इज्जत की नीलामी का व्रत

रवि अरोड़ा
दस दिन पहले यू ट्यूब पर आए ध्रुव राठी के वीडियो ‘द डिक्टेटर’ ने देश भर में तहलका मचा रखा है। इन पंक्तियों को लिखे जाने तक इस वीडियो को लगभग दो करोड़ लोग देख चुके थे । खास बात यह है कि यू ट्यूब पर अंगूठा ऊपर उठा कर इसे पसंद करने की जानकारी भी 17 लाख लोगों ने दी है जबकि नापसंदगी में एक भी अंगूठा नीचे नहीं गिरा । वीडियो पर तीन लाख ग्यारह हजार कमेंट हैं और चंद को छोड़ कर सभी ने इस वीडियो के कंटेंट पर अपनी सहमति जताई है। उधर ट्विटर यानी एक्स पर भी यह वीडियो सबसे अधिक देखे जाने वाला बना हुआ है। हालांकि इस वीडियो को कई कई बार देखने के बाद भी इसमें एक भी बात ऐसी नज़र नहीं आती जिसे आप और हम न जानते हों मगर पब्लिक तो जैसे इस पर टूट ही पड़ी है । तो क्या इस वीडियो को पसंद किए जाने का एक मात्र कारण यह है कि इसमें कही गई बातों के खुलासे की अपेक्षा हम लोग मुख्य धारा के मीडिया से कर रहे थे और वहां पसरी नीरव चुप्पी हमें ध्रुव राठी और ऐसे ही तमाम यू ट्यूबर्स की ओर मोड़ रही है ?
किसी से नहीं छुपा कि देश में खबरी टीवी चैनल्स को देखने वालों की तादाद अब रसातल में चली गई है। हालांकि ऐसा कोई आधिकारिक आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है कि किस न्यूज चैनल को प्रतिदिन कितने लोग देखते हैं मगर अपुष्ट खबरों के अनुसार प्रति चैनल यह आंकड़ा अब मात्र 7 से 12 लाख तक सिमट गया है। मजाक देखिए कि पत्रकारिता के नाम पर मजाक ही कर रहे रिपब्लिक टीवी की पहुंच सबसे अधिक लोगों तक है। अखबारों का भी कमोवेश यही हाल है और अब केवल सर्कुलेशन के फर्जी आंकड़ों से ही वे अपनी इज्जत बचाए हुए हैं । कहा जाता है कि विज्ञापनों और सरकारी लाभ के लालच में ही मुख्य धारा का मीडिया सत्ता के तलवे चाट रहा है मगर यह अधूरा सच है। आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं के देश में लगभग चार सौ न्यूज चैनल हैं और उनमें से अकेले मोदी भक्त मुकेश अंबानी के पास 72 का मालिकाना हक है। बाकी बचे चैनल भी अडानी और अन्य सत्ता भक्त उद्योगपतियों के हैं। उधर , अखबारी जगत का सत्य भी इससे जुदा नहीं है। अब भला ऐसे माहौल में पूरे मीडिया जगत में खबरों के नाम पर प्रायोजित कार्यक्रम न चलें तो और क्या हो ? ऐसा नहीं है कि यह सब केवल दोस्ती में हो रहा हो, अपने तलवे चाटने की कीमत भी सत्ता खुल कर चुका रही है और मोदी सरकार के दस सालों के शासन में जनता का लगभग आठ हजार करोड़ रुपया विज्ञापन के नाम पर लुटाया जा चुका है। यह रकम tovकेवल केंद्र सरकार ने खर्च की है। सत्तारूढ़ दल और उसकी राज्य सरकारों का विज्ञापन खर्च जोड़ लें तो यह राशि कई गुना और बढ़ जायेगी । मीडिया जगत में ताकत, खौफ और पैसों के इस खेल का ही परिणाम है कि दुनिया भर के 180 देशों में किए गए सर्वे में भारत प्रेस की आजादी के मामले में अब 161वें नंबर पर पहुंच गया है।
ध्रुव राठी के वीडियो में वही दिखाया गया है जो देश में हो रहा है मगर कमाल की बात यह है कि इन तमाम बातों का पिछले दस सालों में भारतीय मीडिया जनता ने जिक्र तक नहीं किया । ऐसे में खबरों और सूचनाओं का भूखा भारतीय मानस उनका विकल्प भला क्यों न तलाशे ? क्या यह सही वक्त है नहीं है कि मीडिया के धुरंधर जरा ठहर का सोचें कि उन्हें अपनी बची खुची इज्जत की थोड़ी बहुत परवाह है या उसे भी बेच खाने का प्रण उन्होंने ले लिया है ?

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