अब अगला नम्बर राष्ट्रगान का

रवि अरोड़ा
कल रात लोगों को दीये और मोमबत्ती जलाता देखकर पक्का यक़ीन हो गया कि धर्म के आधार पर तो नहीं मगर सोच के आधार पर मैं अब अल्पसंख्यक हो गया हूँ । प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर देश की जनता इस क़दर कदमताल करेगी इसकी कम से कम मुझे तो क़तई उम्मीद नहीं थी । मगर मुझे ख़ुशी भी है कि इस आइडिये को अस्वीकार कर मैंने तो अपनी निगाहों में स्वयं को गिरने से बचा लिया । बेशक कल रात मैं अपनी सोच के चलते अपने लोगों के ख़िलाफ़ खड़ा था मगर मुझे फिर भी संतोष है कि मेरी पुरज़ोर अस्वीकार्यता के बावजूद मुझे कोई गम्भीर चुनौती भी नहीं मिली । अपने प्रति लोगों की इस सहृदयता से मैं अभिभूत हूँ और अपने आप से कह भी रहा हूँ कि शुक्र है कि कम से कम अभी वह स्थिति तो नहीं आई कि अलग राय रखने की मुझे भारी क़ीमत चुकानी पड़े । इतिहास गवाह है कि एसा हमेशा हुआ भी है । बेशक किसी विचार के पक्ष में बहुसंख्यक़ लोगों के आ जाने से वह विचार सही साबित नहीं हो जाता मगर विचार के स्तर पर अल्पसंख्यक होने के भी तो अपने ख़तरे हैं ।
बात ख़तरे की हो तो दीये और मोमबत्तियाँ जलाने के भी अपने ख़तरे थे । यक़ीनन मोदी जी को उनका अहसास भी रहा होगा । जब मुझ जैसे सामान्य नागरिक को आभास था कि दीये जलेंगे तो पटाखे भी फूटेंगे तो एसा कैसे हो सकता है कि देश चलाने वालों को इसका अनुमान न होगा ? नतीजा वही हुआ जो ताली-थाली बजाने के प्रपंच के दौरान हुआ था। ख़ूब पटाखे फूटे और दो सप्ताह में कम हुआ वायु प्रदूषण फिर ऊपर पहुँच गया । जम कर मशाल जुलूस निकले और नाच-गाना समेत हर वह काम हुआ जो मोदी जी के ही सोशल डिसटेंसिंग वाले विचार के ख़िलाफ़ था । मैं मानता हूँ कि इस तरह के कार्यों व आडंबरों से नई ऊर्जा का संचार होता है मगर सवाल यह भी तो है कि कोरोना से लड़ने को नई ऊर्जा किसे चाहिये , जनता जनार्दन को या ख़ुद सरकार को ? डाक्टरों को जाँच किट किसने उपलब्ध करानी है , मास्क, सेनिटाईज़र और वेंटिलेटर का इंतज़ाम किसे करना है , सरकार को या पब्लिक को ? ख़बरें आ रही हैं कि डाक्टर्स हेल्मेट और रेन कोट पहन कर मरीज़ों इलाज कर रहे हैं । मरीज़ों को केवल गर्म पानी पिला कर और पेरासिटामोल दे कर इलाज किया जा रहा है । सरकारी अस्पतालों से लोगों को बिना जाँच के वापिस भगाया जा रहा है जबकि उनमे कोरोना के तमाम लक्षण हैं । पब्लिक में जोश भर कर इन सभी समस्याओं का समाधान कैसे होगा यह अपनी तो समझ से परे है ।
देश भर से ख़बरें आ रही हैं कि लोगबाग़ भूख से परेशान हैं । अपने गाँव पैदल जाते हुए अनेक लोग रास्ते में मर गये । कहीं आत्महत्या हो रही है तो कहीं बाहर से आये छोटी जातियों के लोगों को दबंग जातियों के लोग गाँवों में नहीं घुसने दे रहे । कारोबार और आर्थिक मामलों में भी तबाही दिखनी शुरू हो ही गई है । इन सभी मोर्चों पर क्या हो रहा है , यह कोई नहीं बता रहा । इसमें कोई दो राय नहीं कि तमाम ख़ामियों के बावजूद कोरोना के मामले में सरकार का काम कुछ विकसित देशों के मुक़ाबले फिर भी संतोषजनक है । मगर फिर भी अपनी इच्छा तो यही है मोदी जी अपने लोगों व सरकारी मशीनरी में जोश भरें , पब्लिक पर तजुर्बा न करें । लेकिन मोदी जी तो मोदी जी हैं , वे शायद मानेंगे नहीं । इटली की तरह पहले ताली बजवाई फिर मोमबत्ती जलवाई और अब शायद अगला नम्बर बालकनी में खड़े होकर राष्ट्रगान का है ।

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