कतई ‘ वो ‘ है पब्लिक
रवि अरोड़ा
उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ नेता अक्सर बताया करते हैं कि अपनी हैसियत का असली अंदाजा तो विधान सभा में जाकर तब होता है जब हरिशंकर तिवारी, अमर मणि त्रिपाठी, मुख्तार अंसारी, राजा भैया और अतीक अहमद आदि जैसे बडे़ माफिया नेता भवन में प्रवेश करने हैं। कई कई बार के विधायक भी जब आपसे अपनी बात अधूरी छोड़ इन माफियाओं को नमस्कार करने लपकते हैं तो पता चल जाता है कि हम क्या हैं और वो क्या हैं। मैं इन नेता जी से हर बार कहता हूं कि आप लोग टिकट देते हो तभी तो ये लोग जीतते हैं। इसपर वे उन तमाम माफियाओं के नाम गिनाते हैं जो निर्दलीय भी जीत जाते हैं । उनके इस तर्क पर हम दोनों को ही एकराय होना पड़ता कि जब जनता ही ‘ वो ‘ है तो कोई कर भी क्या सकता है।
प्रयागराज में अपने भाई अशरफ के साथ मौत के घाट उतार दिया गया अतीक अहमद इलाहाबाद पश्चिम से पांच बार विधायक चुना गया था । तीन बार तो निर्दलीय भी । आखिर किसके वोट से वो बार बार विधानसभा पहुंचता था ? वह शहर जिससे देश का स्वाधीनता आंदोलन संचालित होता था , जहां से आज भी सर्वाधिक आईएएस और आईपीएस निकलते हैं, जहां प्रदेश का सबसे बड़ा न्याय का मंदिर हाई कोर्ट है , वहां के मतदाता इतने ओछे कैसे हो गए ? फूलपुर की वह लोकसभा सीट जहां से पंडित जवाहर लाल नेहरू कभी चुनाव लड़ते थे , वहां से अतीक अहमद जैसा दुर्दांत माफिया आखिर किसके वोटों से सांसद चुन लिया गया ?
कोरी बकवास है कि यथा राजा तथा प्रजा । सच्चाई यह है कि यथा प्रजा तथा राजा । मिट्टी में मिला देंगे जैसा उद्घोष विधानसभा में वही मुख्यमंत्री तो कर सकता है जिसे पता हो कि मेरी पब्लिक किस मानसिकता की है ? पब्लिक ओछापन पसंद करती है यही जान कर तो प्रदेश का वरिष्ठ मंत्री जिसने संविधान की शपथ ली है, कानून व्यवस्था के मुंह पर पड़े इस तमाचे को भी आसमानी इंसाफ कहने की हिमाकत कर सकता है। जय श्री राम का नारा लगाकर सरेआम हत्याएं बता रही हैं कि लगभग एक दशक से जहर की जो फसल बोई जा रही थी, वह अब पूरी तरह लहलहा चुकी है । नतीजा पुलिस कस्टडी में हुई हत्याओं पर भी लोगबाग ऐसे झूम रहे हैं जैसे मरने वाले कोई एलियन थे । देश संविधान और कानून व्यवस्था के अनुरूप चले ऐसा सोचने वाले लोग गालियां खा रहे हैं और इन हत्याओं के पैरोकार देश भक्त माने जा रहे हैं। अपराधियों को ला रही पुलिस की गाड़ी पलटने की दुआ ‘अल्ला मेघ दे’ स्टाइल में मीडिया मांगती नजर आती है तो तालिबान को गाली देते देते जैसे पूरा मुल्क अब तालिबानी इंसाफ का पैरोकार बन गया है । हैरानी की बात तो यह है कि पुलिस कस्टडी में हुई हत्याएं भी अब कानून व्यवस्था की वापसी करार दी जा रही हैं। इतनी बड़ी असफलता और उसका यह महिमामंडन मास हिस्टीरिया का कौन सा रूप है, यह अपनी समझ से बाहर है। ले देकर बस यही कसर बाकी है कि ऐसा दावा नहीं हो रहा कि इन हत्याओं पर आसमान से देवता भी फूल बरसा रहे हैं । इंतजार कीजिए वह दिन भी दूर नहीं जब कोई बड़ा नेता ऐसा दावा करेगा और ‘ वो ‘ पब्लिक इसपर भी शर्तिया यकीन कर झूम उठेगी ।