अलग अलग चश्मे

रवि अरोड़ा
मुझे अब पक्का विश्वास हो चला है कि सरकार चाहे तो कुछ भी कर सकती है। भूमि अपनी हो अथवा विदेश की, इच्छा शक्ति हो तो सरकार के लिए कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं है। याद कीजिए चार दिन पहले खालिस्तान टाइगर फोर्स के मुखिया हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में किस तरह गोली मार कर हत्या कर दी गई । निज्जर भारत का मोस्ट वांटेड आतंकी था और उस पर दस लाख रुपए का ईनाम भी भारत सरकार ने घोषित किया हुआ था । निज्जर भारत का इकलौता मोस्ट वांटेड नहीं है, जो हाल ही में विदेश में मारा गया हो, ऐसे आतंकियों की लंबी चौड़ी लिस्ट है जो अब भारत विरोधी गतिविधियां चलाने को जीवित नहीं बचे । जाहिर है कि ऐसी खबरें सुन कर किसी भी देशप्रेमी का सीना गर्व से चौड़ा ही होगा । बेशक इन तमाम हत्याओं का श्रेय भारत सरकार ने नहीं लिया है मगर आम राय है कि हो न हो रॉ जैसी हमारी किसी एजेंसी ने ही यह कर दिखाया होगा वरना अब से पहले ये आतंकी यूं कीड़े मकोड़ों की तरह कभी क्यों नहीं मरे ? फिर खयाल आता है कि यदि हम इतने ही शक्तिशाली हैं तो विजय माल्या, मेहुल चौकसी और नीरव मोदी जैसे उन तीन दर्जन से अधिक आर्थिक अपराधियों का भी कुछ क्यों नहीं बिगाड़ पा रहे जो भारत की गरीब जनता का अरबों रुपया डकार कर विदेशों में ऐश का जीवन व्यतीत कर रहे हैं ? उनका नाम आते ही हमारी सारी सुरक्षा एजेंसियां क्यों चुप्पी साध लेती हैं ?

यह खबर भी पुरानी नहीं है कि खालिस्तान कमांडो फोर्स के सरगना परम जीत सिंह पंजवाड़ की लाहौर में उस समय हत्या हो गई थी जब वह पाकिस्तान सरकार की ओर से मिली सुरक्षा के बीच मॉर्निग वॉक पर निकला था । पाकिस्तान में ही अल बद्र के कमांडर सैयद खालिद रजा और सैयद नूर शालीबर की भी गोली मार कर हत्या कर दी गई । भारत में इस्लामिक स्टेट को शुरू करने की कोशिश कर रहा एजाज अहमद अफ़ग़ानिस्तान में तथा ब्रिटेन में अवतार सिंह खांडा भी पिछले कुछ महीनों में मौत के घाट उतार दिए गए । अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा और पाकिस्तान में कई अन्य आतंकवादी भी मारे गए हैं और इसका नतीजा यह हुआ है कि विदेशों में रह कर भारत विरोधी गतिविधियां चलाने वाले दहशत में हैं और भूमिगत हो रहे हैं।

पता नहीं क्यों तमाम बड़े बड़े दावों के बावजूद हमारा राजनीतिक नेतृत्व विदेशों में जमा काला धन वापिस नहीं ला सका है । अब तो स्विज सरकार ने कुल राशि भी बता दी है जो भारतीयों की वहां जमा है। हो सकता है कि हमारी सरकार कोई बड़ी मजबूरी हो जो उन्हें ऐसा करने से रोक रही है। मगर आर्थिक अपराध करके विदेश भागे इन भगोड़ों को न पकड़ने की भला क्या मजबूरी हो सकती है ? साल 2016 में विजय माल्या के भारतीय बैंकों का 9 हजार करोड़ रुपए डकार कर विदेश भाग जाने से जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा । अब तक कुल 35 कथित बड़े लोग लगभग एक लाख करोड़ रुपया डकार कर विदेश भाग चुके हैं। बीस के खिलाफ भारत ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर इंटरपोल को भी उनकी सूची सौंप रखी है मगर पता नही क्यों उनका फिर भी कुछ नहीं बिगड़ रहा ? आर्थिक अपराध भी तो देश विरोधी गतिविधि है, उसे आतंकवाद की श्रेणी में सरकार क्यों नहीं रखती ? जिस रास्ते से आतंकी ठिकाने लगाए जा सकते हैं, वह रास्ता इन भगोड़ों के लिए क्यों नहीं खुलता ? अपराधी के किसी खास राज्य से होने, उसके धर्म अथवा जाति के आधार पर उसके प्रति आक्रोश अथवा रियायत को भला कैसे सही साबित किया जा सकता है ? वैसे क्या आपको भी ऐसा नहीं लगता कि कुछ मामलों में बेहद सक्रिय रहने वाली हमारी सरकार को कुछ खास मामलों में लकवा सा मार जाता है । क्या सरकार बिलकुल नहीं समझ रही कि हरेक मामलों को अलग अलग चश्मे से देखने का उसका नजरिया भी किसी दिन देखा जायेगा । चश्मे से अथवा बिना चश्मे के, यह तो आने वाला वक्त तय करेगा ।

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