आज्ञा के स्तर का सवाल

रवि अरोड़ा
शाहरूख खान की फिल्म पठान द्वारा की जा रही ताबड़तोड़ कमाई ने कई चीजें एक साथ तय कर दी हैं। पहली तो यह कि कुछ जहरीले लोगों के आह्वान भर से हमारी फिल्में न चलती हैं और न ही फ्लॉप होती हैं। दूसरी बात यह कि नफरती गैंग को उतना ताकतवर समझने की जरूरत नहीं है, जितना कि वह खुद को दिखाता है। तीसरी यह कि सत्ता पर काबिज़ लोगों को भी समझ आ गया है कि अपने पिछलग्गू मूर्खों को भरमाने से अधिक जरूरी है दुनिया के सामने अपनी साफ सुथरी छवि पेश करना। चौथी और अंतिम बात यह कि तमाम तरह के षड्यंत्रों के बावजूद पूरा आवा का आवा हिंदू-मुस्लिम की कथित आंधी के चपेट में नहीं आया है और अभी भी इस मुल्क में थोड़ी गुंजाइश बाकी है।
तमाम विवादों के बीच रिलीज़ हुई फिल्म पठान की बॉक्स ऑफिस पर धूम को मात्र किसी फिल्म की सफलता असफलता की नजर से देखने की भूल कतई नहीं करनी चाहिए । इस फिल्म के भविष्य से ही तय होना था कि क्या सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट भर से देश में कोई फिल्म रिलीज हो सकती है अथवा भगवा ब्रिगेड की अनुमति भी अब जरूरी होगी ? यह भी तय होना था कि इस्लामिक नाम वाले कलाकारों को फिल्म इंडस्ट्री छोड़ देनी चाहिए या पूर्व की तरह उन्हें आगे भी काम मिलता रहेगा ? यह भी साबित होना था कि फिल्मों के विषयवस्तु तय करते समय निर्माता निर्देशक स्वतंत्र बने रहेंगे या एक खास वर्ग की इच्छा के अनुरूप ही अब वे अपनी फिल्में बनाने को बाध्य होंगे ? वगैरह वगैरह। शुक्र है कि तमाम आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं और इस फिल्म को पसंद कर देश की जनता से साबित कर दिया कि समाज में बेशक ज़हर से भरे लोग हैं मगर सभी जहरीले हों ऐसा भी नहीं है। जनता जनार्दन को यह बात कतई समझ नहीं आई कि मात्र तीन सेकंड के लिए नायिका द्वारा भगवा कपड़े पहनने से सिनेमा घरों में आग लगाने अथवा फिल्म के बायकॉट की क्या जरूरत है जबकि हमारी फिल्मों में भगवा कपड़े का अच्छा बुरा इस्तेमाल तभी से होता आया है जबसे फिल्में बननी शुरू हुई हैं ? खास बात यह भी रही कि एक शालीन और देशभक्त होने की शाहरूख खान की छवि ने इस मामले में अपनी महती भूमिका निभाई और लोगों को यह बात भी पसंद नहीं आई कि स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से आने वाले शाहरूख खान का विरोध उन लोगों द्वारा ही क्यों किया जा रहा है जिनके नायक और पूर्वज अंग्रेजों के पिट्ठू थे ?
आंकड़े बता रहे हैं कि मात्र चार दिन में अपनी लागत से दोगुनी कमाई इस फिल्म ने कर ली है और अब यह सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्म का रिकार्ड बनाने की ओर बढ़ रही है। फिल्म की इस सफलता से उन लोगों के चेहरे उतरे हुए हैं जो 140 करोड़ भारतीयों को हांकने का दम भर रहे थे । बेशक हम भारतीय हांके जाते रहे हैं और भविष्य में भी हम नहीं हांके जाएंगे,ऐसा कोई दावा भी नहीं किया जा सकता मगर हांके जाने लायक कोई बात भी तो हो ? इतिहास गवाह है कि आज़ादी के बाद से हमें बारंबार हांका गया है और हमने खुशी खुशी भेड़ों के रेवड़ जैसा व्यवहार किया है । मगर यह तो हद ही हो गई कि अब यह भी ऊपर से तय हो कि हमें कौन सी फिल्म देखनी है और कौन सी नहीं ? हमारे खान पान, हमारे लिबास, हमारे तीज त्यौहार और आचरण तक तो चलो सहन हो भी जाए मगर अब मनोरंजन का साधन भी कोई और तय करे, यह न हो पाएगा । बेशक हम आज्ञाकारी समाज बनते जा रहे हैं मगर फिर भी हांकने वालों को भी तो अपनी आज्ञा का स्तर थोड़ा सुधारना होगा या नहीं ?

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