आओ टसुए बहाएं
रवि अरोड़ा
चार साल पहले अमरनाथ की यात्रा पर गया था । पहलगाम से जम्मू लौटते समय रास्ते में अनंतनाग के निकट चार पांच निर्माणाधीन इमारतें भी मुझे दिखी थीं । कौतूहलवश टैक्सी चालक से पूछ ही लिया था कि ऐसी अशांति के माहौल में कौन नया मकान बनवा रहा है तो उसने बताया कि ये मकान सरकार तैयार करवा रही है और इनमें कश्मीरी पंडितों को बसाया जायेगा । लाखों विस्थापितों को इन सौ पचास मकानों में कैसे बसाएंगे ? इस सवाल का जवाब चालक के पास नहीं था । आजकल कश्मीर फाइल्स फिल्म से मच रहे तूफान के बीच मुझे अनंतनाग के वे निर्माणाधीन मकान बहुत याद आ रहे हैं । दरअसल इस फिल्म को लेकर भगवा ब्रिगेड कुछ अधिक ही मुखर है और सौहार्द की बात करते वालों पर मधुमक्खियों की तरह चिपट रही है । वैसे कभी कभी शक भी होता है कि क्या वाकई सौहार्द की बात करने वाले मुझ जैसे करोड़ों लोग कश्मीरी पंडितों का दर्द नहीं समझ पा रहे ? मगर तभी लगता है कि हो सकता है कि हम में कोई खोट हो मगर उन लोगों की नीयत में तो शर्तिया खोट है जो कश्मीरी पंडितों के हक में बातें तो हमेशा चांद तारों की करते हैं मगर काम के नाम पर फली भी नहीं फोड़ते ।
5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटाते समय क्या क्या सपने नहीं दिखाए गए थे । कहा गया था कि दूसरे राज्यों के लोग अब वहां प्लाट खरीद सकेंगे । कश्मीरी दुल्हनें लाने की बातें भी हुई थीं । कश्मीर की सस्ती हवाई यात्रा, पर्यटन और बड़े बड़े उद्योग लगाने के भी दावे किए गए थे । कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को 6 हजार मकान और उनके विकास के लिए 80 हजार करोड़ रुपए के बजट की भी घोषणा की गई थी मगर हुआ क्या ? हाल ही लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में स्वयं गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने स्वीकार किया कि अभी तक मात्र सात बाहरी लोगों ने जम्मू क्षेत्र में रजिस्ट्री करवाई है और कश्मीर में तो एक भी बाहरी आदमी मकान अथवा दुकान नहीं खरीद सका है । संसद की स्थाई समिति ने भी माना है कि 2015 से शुरू हुए पंडितों के मकान अभी तक 15 फीसदी भी नहीं बने हैं । यहां तक की लगभग आधे भवनों के लिए भूमि अधिग्रहण का काम भी अभी पूरा नहीं हुआ है । सच यह भी है कि इन सालों में कश्मीर में एक भी नया उद्योग नहीं लगा है और पर्यटन भी जस का तस है । हां इतना जरूर है कि सरकार ने जम्मू कश्मीर के परिसीमन का काम दिन रात चला रखा है और निकट भविष्य में कश्मीर क्षेत्र की कम से कम सात सीटें जम्मू में शामिल हो जाएंगी और परिणाम स्वरूप अगला मुख्यमंत्री भाजपा के दबदबे वाले जम्मू क्षेत्र का होगा ।
मुझ जैसे लोग वाकई समझ नहीं पा रहे हैं कि कश्मीरी पंडितों की संख्या क्यों भगवा ब्रिगेड हमेशा बढ़ा चढ़ा कर लाखों में बताती है जबकि खुद केंद्र की भाजपा सरकार मानती है कि वर्ष 1990 से अब तक केवल 44167 परिवार कश्मीर से विस्थापित हुए हैं और उनमें से भी 10 फीसदी गैर हिन्दू थे । पंडित परिवारों की संख्या भी सरकार मात्र 39 हजार मानती है । बेशक 399 कश्मीरी पंडित मारे गए मगर हलाक हुए मुस्लिमों की संख्या इनसे कई गुना अधिक है । यकीनन जान एक भी गई हो अथवा परिवार एक भी क्यों न विस्थापित हुआ हो , यह दुखद है मगर इस यंत्रणा के गुजरे 32 सालों में से 14 साल तो भाजपा ही सत्ता में रही है । वह क्यों नहीं पीड़ितों के आसूं पूछ रही ? क्यों अभी तक एक भी कश्मीरी पंडित को वापिस नहीं बसाया गया ? कश्मीरी पंडितों की संस्थाएं तो यहां तक कह रही हैं कि कश्मीर में दोबारा बसाना तो दूर मोदी सरकार उन्हें कश्मीर का स्थाई निवासी होने का प्रमाण पत्र तक मुहैया नहीं करवा रही । स्वयं कश्मीर के राज्यपाल मान रहे हैं कि पंडितों की प्रॉपर्टी संबंधी केवल 2 हजार मामले अभी तक सुलझाए गए हैं । कश्मीर फाइल्स देख कर केवल रो देने से ही कर्तव्य की इतिश्री होती है तो आइए हम सब मिल कर टसुए बहाएं ।