करतारपुर से लौट कर ( भाग दो )
रवि अरोड़ा
अमृतसर से भारतीय सीमा के लिए हमने टैक्सी का सहारा लिया। आमतौर पर सभी को यही करना पड़ता है। सार्वजनिक परिवहन का कोई जरिया है नहीं और बाहर से आया कोई व्यक्ति पराए शहर में अपना वाहन भला कहां से लाएगा ? लौटते समय भी सीमा पर कोई वाहन मिलता नहीं इसलिए शाम तक के लिए ही सबको टैक्सी बुक करनी पड़ती है । ज़ाहिर है कि यह काम खर्चीला होता है। लगभग 65 किलोमीटर की एक तरफ की यात्रा और दिन भर सवारी का इंतज़ार करने के कम से कम तीन हजार तो टैक्सी वाले वसूलते ही हैं। अमृतसर से अजनाला होते हुए भारत पाक सीमा पर पहुंचते समय सड़क की हालत को देख कर कतई नहीं लगा कि हम किसी बहुप्रचारित यात्रा पर जा रहे हैं और इस यात्रा के नाम पर देश के नेताओं ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं। बेशक यह कॉरिडोर खुले हुए तीन साल हो चुके हैं मगर भारत की ओर सड़कों पर अभी तक काम चल रहा है। दो स्थानों पर छोटे पुल बन रहे थे तो कम से कम तीन जगह सड़क की मरम्मत का काम चल रहा था । हालांकि वापसी में टैक्सी चालक ने कोई दूसरा मार्ग पकड़ा मगर मुख्य मार्ग की हालत देख कर तो मन खिन्न ही हो गया।
करतारपुर कॉरिडोर की पहला निशान बॉर्डर से सात किलोमीटर पहले ही दिखाई दिया जहां नई चार लेन सड़क का निर्माण किया गया है। साल 2019 की 26 नवंबर को मोदी जी ने यहीं पर इस कॉरिडोर का शिलान्यास किया था । यह सड़क हमें सीधा इमिग्रेशन सेंटर तक ले गई। यहां पहुंच कर तो ऐसा लगा जैसे हम किसी हवाई अड्डे पर आ गए हों। हवाई अड्डा भी ऐसा जो कई मामलों में दिल्ली हवाई अड्डे के टर्मिनल 3 को मात दे । हवाई अड्डे जैसी ही कदम कदम पर जांच और विदेश यात्रा के लिए की जाने वाली सारी औपचारिकताएं। नियमानुसार एक व्यक्ति केवल ग्यारह हज़ार रूपए ही करतारपुर ले जा सकता है मगर मेरे बच्चों ने खरीदारी को कुछ ज्यादा ही पैसे रख लिए थे सो वापिस जाकर टैक्सी चालक को अतिरिक्त पैसे सौंपने पड़े। हालांकि घोषित रूप से जरूरी प्रपत्रों में पासपोर्ट शामिल नहीं है मगर पासपोर्ट, आधार और यात्रा के लिए मिले इलैक्ट्रोनिक ट्रैवल ऑथोराईजेशन के बिना यात्रा नहीं हो सकती। चूंकि पाकिस्तान में पोलियो का प्रकोप है इसलिए हमें पोलियो की दवा भी पिलवाई गई। एक अलग काउंटर पर प्रति दिन के यात्रियों का रोजनामचा लिखा जा रहा था । हम उस काउंटर पर दोपहर के लगभग एक बजे पहुंचे थे तो मैंने देखा कि मेरा यात्री संख्या 63 था । यानि मेरे परिवार के अतिरिक्त उस समय तक मात्र साठ अन्य यात्री करतारपुर साहेब गए थे । उधर, सुरक्षा कर्मी हमें बार बार चेता रहे थे कि आप लोग बहुत लेट हो गए हैं और हमें वहां से हर सूरत चार बजे तक वापिस आना होगा । हालांकि घोषित रूप से शाम छह बजे तक तीर्थयात्री करतारपुर साहेब रुक सकते हैं मगर अनुपालन साढ़े चार बजे तक के हिसाब से ही कराया जा रहा है । इतना बड़ा गुरुद्वारा जो देश दुनिया की ढाई करोड़ से अधिक सिख बिरादरी और उससे भी अधिक संख्या में नानक नाम लेवा आबादी की श्रद्धा का केन्द्र हो और उसके दर्शनाभिलाषी मात्र 63 लोग ? और वह भी इतने बड़े त्यौहार के अवसर पर ? ऐसा कैसे हो सकता है कि 70 किलोमीटर दूर स्थित गोल्डन टैंपल में रोजाना लाखों लोग देश दुनिया से पहुंचते हों और लगभग उतने ही प्रसिद्ध और एक तरह से उससे भी अधिक ऐतिहासिक महत्व वाले इस गुरूद्वारे में मात्र 63 की संख्या ? क्या यह पाकिस्तान का कोई ढकोसला है और उसने दुनिया को दिखाने के लिए तो कॉरीडोर खोल दिया और जमीनी स्तर पर हमें वहां की सरकार आने नहीं देती ? क्या कम संख्या में श्रद्धालुओं के करतारपुर जाने के लिए हमारी ही सरकार जिम्मेदार है और क्या वही कदम कदम पर अड़चने लगाती है? आखिर क्या वजह है कि आठ सौ करोड़ रूपए खर्च होने के बावजूद इस कॉरिडोर का लाभ नहीं लिया जा रहा ? इस कॉरिडोर के उद्घाटन के समय दोनो देश की सरकारों ने दावा किया था कि फिलहाल पांच हजार यात्री प्रतिदिन करतारपुर आयेंगे और बहुत जल्द यात्रियों की संख्या दस हजार कर दी जाएगी और वास्तव में यात्रियों की संख्या इतनी कम ? सवाल बहुत बड़ा था और मेरा पूरा दिन इसी से जूझने में बीता ।
क्रमश :