की जनता के बीच छवि न बेहतर हो जाए। उधर, आप पार्टी पराली के मुआवजे पर केन्द्र को तो गरियाती है मगर पंजाब के किसानों के आगे उसकी भी घिग्गी बंधती है। भाजपा दिल्ली और पंजाब में तो प्रदूषण के खिलाफ धरना प्रदर्शन करती है मगर हरियाणा के किसानों के आगे उसके भी हाथ यूं बंधे हैं जैसे वही उसके माई बाप हैं। अब आप ही बताइए ऐसे में कोई स्थाई समाधान कैसे निकले। सर्वे चीख चीख कर कह रहे हैं कि दिल्ली इस धरती की सबसे प्रदूषित राजधानियो में से एक है भारत में हर साल बीस लाख लोग प्रदूषण के कारण मरते हैं मगर मजाल है कि किसी बड़ी पार्टी अथवा सरकार के कानों पर जूं भी रेंगती हो। नेता जानते हैं कि दशहरे से होली तक की ही तो बात होती है। अगले छह महीने में फिर किसे याद रहेगा कि खराब हवा भी कोई शय होती है।