असली केरल स्टोरी

रवि अरोड़ा
एक बार फिर समाज में ज़हर घोलने को ‘ द केरल स्टोरी ‘ जैसी झूठी कहानी आपके और हमारे बीच नमूदार कर दी गई है। एक बड़े षड्यंत्र के तहत यह फिल्म दावा करती है कि केरल में हिन्दू लड़कियों का धर्मांतरण कर उन्हें आतंकी संगठन आईएस में भर्ती कर सीरिया भेजा जा रहा है। फिल्म में कैप्शन के रूप में पहले दिखाया जा रहा था कि केरल में अब तक 32 हजार लड़कियां इसका शिकार हुई हैं मगर जब फिल्म निर्देशक पर इस आंकड़े का आधार साबित करने को कहा गया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया तो फिल्म में अब कैप्शन दिया जा रहा है कि अब तक केवल तीन लड़कियों के ही इसका शिकार होने की वे पुष्टि करते हैं। वैसे सरकारी एजेंसियों के अनुसार भी यह आंकड़ा केवल तीन का ही है और उसमें भी दो लड़कियां ईसाई और मात्र एक ही हिन्दू है। इन लड़कियों के साथ जबरदस्ती किए जाने का भी कोई प्रमाण अभी तक सरकार को नहीं मिला है। फिल्म इस आंकड़े को बड़ी सफाई से छुपाती है कि स्वयं संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 110 देशों के 40 हजार से अधिक लोग इस आतंकी संघठन में जाकर शामिल हो चुके हैं और उनमें केवल 66 ही भारतीयों हैं । कहना न होगा है कि दुनिया की दूसरी बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश भारत ही है और सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले राज्य के रूप में केरल की पहचान है। भारत और केरल से सीरिया जाकर इस्लामिक स्टेट में शामिल होने वालों का अन्य देशों के मुकाबले इतना कम अनुपात क्या इस वजह से नहीं है कि भारत का मुस्लिम अन्य देशों के मुकाबले कमोवेश सौहार्द का अधिक हामी हैं ? यदि हां तो फिर द केरल स्टोरी जैसा जहर क्यों हमें परोसा जा रहा है ?

देश की राजनीति इस हद घटिया हो जायेगी, इसकी कल्पना भी कभी नहीं की गई थी । हैरानी की बात यह है कि समाज को बांटने और वैमनस्यता फैलाने वाली ऐसी फिल्म को कई राज्यों ने टैक्स फ्री भी किया जा रहा है। ये वही राज्य हैं जहां बच्चों की कॉपी, किताब और पैंसिल पर तो टैक्स है मगर फिर भी इस झूठ के पुलंदे पर टैक्स मुआफ़ किया जा रहा है। स्वयं प्रधानमंत्री अपनी चुनावी सभाओं में इस फिल्म का प्रचार कर रहे हैं और मंत्री मुख्यमंत्री सिनेमाघर जाकर फिल्म देख रहे हैं। कोई इन नेताओं से नहीं पूछ रहा कि पिछले नौ सालों में आपने कश्मीर फाइल और द केरल स्टोरी जैसी के अलावा और कौन कौन सी फिल्म देखी है ? हद देखिए कि फिल्म की टिकिट दिखाने वाले को मुफ्त चाय पिलाए जाने की भी खबरें आ रही हैं । दर्शकों को चाय ही क्यों, कुछ और क्यों नहीं यह जानना भी क्या कोई रॉकेट साइंस है ? आप ही बताइए जहर की मार्केटिंग का क्या ऐसा कोई दूसरा उदाहरण आप पूरी दुनिया में ढूंढ सकते हैं ? समाज को बांटने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार इन नेताओं को कोई नहीं पूछ रहा कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आप जिस तरह की चीजें जबरन हमें दिखा रहे हो, यह आजादी तब कहां गई थी जब गुजरात दंगों पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को आपने बैन किया था ? कोई नहीं पूछ रहा कि आने वाले वक्त में दूसरे धड़े वालों ने भी यदि गुजरात दंगों, पुलवामा कांड, मलियाना और मुर्शिदाबाद जैसी घटनाओं पर कोई तथ्यात्मक फिल्म बनवा दी क्या तब भी उनका टैक्स मुआफ़ होगा ? क्या तब भी फिल्म की कास्ट से मिलकर आप बड़ी बड़ी खबरें अखबारों में छपवाओगे अथवा सारे काम छोड़ कर दलबल के साथ उस फिल्म को देखने जाओगे ? चलिए मत पूछिए इनसे कुछ मगर इतिहास तो इस चुप्पी का भी लिखा जायेगा ।

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